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Afghan Minister Muttaqi No Woman Attend Foreign Minister Briefing Clarification Under Guise Of Afghan Culture – Amar Ujala Hindi News Live


पहली बार भारत दौरे पर आए अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की प्रेस वार्ता में गिने-चुने पत्रकार ही शामिल हुए। हालांकि, इस प्रेस वार्ता का चौंकाने वाला पहलू ये भी रहा कि इसमें एक भी महिला पत्रकार शामिल नहीं हुई। मुत्ताकी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अहम द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत करने के कुछ घंटे बाद नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास में मीडियाकर्मियों से बातचीत की। माना जा रहा है कि पत्रकारों को मीडिया वार्ता में आमंत्रित करने का फैसला विदेश मंत्री के साथ आए तालिबान शासन के अधिकारियों ने लिया था।

अफगान अधिकारियों ने भारत की सलाह पर नहीं दिया ध्यान

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक इस मामले से वाकिफ लोगों ने बताया कि भारतीय अधिकारियों ने अफगान पक्ष को सुझाव दिया था कि महिला पत्रकारों को भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने ऐसा करना मुनासिब नहीं समझा।

2021 में आया तालिबान शासन, महिलाओं की स्थिति में सुधार

प्रेस वार्ता के दौरान मुत्ताकी से जब अफगानिस्तान में महिलाओं की दुर्दशा पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया। उन्होंने टालमटोल करने के लहजे में कहा कि हर देश के अपने रीति-रिवाज़, क़ानून और सिद्धांत होते हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से देश की समग्र स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

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हर देश के अपने रीति-रिवाज, कानून और सिद्धांत होते हैं

मुत्ताकी ने बताया कि तालिबान शासन से पहले अफगानिस्तान में हर दिन लगभग 200 से 400 लोग मारे जाते थे। उन्होंने कहा, इन चार वर्षों में, ऐसा कोई नुकसान नहीं हुआ है। कानून लागू हैं और सभी के अपने अधिकार हैं। जो लोग दुष्प्रचार कर रहे हैं, वे गलती कर रहे हैं। उन्होंने कहा, हर देश के अपने रीति-रिवाज, कानून और सिद्धांत होते हैं और वे उन्हीं के अनुसार काम करते हैं। यह सही नहीं है कि लोगों को उनके अधिकार नहीं दिए जाते। उन्होंने सवाल किया कि अगर देश के लोग तालिबान व्यवस्था और कानूनों से खुश नहीं थे, तो शांति क्यों लौट आई?

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अफगानिस्तान की कड़ी आलोचना

गौरतलब है कि अफगानिस्तान महिलाओं के अधिकारों को सीमित करने को लेकर लगातार कटघरे में है। काबुल में तालिबान शासन को विभिन्न देशों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं की कड़ी आलोचना का भी सामना करना पड़ा है।