0

‘यहूदी राष्ट्र नहीं बनने दूंगा’, अरब देशों में मसीहा कैसे बन गया था हिटलर? हीरो मानने लगे थे मुसलमान – netanyahu gaza conflict hitler comparison erdogan arab world response ntcprk


‘मुझे यकीन नहीं हो रहा… दुनिया मुझे फिर से पसंद करने लगी है.’, ट्रंप के गाजा पीस प्लान के पहले चरण पर जब हमास और इजरायल के बीच सहमति बन गई तो इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अपनी खुशी रोक नहीं पाए. गाजा पर हमलों के लिए नेतन्याहू अंतरराष्ट्रीय आलोचना झेल रहे हैं और दुनिया के देश, खासकर अरब देश उन पर वॉर क्रिमिनल होने का आरोप लगा रहे हैं. गाजा पर हमलों के लिए नेतन्याहू पर गाजा में नरसंहार के आरोप लगे और कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने उनकी तुलना हिटलर से कर दी. 

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन तो गाजा में इजरायल के हमले की शुरुआत से ही नेतन्याहू को हिटलर बताते आए हैं. 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर हमास के हमले के बाद नेतन्याहू की सेना ने गाजा में हमले शुरू किए थे. इजरायली हमले में गाजा पूरी तरह तबाह हो चुका है और 65 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं जिसमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं.

गाजा में भीषण हमलों के लिए नेतन्याहू की आलोचना करते हुए दिसंबर 2023 में एर्दोगन ने कहा था, ‘वे (नेतन्याहू) हिटलर की आलोचना करते हैं लेकिन उनमें और हिटलर में क्या अंतर है? वे हमें हिटलर की यादें ताजा करा रहे हैं. नेतन्याहू जो कर रहे हैं और हिटलर ने जो किया था, उससे जरा भी कम नहीं है. उन्होंने हजारों गाजावासियों को मार डाला है.’

कतर पर इजरायली हमले बाद भी एर्दोगन ने नेतन्याहू को कहा था हिटलर

इसी साल सितंबर में जब इजरायल ने कतर की राजधानी दोहा पर हमास प्रतिनिधिमंडल को निशाना बनाते हुए हमला कर दिया था, तब भी एर्दोगन ने नेतन्याहू को हिटलर जैसा बताया था. उन्होंने कहा था, ‘नेतन्याहू हिटलर के रिश्तेदार जैसे हैं… जिस तरह हिटलर अपने सामने आने वाली हार को नहीं देख सका था, उसी तरह नेतन्याहू को भी आखिर में वही अंजाम भुगतना पड़ेगा.’

फिलिस्तीनी राष्ट्र के मुद्दे को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति भले ही आज इजरायली प्रधानमंत्री को टार्गेट करने के लिए हिटलर के नाम का सहारा ले लें, लेकिन एक वक्त था जब अरब देश हिटलर को मसीहा मानते थे. अरब के मुसलमान लंबे समय तक हिटलर को अपना रक्षक मानते रहे और जब उसका असली चेहरा सामने आया तब जाकर हिटलर के प्रति उनका नजरिया बदला.

कैसे एक साथ जुड़ गए अरब देश और हिटलर?

जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर दुनिया में तानाशाही, यहूदी-विरोध और नरसंहार के प्रतीक के रूप में जाना जाता है. लेकिन 20वीं सदी के मध्य में अरब दुनिया के कई हिस्सों में उनकी छवि एक अलग ही दिशा में ढल रही थी.

1930–40 के दशक में अधिकांश अरब देश ब्रिटेन और फ्रांस के औपनिवेशिक शासन के अधीन थे. उसी दौरान फिलिस्तीन में बड़ी संख्या में यहूदी बसाए जा रहे थे. इसे लेकर अरब जनता में गुस्सा भड़क उठा. अरब देशों ने तब हिटलर और उसकी नाजी पार्टी की यहूदी विरोधी नीतियों को अपने संघर्ष से जोड़ लिया.

मिस्र-अमेरिकी विद्वान और हॉवर्ड डिविनिटी स्कूल में प्रोफेसर डॉ. लैला अहमद ने अपने संस्मरण ‘A Border Passage: From Cairo to America- A Woman’s Journey’ में लिखा है, ‘उस दौर में कई अरब लोगों के लिए हिटलर पश्चिमी ताकतों के दुश्मन के रूप में दिखता था. इस वजह से अरब देशों ने उसे संभावित सहयोगी की तरह देखा.’ 

फिलिस्तीन पर क्या सोचता था हिटलर?

हिटलर फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र (जो आगे चलकर इजरायल बना) के विचार के खिलाफ था. उसका मानना था कि अगर ऐसा होता है तो इससे ब्रिटिश प्रभाव बढ़ेगा और दुनिया में यहूदियों का विस्तार हो जाएगा.

उसके लिए फिलिस्तीन मानवीय चिंता का विषय नहीं बल्कि एक रणनीतिक मोर्चा था. इतिहासकारों का कहना रहा है हिटलर ने फिलिस्तीन को कभी प्राथमिकता नहीं दी. वो अरब राष्ट्रवाद को केवल ब्रिटिश साम्राज्य को कमजोर करने के हथियार के रूप में देखता था.

