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अखिलेश-आजम की जज्बाती मुलाकात में दोनों ओर दिखी मजबूरी, लेकिन फैसला तो रामपुर से ही होगा – Akhilesh yadav Azam khan meet Rampur compulsion of politics opns2


उत्तर प्रदेश के रामपुर में 8 अक्टूबर दिन बुधवार को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और वरिष्ठ नेता आजम खान की मुलाकात हुई. 23 सितंबर को जेल से रिहा होने के करीब 16 दिन बाद हुई इस मुलाकात का इंतजार मुलाकातियों से अधिक सियासत में दिलचस्‍पी रखने वालों को था. मेन स्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया ने भी आजम और अखिलेश की मुलाकात का हाइप क्रिएट किया हुआ था. करीब एक घंटे तक चली इस मुलाकात में समाजवादी पार्टी एकता का संदेश देती दिखी, लेकिन गहराई में देखें तो यह सियासी मजबूरी और रणनीति का प्रतीक ज्यादा लग रही थी.

अखिलेश-आजम की मुलाकात में दोनों तरफ से जो बातें निकलीं और जो भाव भंगिमाएं थीं, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि रणनीति पर जज्बात हावी रहे. मुलाकात के बाद आए वीडियो और फोटोग्राफ में यही दिखता है कि दोनों के बीच दिल भले न मिले हों पर जज्बात दिखाने की भरपूर कोशिश हुई. हालांकि दोनों ओर से संबंधों पर जमी बर्फ की परतें कितनी पिघलीं यह मालूम नहीं हो सका. पर कुल मिलाकर मामला दिखाने वाला ज्यादा रहा.

आजम खान का सपा के संस्थापक नेताओं में से एक हैं और मुलायम सिंह यादव के बहुत करीबी रहे हैं. पर अखिलेश यादव से उनकी दूरियां जग जाहिर रही हैं. रामपुर, जहां मुस्लिम आबादी 50% से अधिक है, में उनका प्रभावशाली नेतृत्व सपा का गढ़ रहा है. आजम ने रामपुर को सपा का मजबूत किला बनाया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों के बीच उनकी स्वीकार्यता सपा की ताकत रही है. लेकिन हाल के वर्षों में प्रदेश की बदली राजनीति में मुसलमानों के लिए अखिलेश मजबूरी बन गए. मुस्लिम वोटर्स से मिले समर्थन ने उन्हें इस लायक बना दिया कि आजम अब उनके लिए मजबूरी नहीं रहे. यही कारण रहा कि अखिलेश यादव को जेल में बंद आजम खान से मुलाकात के लिए 23 महीने समय नहीं मिला. जेल से रिहा होने के बाद भी करीब 16 दिन बाद उनसे मिलने पहुंचकर अखिलेश यादव ने आजम खान को उनकी हैसियत दिखा दी है.

दूसरी तरफ आजम खान ने भी अखिलेश यादव से मिलने की तमाम शर्ते लादकर अपनी तरफ से भी संदेश दे दिया था वो भी इस मुलाकात को लेकर बहुत लालायित नहीं हैं. आजम ने जैसी शर्तें अखिलेश यादव से मिलने को लेकर दी थी उससे तो कई बार यही लग रहा था कहीं यह मुलाकात कहानी बनकर न रह जाए.

23 महीने बाद सितापुर जेल से रिहा होने के बाद आजम ने सपा नेतृत्व पर उनके परिवार पर 350 मुकदमे लादने पर पार्टी की ओर से मिले सीमित समर्थन पर सार्वजनिक रूप से बहुत रंज भरे तंज कसे थे. उनके तंज घायल करने वाले थे. दरअसल सपा नेतृत्व ने उनकी पैरवी में उतनी सक्रियता नहीं दिखाई, जितनी आजम की उम्मीद थी. जाहिर है कि इसे अखिलेश यादव का बड़प्पन कहें या सियासी मजबूरी जो कि वो आजम खान से मिलने रामपुर उनके घर पहुंचे.

