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नोबेल शांति पुरस्कार: कैसे मिलता है ये अवार्ड, और ट्रंप को क्यों नहीं मिलेगा – why us president donald trump will not get nobel peace prize 2025 opnd1


नोबेल शांति पुरस्कार दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान है, जो उन लोगों को मिलता है जो शांति, भाईचारा और दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं. अमेरिकी राष्‍ट्रपति ने दुनिया को कितना बेहतर बनाया है, इस पर अलग से बहस हो सकती है. लेकिन, ट्रंप खुद को इस मामले में इतिहास पुरुष मानते हैं. बहरहाल, अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के हिसाब से दिए जाने वाले इस अवार्ड  के नियम कुछ ऐसे हैं, जिनकी वजह से ट्रंप इससे फिलहाल दूर नजर आते हैं. अवार्ड देने वाली नॉर्वे की कमेटी ने नामांकन प्रक्रिया को काफी हद तक पारदर्शी और कुछ हद तक बेहद गोपनीय बनाया हुआ है. नोबेल शांति पुरस्‍कार पर ट्रंप के दावे का अपना गुण-दोष है, लेकिन इस पुरस्‍कार के लिए नामांकन करने वाली टाइमलाइन से वे पहले ही पिछड़ गए हैं. आइए, इसे आसान भाषा में समझते हैं और ये भी देखते हैं कि इस बार डोनाल्ड ट्रंप को ये पुरस्कार क्यों नहीं मिलेगा.

नामांकन का खेल: जनवरी तक का मौका

2025 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन 2024 के सितंबर से शुरू हो गए थे. प्रक्रिया ये है कि कोई भी बड़ा प्रोफेसर, पूर्व राष्ट्रपति, या शांति संगठन वाला शख्स किसी को नामित कर सकता है. बस एक ऑनलाइन फॉर्म भरना होता है, जिसमें ये बताना पड़ता है कि वो शख्स शांति के लिए क्या कर रहा है. हां, खुद को नामांकन देने की इजाजत नहीं होती है. नामांकन की आखिरी तारीख 31 जनवरी होती है. यानी, ट्रंप ने 20 जनवरी को शपथ ली थी, और उसके 11 दिन बाद नामांकन दाखिल करने का समय खत्‍म हो गया. इस बार 2025 के लिए 338 लोग या संगठन इस अवार्ड के लिए नामित हुए हैं. इनमें 244 लोग और 94 संगठन हैं. इन सभी नामों को 50 साल तक गुप्त रखा जाएगा. ताकि कोई हेरफेर न हो. यही नियम है.

फिर कमेटी नामांकन लिस्‍ट को छोटा यानी शार्ट लिस्‍ट करती है: ये फरवरी में होता है

31 जनवरी के बाद नोबेल संस्थान सारे नामांकन चेक करता है. जो फर्जी या गलत होते हैं, हटा दिए जाते हैं. फिर फरवरी के मध्य में ये लिस्ट नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी को दे दी जाती है. ये कमेटी पांच लोग मिलकर बनाते हैं, जिन्हें नॉर्वे की संसद चुनती है. ये लोग सारी लिस्ट देखते हैं और एक छोटी-सी लिस्ट बनाते हैं, जिसमें कुछ खास लोग या संगठन होते हैं, जिन्हें फिर और जांचना होता है. ये काम बड़ा जटिल है, क्योंकि अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के हिसाब से शांति के लिए बड़ा योगदान चाहिए.

एक्‍सपर्ट ओपिनियन: अप्रैल तक का काम

लिस्ट छोटी हो जाने के बाद कमेटी कुछ खास सलाहकारों और नॉर्वे या दुनिया भर के विशेषज्ञों से मदद लेती है. ये लोग नामांकित लोगों पर लंबी-चौड़ी रिपोर्ट बनाते हैं. अप्रैल तक पहली रिपोर्ट तैयार हो जाती है, जिसमें ये बताया जाता है कि फलां शख्स ने शांति के लिए क्या किया. जैसे किसी जंग को रोकना या मानवाधिकारों की रक्षा करना. कमेटी इन रिपोर्टों को पढ़ती है और अगर जरूरत पड़ी तो और जानकारी मांगती है. ये सब बड़ा गोपनीय होता है.

मीटिंग्स का दौर: फरवरी से सितंबर

फरवरी से सितंबर तक कमेटी बार-बार मिलती है. वो हर नामांकित शख्स पर गहराई से बात करते हैं और धीरे-धीरे लिस्ट को और छोटा करते हैं. गर्मियों में और रिपोर्टें आती हैं, जिससे काम आसान हो जाता है. कमेटी का सचिवालय इस दौरान उनकी मदद करता है. ये सारी बातें गुप्त रहती हैं, ताकि कोई बाहर वाला दबाव न डाल सके. हालांकि, ट्रंप और अमेरिकी प्रशासन में उनके सहयोगियों ने समय समय पर इस कमेटी का जिक्र करके दबाव बनाने की कोशिश की है.

