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हो जाइए अलर्ट! सोने का खूब महंगा होना भी खतरे का संकेत, 1973 की क्यों आई याद – Gold price record high expert alert and comparing to the 1970s oil shock tuta


सोना (Gold) रोज बढ़ रहा है, जिन्होंने सोने में निवेश कर रखा है, वो तो बहुत ही खुश हैं. लेकिन जो नहीं खरीद पाए, वो पछता रहे हैं. दरअसल सोने की कीमतों में एकतरफा रैली देखने को मिल रही है. साल 2025 में ही सोना 60 फीसदी महंगा हो चुका है. ग्लोबल मार्केट में गोल्ड की कीमत $4000 प्रति औंस से ऊपर चली गई है. अब एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि सोने का इतना महंगा होना भी खतरे से खाली नहीं है.

सोने की कीमतों बेतहाशा बढ़ोतरी को लेकर चार्टर्ड फाइनेंशियल एनालिस्ट (CFA) हिमांशु पंड्या ने लोगों को अलर्ट किया है. उनका मानना है कि लगातार सोना महंगा सिर्फ शुभ संकेत नहीं हो सकता. इसके एक चेतावनी संकेत के तौर पर देखना चाहिए.

एक्सपर्ट ने किया अलर्ट 

हिमांशु पंड्या का कहना है कि सोने की कीमतों में तेजी को केवल प्रॉफिट (Profit) से जोड़ना सही नहीं होगा. इसके पीछे डर और अनिश्चितता भी है. उन्होंने बताया कि आज के दौर में सबसे ज्यादा सोना केंद्रीय बैंक, सॉवरेन फंड और संस्थागत निवेशक खरीद रहे हैं, वे सोना इस उम्मीद से नहीं खरीद रहे हैं कि मुनाफा देगा, बल्कि इसके जरिए वे अपने पोर्टफोलियो (Portfolio) को सुरक्षा देना चाहते हैं. यानी सेफ्टी के लिए केंद्रीय बैंक भी सोने भी सोने की तरफ भाग रहे हैं. ऐसे में आप कह सकते हैं कि जब सरकारें रिकॉर्ड ऊंचाई पर सोना खरीदती हैं, तो वे मुनाफे के पीछे नहीं भागतीं. इसके पीछे यह किसी गहरी बात का संकेत है. 

लिंक्डइन (Linkedin) पर एक पोस्ट में हिमांशु पंड्या ने मौजूदा सोने की तेजी को कुछ महीने पहले तक अनुमान लगाना ‘अकल्पनीय’ बताया. उन्होंने इसकी तुलना 1970 के दशक के तेल संकट से की. हालांकि वो मानते हैं कि मौजूदा समय में 1970 के मुकाबले हालात बिल्कुल अलग हैं. उन्होंने 1970 के दशक के तेल संकट की तुलना करते हुए कहा कि यह तेजी ‘सामान्य’ जैसा नहीं है. 

केवल निवेश के लिए अब सोना नहीं 

उन्होंने ने यह भी कहा कि सोना अब सिर्फ मुद्रास्फीति (Inflation) से बचाव का साधन नहीं है, यह अब रिटर्न का भी मामला है. हालंकि इसमें उससे जुड़े वित्तीय तंत्रों, विश्वसनीयता और मुद्रा व्यवस्था पर विश्वास की कमी झलकती है. 

गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में खासकर भारत में, फिक्सड डिपॉजिट (FD) के मुकाबले सोने में निवेश की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ा है. डिजिटल फॉर्मेट में सोने के निवेश को और आसान बना दिया है. 

Gold ETF रिटर्न में सबसे आगे 

इस साल, यानी 2025 में सोने ने 51% से ज्यादा का रिटर्न दिया है, जो इसे एक आकर्षक निवेश का विकल्प बनाता है, हालांकि सोने के फंड्स (Gold ETFs) ने इससे भी ज्यादा करीब 66% तक का रिटर्न दिया है. बता दें, एक साल पहले सोने की कीमत करीब ₹77,400 प्रति 10 ग्राम थी,जो अब बढ़कर ₹1,20,000 प्रति 10 ग्राम से अधिक हो गई, जो कि करीब 56% की बढ़ोतरी है.

पिछले 5 वर्षों में सोने ने करीब 200% का रिटर्न दिया है, सोने की कीमत 5 साल में करीब-करीब तिगुनी हो गई है. जिसमें प्रति वर्ष औसतन 24% का CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) रहा है. यह इक्विटी जैसे निफ्टी 50 जैसे अन्य निवेशों की तुलना में अधिक रहा है. इस दौरान इक्विटी ने अधिकतम करीब 17% का सालाना रिटर्न दिया है. साल 2020 की शुरुआत में ₹10 ग्राम सोने की कीमत करीब ₹40,000 के आसपास थी, जो 2025 में ₹1,15,000 प्रति 10 ग्राम से ऊपर पहुंच गई.

क्या है 70 दशक की तेल शॉक?
1973 से पहले दुनिया के अधिकतर देश मध्य पूर्व के तेल पर निर्भर थे. उस समय तेल की कीमतें बहुत कम थीं और आर्थिक विकास तेजी से चल रहा था. अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देशों की अर्थव्यवस्था इसी सस्ते तेल पर टिकी थी. अक्टूबर 1973 में अरब-इजराइल युद्ध छिड़ गया. इस युद्ध में अमेरिका और पश्चिमी देश इज़राइल का समर्थन कर रहे थे. इसके विरोध में OPEC (Organization of Petroleum Exporting Countries) के अरब सदस्य देशों ने अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को तेल बेचना बंद कर दिया. तेल की कीमतें कुछ ही महीनों में चार गुना बढ़ गईं. 3 डॉलर से 12 डॉलर प्रति बैरल तक कीमत पहुंच गई. इससे वैश्विक महंगाई और बेरोजगारी बढ़ी. 1970 का यह ‘तेल शॉक’ वैश्विक अर्थव्यवस्था के इतिहास की सबसे बड़ी चेतावनियों में से एक बन गया. 
 
 

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