मुलाकात के बाद अखिलेश ने कहा, आजम साहब पार्टी का खून हैं… उनकी सेहत ठीक नहीं, अच्छी बात हुई. उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि आजम पर झूठे केसों का गिनीज रिकॉर्ड बना रहे हैं. उधर आजम ने भी भावुक होकर कहा, सपा से मेरा रिश्ता मियां-बीवी जैसा… खुद से नाराज हूं.

दोनों तरफ से जो बातें हुईं वो औपचारिक ज्यादे थीं. जैसे अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा कि , क्या कहें भला उस मुलाकात की दास्तान, जहां बस जज्बातों ने खामोशी से बात की. आजम खान ने भी कहा कि वो अखिलेश से जुदा कब हुए थे, आप आग लगाने की बात करते हैं. आजम खान ने अपने पुराने अंदाज में कहा कि कोई शिकवा और शिकायत नहीं हुई मुलाकात में, पार्टी को अच्छे से रहना चाहिए बस इतनी सी बात हुई. सेहत को लेकर भी बात हुई.

आजम खान ने तंज भरे लहजे में कहा कि चोर आदमी हूं मैं, मै कहां शायर हूं. किताब चोरों का भी एक इतिहास है. मैं गया वक्त नहीं हूं. जेल में था ,कब्र में थोड़ी था. रामपुर में कोई सियासत ही नहीं रही है पिछले वर्षों में. बरसों बाद अखिलेश से मिले हैं. तकलीफों का दौर अभी खत्म थोड़ी हो गया है. मुर्गी चोरी में 30 लाख का जुर्माना इतनी लंबी सजा. जेल में और रहना पड़ेगा, इतना कहां से दूंगा. उन्होंने कहा कि अखिलेश से क्यों यह सब कहूंगा, इतनी खुद्दारी तो है मुझमें. अखिलेश ये सब पहले से जानते हैं. अखिलेश कानूनी तौर पर मेरी मदद करते रहे हैं और करते रहना भी चाहिए.

उन्होंने कहा कि अखिलेश ही आ रहे थे मुझसे मिलने, मैने कोई प्रोग्राम रखा नहीं था. किसी और को सरकार कैसे आने देती. सरकार को तो आप जानते भी हैं. रामपुर के सांसद मोहिबुल्लाह नदवी के बहाने उन्होंने एक बार फिर सपा को निशाने पर लिया.कहा कि उन्हें तो तबसे जान गया हैं जब से वह सांसद हो गए हैं. पसंद न पहले थे और न आज हैं.

आजम खान की रंज भरी बातें यह बता रही हैं कि अभी अखिलेश यादव के साथ रिश्तों पर जो बर्फ जमी हुई थी वो पिघली नहीं है. दोनों की सियासी मजबूरी है कि उन्हें जनता के सामने आकर औपचारिक बातें करनी पड़ीं. इस मुलाकात के दौरान एक पल के लिए भी कोई ऐसी अनौपचारिक घटना नहीं हुई जिसे देखकर कहा जा सके कि रिश्ते फिर से पटरी पर आ रहे हैं.

अब सारा दारोमदार आजम खान पर

10 बार के विधायक और दो बार के सांसद आजम खान की सियासत पर पकड़ में कोई कमी नहीं आई है. यही वजह है कि यूपी की राजनीति में सक्रिय सभी पार्टियां अपनी अपनी तरह से उनसे नजदीकी बना रही हैं. ऐसे में आजम खान के पास ही सारे विकल्‍प हैं. उन्‍हीं को अपना नफा-नुकसान देखना है. जेल से रिहा होने के बाद उन्‍होंने समाजवादी पार्टी नेतृत्‍व को लेकर खुलकर असंतोष जाहिर किया है. वे खुद को अकेला जरूर बताते हैं, लेकिन अपने सिसासी वजूद को लेकर वे पहले जैसे कॉन्फिडेंट हैं. ऐसे में उन्‍हीं को तय करना है कि वे सपा में किस हैसियत से रहेंगे, और यदि वे अपनी कोई नई लकीर खींचना चाहेंगे तो वे खुद ही तय करेंगे कि उसका रंग क्‍या होगा.

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