मायावती ने लखनऊ रैली में जो कुछ कहा उसका फोकस उत्तर प्रदेश की राजनीति है. लेकिन, असर बिहार तक हो सकता है. बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए 6 और 11 नवंबर को वोटिंग होने जा रही है. 14 नवंबर को नतीजे आएंगे.
देखें तो मायावती ने जो पॉलिटिकल लाइन ली है, वो कोई नई बात भी नहीं है. पहले भी मायावती पर बीजेपी की मददगार होने के आरोप लगते रहे हैं. राहुल गांधी तो मायावती पर केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के दबाव में होने का आरोप तक लगा चुके हैं. प्रियंका गांधी तो मायावती को बीजेपी का अघोषित प्रवक्ता तक बता चुकी हैं.
2022 के यूपी विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए आजमगढ़ सहित दो उपचुनावों में तो समाजवादी पार्टी की हार की वजह भी बीएसपी उम्मीदवार को ही माना जा रहा था. लेकिन मायावती अब अपने राजनीतिक विरोधियों के इल्जामात से बिल्कुल बेपरवाह नजर आने लगी हैं.
बिहार चुनाव में भी बीजेपी के सामने चुनौती तेजस्वी और लालू यादव की आरजेडी, और महागठबंधन में सहयोगी कांग्रेस ही है. लखनऊ रैली में मायावती के निशाने पर रहे अखिलेश यादव महागठबंधन के सपोर्ट में खड़े हैं, जबकि बहुजन समाज पार्टी बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है. जाहिर है, यूपी की तरह बिहार में भी बीएसपी की रणनीतियां बीजेपी के लिए मददगार साबित हो सकती हैं – फर्क बस ये है कि अब ये सब खुलेआम देखने को मिल सकता है.
यूपी में बनी रणनीति बिहार में लागू
बीएसपी नेता मायावती ने समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में तुलना करने के लिए यूपी के एक छोटे से लेकिन महत्वपूर्ण वाकये को पैमाने के तौर पर पेश किया है. और, उसी एक उदाहरण के जरिए ये समझाने की कोशिश की है कि दोनों दलों में से कौन दलितों का हितैषी हो सकता है. अव्वल तो वो बहुजन समाज पार्टी को ही दलितों का असली हितैषी बताती हैं, लेकिन सपा की तुलना में भाजपा को बेहतर बता रही हैं.
मायावती ने बीएसपी सरकार के दौरान बनवाये गये स्मारकों की देखरेख करने के लिये उत्तर प्रदेश की मौजूदा बीजेपी सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया है. मायावती के मुताबिक, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने भी वैसे ही काम किया है जैसे उनकी सरकार में हुआ करता था, और जिसे समाजवादी पार्टी के शासन में अखिलेश यादव ने पूरी तरह नजरअंदाज किया था.
बीएसपी नेता ने बीजेपी सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया था. और, बीजेपी की तरफ से मायावती के आभार के लिए धन्यवाद दिया गया है. यूपी की बीजेपी सरकार के मंत्री असीम अरुण ने कहा है, बहन जी ने योगी जी को धन्यवाद दिया… हम बहन जी का धन्यवाद करते हैं. बहुत बड़ा दिल दिखाया.
अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के बराबर ही मायावती के निशाने पर राहुल गांधी की कांग्रेस भी है, दलितों के मुद्दे पर बीजेपी को वो अब बेहतर मानती हैं. पहले मायावती भाजपा और कांग्रेस दोनों को एक जैसा ही बताती रही हैं, एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ. अब खुलकर फर्क बता दिया है.
मानकर चलना होगा कि बिहार चुनाव कैंपेन के दौरान आकाश आनंद बीएसपी नेता की राजनीतिक लाइन को आगे बढाएंगे. आकाश आनंद को मायावती ने बीएसपी का मुख्य राष्ट्रीय समन्वयक बनाया है. बीएसपी में तीन राष्ट्रीय समन्वयक भी बनाए गए हैं, जो आकाश आनंद को रिपोर्ट करते हैं. राष्ट्रीय समन्वयक रामजी गौतम बिहार चुनाव में बीएसपी के प्रभारी हैं – और आकाश आनंद बिहार चुनाव के मद्देनजर सर्वजन हिताय जागरण यात्रा भी की है.
बिहार चुनाव में बीएसपी का कैंपेन किसके लिए
मायावती ने आकाश आनंद के नेतृत्व में निकाली गई सर्वजन हिताय जागरण यात्रा को सफल आयोजन बताया है. निश्चित रूप से मायावती की बातों को आकाश आनंद ज्यादा उत्साह के साथ बिहार चुनाव कैंपेन में आगे बढ़ाएंगे – खास बात ये है कि वो राजनीतिक लाइन सीधे सीधे बीजेपी के पक्ष में जाती है.
मायावती ने बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की वजह भी बताई है. जैसे वो पहले भी कह चुकी हैं, गठबंधन की सूरत में बीएसपी के वोट तो दूसरों दलों को मिल जाते हैं, लेकिन उनके वोट बीएसपी को ट्रांसफर नहीं होते. यही कारण बताते हुए मायावती ने 2019 में सफल रहे सपा-बसपा गठबंधन भी तोड़ लिया था. 2019 के आम चुनाव में बीएसपी को 10 लोकसभा सीटें मिली थीं, जबकि 2014 और 2024 दोनों चुनावों में बीएसपी का खाता जीरो बैलेंस पर पहुंच गया.
वैसे 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मायावती ने बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM और उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय मोर्चा के साथ गठबंधन किया था. उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल एनडीए में हैं, और पिछले चुनाव में पांच विधानसभा सीटें जीतने वाले असदुद्दीन ओवैसी अकेले चुनाव लड़ रहे हैं.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी ने 230 सीटों पर चुनाव लड़ा था. रामगढ़ और चैनपुर विधानसभा सीटें बीएसपी ने जीते भी थे. भी मिली थी. 2020 के चुनाव में तो बीएसपी ने गठबंधन भी किया था, लेकिन 2015 में अकेले ही 228 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन कामयाबी बिल्कुल नहीं मिल पाई थी.
जब यूपी में बीएसपी 1 विधानसभा सीट पर पहुंच चुकी है, तो बिहार में क्या उम्मीद की जा सकती है. लेकिन, चुनाव तो सिर्फ सीटें जीतने के लिए ही लड़े नहीं जाते. और, अब तो बीजेपी से मायावती की सहानुभूति भी सामने आ चुकी है. 2022 के यूपी चुनाव में मायावती पर बीजेपी की मदद पहुंचाने के आरोप भी लगे थे. और, तब अमित शाह का ये कहना कि बीएसपी की प्रासंगिकता खत्म नहीं हुई है, तब मायावती के लिए आभार प्रकट करने जैसा ही लगता है.
अब बिहार विधानसभा चुनाव में आकाश आनंद के कैंपेन की दशा और दिशा क्या होगी, तस्वीर बहुत धुंधली नहीं लगती – जो भी होगा, मायावती के दिशानिर्देशों के दायरे में ही होगा.
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