चीनी ताइपे (ताइवान) में रहने के बावजूद झारखंड के लिए दौड़ने वाले पार्थ सिंह तारीफ के अजनबी नहीं हैं. शुक्रवार की रात भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में उन्होंने अंडर-20 पुरुष 100 मीटर फाइनल में 10.52 सेकंड का समय निकालते हुए गोल्ड अपने नाम किया. जैसे ही उन्होंने फिनिश लाइन पार की, रिपोर्टर्स उन्हें घेरकर सवाल करने लगे. पार्थ ने आत्मविश्वास और सहजता के साथ जवाब दिए, उनके लहजे में हल्की दक्षिण एशियाई झलक थी. उन्होंने अपनी रेस, तैयारी और भविष्य की योजनाओं पर खुलकर बात की.
नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में अंडर-14, अंडर-16, अंडर-18 और अंडर-20 समूहों में लगभग 60 से अधिक इवेंट्स आयोजित किए जा रहे हैं… और पार्थ का प्रदर्शन उनमें सबसे अलग चमक रहा था.
तीन रेस, लंबी कूद और मानसिक जुझारूपन
100 मीटर फाइनल उनके दिन की तीसरी रेस थी- क्वालिफायर और सेमीफाइनल के बाद. इससे पहले ही उन्होंने लंबी कूद फाइनल के लिए पहले ही प्रयास में 7.43 मीटर की छलांग लगाकर क्वालिफाई कर लिया था. लंबे हवाई सफर के बाद उनका शरीर थका हुआ था, और मानसिक और भावनात्मक रूप से भी वे पूरी तरह थक चुके थे.
पार्थ ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, ‘मैंने खुद से कहा- शांत रहो, बस सांस लेते रहो. मेरा शरीर कह रहा था, ‘यार, मुझे सोना है, घर जाना है.’ कल रात होटल में अकेले रहते हुए मैं लगभग रो ही पड़ा. नए जगह पर अकेले सोना मेरे लिए मुश्किल था. हर चीज भारी लग रही थी. मुझे डर था कि कहीं मैं अच्छा प्रदर्शन न कर पाऊं. लेकिन फिर खुद से कहा- ‘ठीक है, मुझे भारत को दिखाना है कि मैं भी यहां हूं. मैं वर्ल्ड और एशियाई चैम्पियनशिप के लिए उम्मीदवार हूं और मैं यह कर सकता हूं. मुझे खुद को साबित करना है.’
फॉल्स स्टार्ट और जुझारूपन
100 मीटर फाइनल में दो फॉल्स स्टार्ट्स हुए, जिसने खेल का मनोबल प्रभावित किया. उन्होंने कहा, ‘पहली बार जब कहा गया कि कुछ लोग हिले हैं, तो मैं सोच में पड़ गया. दूसरी बार मैंने बेहद सावधानी बरती और ब्लॉक्स से धीरे निकला. तीसरी बार खुद से कहा- ‘शांत रहो, कर सकते हो. पहले 30 मीटर में मैं पीछे था, लेकिन फिर अपनी गति पकड़ ली और बाकी ट्रैक पर अच्छा प्रदर्शन किया. बस शुरुआती 30 मीटर में कमी रह गई.’
अंत में पार्थ थोड़ा निराश थे क्योंकि उनका समय 10.50 सेकंड के U20 वर्ल्ड चैम्पियनशिप क्वालिफाइंग मार्क से थोड़ा पीछे था. फिर भी उन्होंने अपनी मानसिक चुनौती को प्रेरणा में बदलने की क्षमता दिखाई.
उन्होंने कहा, ‘अगली बार दौड़ते समय पहले 30 मीटर मेरी सबसे बड़ी परीक्षा होगी.’
टायसन गे की टी-शर्ट और प्रेरणा
इंटरव्यू के 10 मिनट बाद पार्थ काली टी-शर्ट में लौटे, जिस पर अमेरिकी धावक टायसन गे के 100 मीटर टाइम्स की कहानी छपी थी. यह टी-शर्ट उनके कोच यू वेन लॉन्ग का तोहफा थी.
