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छिंदवाड़ा त्रासदी की असली वजह… MP की लैब में 5 हजार जांच पेंडिंग, ड्रग इंस्पेक्टरों की कमी, सैंपल भेजने में देरी से गई 22 बच्चों की जान – aajtak expose on mp fda labs chhindwara tragedy updates lcln


छिंदवाड़ा त्रासदी में सबसे ज्यादा सवाल मध्य प्रदेश के ड्रग डिपार्टमेंट पर उठे. सामने आया कि छिंदवाड़ा से लिए गए सैंपल तीन दिन बाद साधारण डाक से भोपाल की FDA लैब पहुंचे. प्राथमिकता के आधार पर उनकी जांच कर अगले दिन रिपोर्ट जारी हो गई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

‘आजतक’ की पड़ताल में FDA लैब को लेकर चौंकाने वाला सच सामने आया कि हर साल हजारों सैंपल जांच के लिए आते हैं, लेकिन कई की रिपोर्ट लंबे समय तक लंबित रहती है. आखिर क्यों? जानने के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट…

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में 22 बच्चों की मौत से पूरा देश स्तब्ध है. इस बीच सवाल उठ रहे हैं कि कफ सिरप के सैंपलों की समय पर जांच क्यों नहीं हुई. ‘आजतक’ ने जब इसकी पड़ताल की, तो कई हैरान करने वाली बातें सामने आईं. मध्य प्रदेश में खाद्य पदार्थों और दवाओं में मिलावट की जांच के लिए तीन FDA (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) लैब हैं, लेकिन उन पर इतना दबाव है कि समय पर सैंपल जांच नहीं हो पा रही. पुराने तौर-तरीकों के कारण सैंपल समय पर लैब नहीं पहुंचते, जो जांच में देरी की बड़ी वजह है. मध्य प्रदेश फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MPFDA) की टेस्टिंग क्षमता बेहद सीमित है. मध्य प्रदेश में तीन FDA लैब हैं: भोपाल, इंदौर और जबलपुर.

  • MPFDA की टेस्टिंग क्षमता प्रतिवर्ष 6000 से 6500 सैंपल है.
  • लैब में प्रतिमाह 450-500 और प्रतिवर्ष 5500-6500 सैंपल जांच के लिए आते हैं.
  • प्रत्येक सैंपल की जांच में पांच से छह पैरामीटर जांचे जाते हैं.
  • एक सैंपल की जांच में दो से तीन दिन लगते हैं.
  • इस हिसाब से हर महीने करीब 1625 सैंपल की जांच होनी चाहिए.
  • लेकिन वर्तमान में प्रतिमाह केवल 450 सैंपल की जांच हो पा रही है.
  • नतीजतन, तीनों लैब में कुल 5575 सैंपल की जांच लंबित है.

अब देखते हैं कि लैब में कितने पद खाली हैं और सैंपल कलेक्शन के लिए पूरे प्रदेश में कितने ड्रग इंस्पेक्टर हैं, क्योंकि कर्मचारियों की कमी भी जांच में देरी का बड़ा कारण है.वर्तमान में पूरे प्रदेश में 79 ड्रग इंस्पेक्टर कार्यरत हैं.
प्रत्येक ड्रग इंस्पेक्टर को हर महीने कम से कम 5 सैंपल इकट्ठा करना होता है.

  • 1 पद ज्वाइंट कंट्रोलर ऑफ ड्रग टेस्टिंग लैबोरेटरी का खाली है.
  • 2 पद प्रथम श्रेणी ड्रग एनालिस्ट के खाली हैं.
  • 9 पद द्वितीय श्रेणी ड्रग एनालिस्ट के खाली हैं.
  • 4 पद माइक्रोबायोलॉजिस्ट के खाली हैं.
  • 3 पद फार्माकोलॉजिस्ट के खाली हैं.
  • 1 पद फार्मास्यूटिकल केमिस्ट का खाली है.
  • 5 पद औषधि प्रयोगशाला में कंप्यूटर ऑपरेटर के खाली हैं.
  • 1 पद असिस्टेंट एनालिस्ट का खाली है.
  • असिस्टेंट ड्रग एनालिस्ट, ड्रग एनालिस्ट, साइंस असिस्टेंट, डार्क रूम सहायक के 27 पद खाली हैं.
  • तकनीकी सहायक के 4 पद खाली हैं.
  • 5 पद लैब असिस्टेंट के खाली हैं.
  • लैब अटेंडेंट के सभी 10 पद खाली हैं.

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि MPFDA लैब में सैंपल जांच में देरी क्यों हो रही है. लेकिन यह केवल लैब में सैंपल पहुंचने के बाद की प्रक्रिया की तस्वीर है. सैंपल का समय पर लैब पहुंचना भी किसी चुनौती से कम नहीं. आज के तेजी से बदलते समय में भी सैंपल डाक विभाग के जरिए भेजे जाते हैं. छिंदवाड़ा से भोपाल लैब भेजे गए दवा के सैंपल को 270 किलोमीटर का सफर तय करने में तीन दिन लगे, क्योंकि गंभीर मामले के बावजूद इन्हें साधारण डाक से भेजा गया.

‘आजतक’ की टीम जब भोपाल की FDA लैब में थी, तो एक ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला, जहां ग्वालियर से 7 अक्टूबर को भेजा गया सैंपल 10 अक्टूबर को साधारण डाक से भोपाल पहुंचा. इस बारे में मध्य प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर दिनेश श्रीवास्तव ने ‘आजतक’ से बातचीत में बताया कि कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जा रही है और लैब के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा रहा है. हालांकि, टेस्टिंग समय लेने वाली प्रक्रिया है, लेकिन आपातकालीन मामलों को प्राथमिकता दी जाएगी और इसके लिए सलाह जारी की जाएगी कि जरूरी मामलों में विशेष वाहक के जरिए सैंपल FDA लैब भेजे जाएं. लेकिन FDA लैब की कमियां यहीं खत्म नहीं होतीं.

मध्य प्रदेश के क्षेत्रफल को देखते हुए केवल तीन FDA लैब पर्याप्त नहीं हैं. खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने मोबाइल ड्रग टेस्टिंग वैन खरीदी थी, जो फील्ड में दवाओं की जांच को तेज और सुगम बनाने के लिए थी. लेकिन यह वैन भोपाल में खड़ी जंग खा रही है और पूरी तरह बेकार हो चुकी है. इसके आसपास झाड़ियां उग आई हैं, और लाखों रुपये की यह मोबाइल लैब अब केवल सफेद हाथी बनकर रह गई है.

‘आजतक’ की पड़ताल से साफ है कि छिंदवाड़ा में जहरीली कफ सिरप से प्रभावित बच्चों के लिए, जो नागपुर के अस्पतालों में भर्ती थे, हर पल कीमती था. लेकिन सैंपल भेजने में कई दिनों की देरी ने उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया. जहां समय पर जांच होनी चाहिए थी, वहां डाक की धीमी रफ्तार ने जिंदगियों को दांव पर लगा दिया. जहां लैब को सतर्क और तेज होना चाहिए था, वहां कमजोर बुनियादी ढांचा और रिक्त पदों ने सिस्टम को पंगु बना दिया. अब सरकार को इस त्रासदी से सबक लेकर सुधार करने होंगे, ताकि भविष्य में ऐसी गलतियों की कोई गुंजाइश न रहे.

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