The nomination process step by step

आखिरी फैसला: अक्टूबर में

अक्टूबर की शुरुआत तक, यानी ज्यादा से ज्यादा 1 अक्टूबर तक, कमेटी वोटिंग करती है. बहुमत से फैसला होता है कि कौन जीतेगा. ये फैसला पक्का होता है, कोई अपील नहीं कर सकता. विजेता का नाम तब तक गुप्त रहता है, जब तक घोषणा न हो.

ऐलान: अक्टूबर के पूरे हफ्ते का पहला शुक्रवार

विजेता का नाम अक्टूबर के पहले पूरे हफ्ते के शुक्रवार को ओस्लो में बताया जाता है. इस बार 2025 में ये 10 अक्टूबर को सुबह 11 बजे (सीईएसटी) होगा. प्रेस कॉन्फ्रेंस होती है, जिसे पूरी दुनिया देखती है.

पुरस्कार समारोह: 10 दिसंबर

10 दिसंबर को ओस्लो सिटी हॉल में बड़ा समारोह होता है. विजेता नोबेल लेक्चर देता है, मेडल, डिप्लोमा और करीब 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (भारतीय रुपयों में अभी करीब 10 करोड़ रुपए) की राशि लेता है. ये सब टीवी पर दिखाया जाता है.

अब बात ट्रंप की: क्यों नहीं मिलेगा पुरस्कार?

इस बार नोबेल शांति पुरस्‍कार के दावेदारों में सबसे बड़ा नाम डोनाल्ड ट्रंप का है. जिस पर उनकी राजनीति सबसे ज्‍यादा हावी है. ट्रंप और उनके समर्थकों का दावा है कि उन्हें अब्राहम एग्रीमेंट (2020 में इजरायल और कुछ अरब देशों के बीच डील), गाजा युद्धविराम और कंबोडिया-थाईलैंड सीमा विवाद सुलझाने के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्‍कार दिया जाना चाहिये. इजरायल के पीएम नेतन्याहू, कंबोडिया के पीएम हन मानेत, पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, पाक सेनाध्‍यक्ष आसिम मुनीर और कुछ अमेरिकी सांसदों ने इसकी वकालत की है. ट्रंप ने कई बार कहा कि वो ये पुरस्कार चाहते हैं, लेकिन उनकी राह में कई रुकावटें हैं.

ट्रंप को यह अवार्ड न मिलने के कई कारण हो सकते हैं. पहला तो इस बार के नामांकन की टाइमलाइन को ट्रंप चूक गए हैं. उन्‍होंने 31 जनवरी यानी शपथ लेने के बाद 11 दिन में ऐसा कुछ नहीं किया जिसके लिए उन्‍हें यह अवार्ड मिलता. 9 अक्टूबर को कमेटी ने फैसला ले लिया, और तब तक गाजा में कोई युद्धविराम नहीं हुआ. ट्रंप की ये डील आखिरी वक्त की कोशिश थी, जो काम नहीं आई.

दूसरा, नोबेल कमेटी पर कोई राजनीतिक दबाव काम नहीं करता. ट्रंप ने नॉर्वे के वित्त मंत्री से बात की, लेकिन कमेटी ने साफ कहा कि वो स्वतंत्र है. तीसरा, ट्रंप के दावे, जैसे गाजा या यूक्रेन में उनकी भूमिका को कई बार झूठा साबित किया गया है. नोबेल कमेटी लंबे समय तक शांति के लिए काम करने वालों को तवज्जो देती है, न कि छोटी-मोटी डील करने वालों को. चौथा, नॉर्वे में ट्रंप को लेकर शक है, लोग दबाव से परेशान हैं. पांचवां, इस बार रूस की इरिन कोटलर या कुछ शांति संगठन ज्यादा मजबूत दावेदार हैं. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ट्रंप की संभावना ‘बिल्कुल कम’ है. ट्रंप ने खुद भी कहा, ‘वे मुझे कभी नहीं देंगे.’ न्‍यूज एजेंसी एएफपी (AFP) के मुताबिक, एक विशेषज्ञ ने दावा किया कि ट्रंप के पुरस्कार जीतने की संभावना प्रभावी रूप से ‘शून्य’ है, जो उनके लिए एक झटका है.

तो, इस बार ट्रंप का नंबर नहीं लगेगा. शांति पुरस्कार उसको मिलेगा, जिसका योगदान ज्यादा ठोस और लंबा होगा. हां, अगले साल यानी 2026 के दावेदारों में ट्रंप खुद को पुख्‍ता कर सकते हैं. शर्त वही है कि उन्‍हें दुनिया से पहले खुद को बेहतर और स्‍वीकार्य बनाना होगा.

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