उन्होंने कहा, ‘मेरे कोच ने यह टी-शर्ट मुझे दी. इसमें टायसन गे के सभी 100 मीटर टाइम्स हैं, उनके 9.69 सेकंड तक पहुंचने की कहानी. मैं उनकी विरासत को आगे ले जाना चाहता हूं और मेरा लक्ष्य है 2028 ओलंपिक.’
पार्थ ने टायसन गे को सिर्फ स्पीड के लिए नहीं, बल्कि उनकी हिम्मत और जज्बे के लिए भी अपना आदर्श माना. उन्होंने कहा, ‘उनकी बेटी ट्रिनिटी, जो खुद एथलीट थीं, गोलीबारी में मारी गईं. फिर भी उन्होंने दौड़ना नहीं छोड़ा. किसी प्रियजन को खोने के बाद भी अपने जुनून से जुड़े रहना मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है. हर खिलाड़ी किसी न किसी मुश्किल से गुजरता है, चाहे वो उसैन बोल्ट हों या योहान ब्लेक… लेकिन अपने किसी करीबी को खोने के बाद भी ट्रैक पर लौटना… यह कुछ और ही बात है. मैं टायसन गे की बेहद इज्जत करता हूं.’
पार्थ ने अपनी जीत को टायसन गे के पर्सनल बेस्ट के लक्ष्य से जोड़ा- ‘मैं अभी यहां तक पहुंचा हूं, लेकिन मेरा लक्ष्य 9.69 सेकंड है. पहले इन दो 10 सेकंड के टाइम्स को पार करना है.’
ताइपे मेरा घर, भारत मेरा देश
पार्थ का परिवार चीनी ताइपे में रहता है, लेकिन उनका दिल हमेशा भारत के लिए धड़कता है. उन्होंने कहा, ‘ताइवान बहुत अच्छी जगह है, लेकिन भारत मेरी मातृभूमि है. यहीं मैं पैदा हुआ और बड़ा हुआ. मेरे माता-पिता दोनों भारत से हैं. अगर मुझे मौका भी मिले, तो मैं भारत का प्रतिनिधित्व करना पसंद करूंगा. चीनी ताइपे मेरा घर है, लेकिन भारत मेरा राष्ट्र है.’
लंबी कूद: उड़ने जैसा एहसास
जैसे-जैसे स्प्रिंट में पार्थ तरक्की कर रहे हैं, वैसे-वैसे लंबी कूद के प्रति उनका लगाव भी कायम है- मैं लॉन्ग जंप नहीं छोड़ना चाहता. जब मैं छलांग लगाता हूं, ऐसा लगता है जैसे मैं उड़ रहा हूं. 100 मीटर में यह एहसास नहीं मिलता. उड़ते समय शरीर अद्भुत महसूस करता है.’
उनके आदर्श जेसी ओवन्स और कार्ल लुइस हैं, जिन्होंने 100 मीटर और लंबी कूद दोनों में इतिहास रचा.
डोपिंग पर स्पष्ट रुख
पार्थ ने डोपिंग के प्रति परिपक्व सोच व्यक्त की. उन्होंने कहा, ‘आपने उस एक रेस के लिए कितनी मेहनत की है, वह मेहनत एक गलत दवा से खो सकती है. मैं हर दवा ऐप से चेक करता हूं और डॉक्टर को बताता हूं कि मैं एथलीट हूं. दौड़ना अपने आप में खुशी है. मेहनत करें, आप तेज दौड़ सकते हैं- शॉर्टकट की जरूरत नहीं.’
उच्च शिखर की ओर सफर
पार्थ सिंह की यात्रा अभी शुरू है. उनके सीने पर छपी टायसन गे की टाइमलाइन उन्हें रोज याद दिलाती है कि मंजिल कितनी ऊंची है और उसे पाने के लिए मेहनत कितनी जरूरी है.
भुवनेश्वर के ट्रैक पर उनकी जीत ने यह साफ कर दिया कि यह युवा धावक सिर्फ तेज ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी ओलंपिक स्तर का है. अब उनकी आंखों में बस एक सपना है- भारत का झंडा लेकर 2028 ओलंपिक में दौड़ना.
(Sundeep Misra हमारे अतिथि लेखक, ट्रैक और फील्ड की कहानियों के बेहतरीन लेखकों में से एक हैं. उनकी किताब Gunned Down: The Murder of an Olympic Champion अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है)
—- समाप्त —-