भारतीय छात्रों के लिए कनाडा हाई एजुकेशन के लिए पसंदीदा स्थलों में से एक रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से एच-1 बी वीजा की फीस बढ़ाए जाने के बाद छात्रों का रुझान फिर कनाडा की तरफ हो रहा है.कनाडा में सुरक्षित वातावरण, पढ़ाई के बाद के अवसरों और काम करने से जुड़े अधिकारों ने इसे उनके लिए और आकर्षक बना दिया है.
हाल ही में हुए अप्लाईबोर्ड के सर्वे में पाया गया कि विदेश में पढ़ने वाले 94 प्रतिशत भारतीय छात्र अब भी कनाडा को पहली पसंद के रूप में देखते हैं. लेकिन, अब खबरें आ रही हैं कि कनाडा में कई छात्र वहां रह तो रहे हैं, लेकिन कॉलेजों से जुड़े रिकॉर्ड में उनका नाम कहीं भी नहीं है.
आईआरसीसी ने चिह्नित किए कई अंतरराष्ट्रीय छात्र
इमीग्रेशन, रेफ्यूजी एंड सिटिजनशिप कनाडा (IRCC) ने खुलासा किया है कि वहां पढ़ने वाले 47,175 अंतरराष्ट्रीय छात्रों (कुल आठ प्रतिशत) को स्टडी परमिट की शर्तों और नियमों का पालन न करने के लिए (Potentially Non-Compliant) चिह्नित किया गया है.
रिकॉर्ड से नाम गायब
डेटा के मुताबिक, साल 2024 की शुरुआत में स्टूडेंट वीजा पर कनाडा आए 47,715 विदेशी नागरिकों को उनके संस्थानों ने “अप्रवेशित” घोषित किया था, मतलब वो यूनिवर्सिटीज में पहुंचे ही नहीं. इनमें 19,582 भारतीय और 4,279 चीनी छात्र शामिल थे.
लापता छात्र कहाँ हैं?
आईआरसीसी ने स्पष्ट किया है छात्रों को इस तरह चिह्नित करना उनकी ओर से किसी भी बड़ी गड़बड़ी की पुष्टि नहीं करता. इसका मतलब है कि संस्थानों से जब छात्रों के नामांकन को वेरीफाई करने के लिए कहा गया, तो वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. संभावना है कि उन्होंने या तो पढ़ाई छोड़ दी हो या कॉलेज बदल लिया हो या फिर अपने रिकॉर्ड अपडेट नहीं किए हों, जिससे उनका नामांकन रद्द हो गया.
अधिकारियों का मानना है पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ने के कारण उनकी ट्रैकिंग और प्रवर्तन की प्रक्रिया में कई चुनौतियां आने लगी है.
देनी होती है सूचना
अगर कोई अंतरराष्ट्रीय छात्र क्लास अटेंड करना बंद कर दे, तो स्कूलों को अनिवार्य रूप से आईआरसीसी को सूचित करना होता है. इसके बाद इन मामलों को जांच और आगे की कार्रवाई के लिए कनाडा बॉर्डर सर्विस एजेंसी (सीबीएसए) के पास भेजा जाता है.
लेकिन अगर कोई स्कूल या यूनिवर्सिटी ऐसे छात्रों की जानकारी नहीं देता, तो उन्हें ट्रैक करने के लिए आईआरसीसी के पास कोई सटीक व्यवस्था नहीं है. यह इस सिस्टम की एक बड़ी कमजोरी है.
कौन है जिम्मेदार?
यूनिवर्सिटी लिविंग के संस्थापक और सीईओ सौरभ अरोड़ा कहते हैं कि ऐसे ज्यादातर मामले जानबूझकर उल्लंघन नहीं, बल्कि अपनी क्षमता से ज्यादा फैले हुए एक बड़े सिस्टम के लक्षण हैं.
वह बताते हैं कि कनाडा प्रशासन ने साल 2024 में 9 लाख से ज्यादा एक्टिव स्टडी परमिट जारी किए थे. लेकिन अचानक होने वाले फाइनेंशियल स्ट्रेस, पार्ट-टाइम नौकरियां ढूंढने में मुश्किल या अनियमित एजेंटों की गलत सलाह से अक्सर ऐसी समस्याएं हो जाती हैं, जिसका परिणाम डेटा गैप होता है. इससे यह तय नहीं होता कि वह छात्र अवैध रूप से देश में पहुंचे.
भारतीय छात्रों पर प्रभाव
आईआरसीसी के डेटा के अनुसार, कनाडा में मौजूद अंतरराष्ट्रीय छात्रों में भारतीयों की आबादी सबसे ज्यादा है. 2024 में 37 प्रतिशत से ज़्यादा भारतीय छात्र वहां गए थे. लेकिन इस मामले पर कड़ी होती जांच के कारण इस साल अप्रैल तक भारत से मंजूर होने वाले स्टडी परमिट की संख्या में 31 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि 80 प्रतिशत वीजा रिजेक्ट हो गए.
अब तक क्या हुआ?
आईआरसीसी की उप मंत्री आयशा जफर समेत अन्य अधिकारियों ने साफ किया है कि संस्थानों से प्राप्त जानकारी के आधार पर चिह्नित किए गए छात्रों की समीक्षा जारी है और वे किसी परिणाम पर नहीं पहुंचे हैं.
संसद में उठ रही मांग
इसी बीच कनाडाई सांसद मामले पर संस्थानों की जवाबदेही की मांग कर रहे हैं. कंजर्वेटिव सांसद मिशेल गार्नर ने कोनेस्टोगा और सेनेका जैसे कॉलेजों के प्रमुखों से संसद की स्टैंडिंग कमेटी ऑन सिटीजनशिप एंड इमीग्रेशन के सामने पेश होकर इन छात्रों को ट्रैक करने की प्रक्रिया समझाने की मांग की.
अब भी जा सकते हैं कनाडा?
सौरभ अरोड़ा कहते हैं कि अगर असली और अच्छी तरह से डॉक्यूमेंटेड एप्लीकेशन के साथ आवेदन करें, तो अब भी वहां पढ़ने जा सकते हैं. सिर्फ खराब डॉक्यूमेंटेशन और गलत जानकारी को फिल्टर किया जा रहा है.
उनके मुताबिक कनाडा अब शिक्षा की सुविधाओं का विस्तार करने की जगह कंट्रोल और जवाबदेही पर ध्यान दे रहा है. इससे आगे चलकर छात्रों व संस्थानों, दोनों के लिए मजबूत व्यवस्था कायम होगी.
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