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संघ के 100 साल: टीचर के स्टडी रूम में खोद डाली थी डॉ हेडगेवार ने सुरंग, किले पर फहराना था भगवा – rss sar sangh chalak Keshav Baliram Hedgewar childhood story british ntcppl


पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के बचपन की भी यही कहानी थी. उनका बचपन और किशोरावस्था भरपूर हंगामाखेज थी. स्कूल में पढ़ने की उम्र में नागपुर के सीताबर्डी किले पर लहराता यूनियन जैक (ब्रिटिश झंडा) ना जाने कितने बच्चों को तब रोज दिखता होगा, लेकिन केशव व उनके दोस्तों को वो अखर गया. उनको लगा कि वहां छत्रपति शिवाजी का भगवा ध्वज होना चाहिए.

फौरन योजना बनी कि किले तक सुरंग बनाई जाए और उस सुरंग में से वहां जाकर यूनियन जैक की जगह भगवा ध्वज फहरा दिया जाए. लेकिन सुरंग कहां से खोदी जाए? कई दिन के विचार-विमर्श के बाद टोली ने तय किया कि उनके सबसे प्रिय अध्यापक श्रीमान वाजे के घर से श्रीगणेश हो सकता है. किला वाजे के घर के पास था और इन बच्चों को उन्होंने अपना स्टडी रूम पढ़ने के लिए दे रखा था, यहां तक कि जब परिवार घर में नहीं होता था, तब भी बच्चे वहां पढ़ते थे.

सर के कमरे में खुदाई

बच्चे इंतजार करते कि कब परिवार बाहर जाए और कब वो खुदाई शुरू करें. एक दिन मौका मिला और खुदाई शुरू हो गई. कई दिन ये कार्यक्रम चला, अब तो वो उनके घर पर होते हुए भी कमरा बंद कर खुदाई करने लगे. श्रीमान वाजे को संदेह हुआ कि ये कमरा क्यों बंद कर लेते हैं. ऐसे में एक दिन उन्होंने कमरा खोलकर देख ही लिया कि एक सुरंग खोदी जा रही है, उनके होश ही उड़ गए. जाहिर है केशव व उनके दोस्तों को काफी सुनना पड़ा होगा.

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लेकिन अंदर ही अंदर वाजे बड़े खुश थे कि बच्चे कम से कम देश के बारे में तो सोच रहे हैं. बाद में यही श्रीमान वाजे केशव के बचपन की ये कहानी छत्रपति शिवाजी, उनके गुरु समर्थ रामदास और संत ध्यानेश्वर से जोड़कर सालों तक सुनाते रहे. लेकिन ये भाव बताता है कि विदर्भ के उस इलाके में छत्रपति शिवाजी महाराज के अलावा किसी और को राजा मानने को तैयार नहीं थे लोग, विशेष तौर पर केशव जैसे युवा.

क्यों नहीं लिया मिठाई का डिब्बा?

तभी तो जब क्वीन विक्टोरिया के महारानी बनने की 60वीं सालगिरह को भारत के हर स्कूल में मनाने का फरमान आया तो केशव को रास नहीं आया. सोचिए ये सालगिरह 22 जून 1897 को थी, और तब केशव की उम्र बस 9 साल 2 महीने की थी. हर शहर हर गांव में सरकारी कार्यक्रमों के अलावा हर स्कूल में उस विक्टोरिया की शान में कार्यक्रम हुए. कार्यक्रम के बाद सभी बच्चों को मिठाई का डिब्बा भी दिया गया. केशव ने घर आते ही वो डिब्बा कूड़ेदान में फेंक दिया. केशव को गंभीर और दुखी देखकर बड़े भाई महादेव ने पूछा कि तुम क्यों दुखी हो? क्या तुम्हें मिठाई का डिब्बा नहीं मिला?  नन्हे केशव का जवाब सुनकर महादेव भी दंग रह गए. केशव ने कहा, “हां मिला, लेकिन भोंसले साम्राज्य की ब्रिटिश राज के हाथों हार का कैसा उत्सव मनाना? हमारी ही हार की खुशियां मनाने में क्या आनंद है भला?”

हेडगेवार ने महारानी विक्टोरिया के आने की खुशी में मिली मिठाई को फेंक दिया था. (Photo: AI Generated)

समय बीता लेकिन केशव के तेवरों में कोई कमी नहीं आई. चाल साल बाद 1901 में प्रिंस एडवर्ड सप्तम के लिए ‘राजतिलक दिवस’ मनाए जाने का देश भर में ऐलान हुआ. नागपुर में एक टेक्सटाइल मिल हुआ करती थी ‘इम्प्रैस मिल’. जमशेदजी टाटा ने इसे शुरू किया था. उस वक्त गुलाम भारत में उद्योगपतियों की इतनी हिम्मत नहीं थी कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बोल सकें. यूं भी सरकारों से बिगाड़कर बिजनेस नहीं किया जा सकता. आजाद भारत में ही टाटा को अपनी नैनो फैक्ट्री बंगाल से गुजरात ले जानी पड़ी थी. 1977 में शुरू हुई उस मिल का नाम इम्प्रैस मिल भी क्वीन विक्टोरिया की वजह से रखा गया था.

संघ की शाखाओं में बाल्यकाल से ही सुरक्षा की ट्रेनिंग दी जाती है.

ये अलग बात है कि टाटा ने उस मिल को अंग्रेजों की मिलों से बेहतर बनाया. उस दौर में सबसे बेहतर मशीनें लगाईं, गरीब मजदूरों और आसपास की बस्ती वालों के लिए एक मेडिकल डिस्पेंसरी वहां स्थापित की और 1886 में बाकी मिलों के मुकाबले नागपुर में पेंशन व्यवस्था शुरू करने वाली ये पहली मिल थी.

शर्म की बात है… विदेशी राजा का राजतिलक मना रहे 

लेकिन एडवर्ड सप्तम का ‘राजतिलक दिवस’ मनाने के लिए अंग्रेजी सरकार से दवाब आया तो मिल प्रशासन ने उसके लिए एक भव्य आतिशबाजी समारोह का आयोजन किया. विदेशी राजा की गुलाम जनता के ज्यादातर लोग खुशी-खुशी उसे देखने आए. केशव के दोस्त भी वहां जाने के लिए चर्चा कर रहे थे, तब केशव ने कहा, “ये बड़े ही शर्म की बात है कि हम एक विदेशी राजा के राजतिलक का उत्सव मना रहे हैं. में ऐसे बेशर्म आयोजन में हिस्सा नहीं लेना चाहता”. 

रतन टाटा की यादें

तब उनके दोस्त मायूस हुए थे और उसके बाद ही नागपुर किले पर भगवा ध्वज फहराने की योजना बनी थी. एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि उन्हीं जमशेदजी टाटा ने स्वामी विवेकानंद जी की सलाह पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू की स्थापना की थी, जो आज भारत की नंबर 1 यूनीवर्सिटी है. टाटा स्टील की नींव भी उन्होंने रखी थी. उन्हीं जमशेदजी के नाती रतन टाटा जब नागपुर संघ मुख्यालय आए तो डॉ. हेडगेवारजी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए. दिलचस्प ये भी कि इम्प्रैस मिल 2002 में बंद हुई तो उसे मुंबई की एक रीयलिटी फर्म को बेच दिया गया. करीब 20 साल पहले उसे एक आवासीय कॉलोनी में बदल दिया गया और नाम दिया गया है ‘इम्प्रैस सिटी’, यानी रानी विक्टोरिया का कनेक्शन अभी बाकी है.

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