लेबनानी इतिहासकार और राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर गिलबर्ट अचकर ने यह विश्लेषण अपनी किताब ‘The Arabs and the Holocaust: The Arab-Israeli War of Narratives’ में लिखा है, ‘हिटलर ने अरबों को केवल अपने दुश्मन को कमजोर करने के लिए और यहूदियों के खिलाफ लड़ाई में एक अस्थायी सहयोगी के रूप में देखा.’

नाजी प्रोपेगैंडा मशीनरी का अरब देशों में प्रभाव

नाजी जर्मनी ने अपने प्रोपेगैंडा को फैलाने के लिए मजबूत मशीनरी बनाई थी. इसकी देखरेख Reich Ministry of Public Enlightenment and Propaganda करती थी और इसी का इस्तेमाल कर अरब देशों में हिटलर को मसीहा की तरह पेश किया गया.

नाजी जर्मनी ने अरब देशों में रेडियो ब्रॉडकास्टिंग और पर्चों के जरिए संदेश फैलाया कि हिटलर उपनिवेशवाद और जायोनिज्म (यहूदी राष्ट्रवाद) का विरोधी है. अरब देशों के लोग उसे अपना मसीहा समझने लगे और फिलिस्तीनियों को भी लगा कि एक स्वतंत्र राष्ट्र हासिल करने में हिटलर उनकी मदद कर सकता है.

नाजी जर्मनी की प्रोपेगैंडा रेडियो ब्रॉडकास्टिंग काहिरा, दमिश्क और बगदाद जैसे शहरों में सुने जाते थे. इतिहासकारों का कहना है कि नाजी प्रोपेगैंडा ने अरब समाज में हिटलर की छवि को एक पश्चिम-विरोधी हीरो की तरह गढ़ा, जबकि असलियत में उसका मकसद सिर्फ ब्रिटिश प्रभाव को कमजोर करना था.

यरूशलम के ग्रैंड मुफ्ती से मुलाकात कर हिटलर अरबों में और लोकप्रिय हुआ

नवंबर 1941 में हिटलर ने यरूशलम के ग्रैंड मुफ्ती अमीन अल-हुसैनी से बर्लिन में मुलाकात की. मुफ्ती ने फिलिस्तीन में यहूदियों के बसाहट को रोकने के लिए हिटलर से समर्थन मांगा.

टाइम मैगजीन ने दोनों की मुलाकात का किस्सा छापा था जिसके मुताबिक,  अल हुसैनी ने हिटलर से कहा था, ‘जर्मनों और अरबों के दुश्मन एक ही हैं: अंग्रेज, यहूदी और कम्यूनिस्ट.’ हिटलर ने तब मुफ्ती से कहा था, ‘भरोसा रखें, अगर मैं युद्ध (द्वितीय विश्व युद्ध) जीत जाता हूं तो कभी यहूदी राष्ट्र नहीं बनने दूंगा.’

इस दौरान मुफ्ती ने हिटलर से अरबों के समर्थन में घोषणा करने की मांग की जिसे हिटलर ने ठुकरा दिया था. उसने कहा था कि फिलहाल इसके लिए सही वक्त नहीं है.

इतिहासकारों का मानना है कि ग्रैंड मुफ्ती से हिटलर की मुलाकात का अरबों पर बहुत असर हुआ क्योंकि वो फिलिस्तीनी अरबों के सबसे प्रमुख धार्मिक और राजनीतिक नेता माने जाते थे. मुलाकात के बाद अरब समाज में हिटलर की छवि ‘इस्लामी दुनिया के साथी’ के रूप में और मजबूत हुई.

अरबों का मसीहा लेकिन हकीकत कुछ और

नाजी प्रोपेगैंडा और ग्रैंड मुफ्ती से मुलाकात जैसे राजनीतिक संकेतों के जरिए हिटलर को कुछ अरब देशों में मसीहा या हीरो की तरह पेश किया गया.

लेकिन हकीकत में हिटलर का मकसद अरबों की मदद करना नहीं था बल्कि वो अपने फायदे के लिए अरबों के साथ अस्थायी तौर पर जुड़ा था. उसका असली मकसद ब्रिटिश साम्राज्य को कमजोर करना और यहूदियों का सफाया था.

Jewish Virtual Library के मुताबिक, भले ही हिटलर ने मुफ्ती से मुलाकात की लेकिन दूसरे समुदाय के लोगों को लेकर उसके मन में जो घृणा थी, वो कम नहीं हुई. वो अरबों को भी नाजियों के नस्ल से कमतर मानता था. इसी जातिवादी नजरिए के चलते हिटलर जब ग्रैंड मुफ्ती से मिला तब न तो उसने उनसे हाथ मिलाया और न ही उनके साथ कॉफी पी. लेकिन उस वक्त ये सब बातें अरबों के लिए गौण साबित हुईं.

हालांकि, हिटलर को लेकर अरबों की धारणा उस वक्त बदल गई जब होलोकास्ट और नाजियों के किए अपराध सामने आए. हिटलर ने लगभग 60 लाख यहूदियों का उत्पीड़न और नरसंहार किया था. वो नाजियों को पूरी तरह मिटाना चाहता था.

उसके अमानवीय कारनामे जब पूरी दुनिया के सामने आए तब अरब समाज में भी हिटलर को लेकर नजरिया बदला. अरब देशों की नई पीढ़ी हिटलर को किसी मसीहा की तरह नहीं बल्कि एक तानाशाह और हत्यारे की तरह ही देखती है. 

—- समाप्त —-