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कफ सिरप से लगने लगा डर! इसके अलावा क्या हैं विकल्प, जानिए क्या कहता है आयुर्वेद – mp chhindwara cough syrup child deaths ayurvedic cold cough treatment ntcpvp


मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में कफ सिरप से 14 से अधिक बच्चों की मौत के मामले ने पूरे देश को हिला दिया है. कुछ अन्य प्रदेशों में भी बच्चों की मौतों को इस कफ सिरप कांड से जोड़कर देखा जा रहा है. अभिभावकों और माता-पिता के बीच इस बात का डर भी बैठ रहा है कि अगर बच्चों को इस बदलते मौसम में सर्दी-खांसी से दो-चार होना पड़ गया तो क्या कफ सिरप उनके लिए सही है? या फिर उनके लिए कफ सिरप के अलावा और क्या विकल्प हैं?

कफ सिरप में गड़बड़ियों के मामले चिंताजनक
कफ सिरप यानी खांसी की दवा, जो लिक्विड फॉर्म में होती है, अब तक बच्चों की सर्दी-खांसी के लिए इंस्टैंट दवा मानी जाती रही है, लेकिन इधर हाल के कुछ वर्षों में कफ सिरप की गड़बड़ियों के मामले सामने आते रहे हैं, जिसमें बच्चों की हालत बिगड़ने के साथ ही उनकी मौत तक हो जाने का मामला शामिल रहा है. हालांकि सारी कफ सिरप बच्चों के लिए ‘नुकसान दायक’ ही हो ऐसा भी नहीं है, लेकिन एक बड़ा सच ये भी है कि सिर्फ एलोपैथी कफ सिरप ही सर्दी-खांसी के लिए दवा हो ऐसा भी नहीं है. 

आयुर्वेद का कफ दोष और ऐलोपैथ के कफ (खांसी) में फर्क
आयुर्वेद में इस तरह के मौसम के बदलावों वाले फसली बुखार, सर्दी-जुकाम के कई आसान उपचारों का जिक्र है और इन्हें सदियों से घरेलू उपचारों के तौर पर अपनाया भी जाता रहा है. सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि आयुर्वेद में शामिल कफ (जो त्रिदोषों में एक है) और ऐलोपैथी का कफ (जिसे खांसी कहते हैं) दोनों ही अलग-अलग हैं. लेकिन इनमें समानता इसलिए हो जाती है, क्योंकि कफ के असुंतलन से भी ज्वर, सर्दी-जुकाम आदि होते हैं. इसलिए कफ (खांसी) और कफ (वात-पित्त-कफ) में साम्यता हो जाती है और दोनों एक जैसे ही लगते हैं.

वास्तव में दोष नहीं कफ
आयुर्वेद में कफ भले ही एक प्रकार का दोष कहा गया है, लेकिन असल में वह कोई दोष या बुरी चीज नहीं है. कफ शरीर में बलवर्धक, पोषण को पुष्ट करने वाला, शरीर का निर्माण करने वाला और आंतरिक तंत्र को पुष्ट करने वाला प्रधान कारक है. हालांकि इसका बढ़ जाना या संतुलन से अधिक हो जाना रोग का कारण बनता है. 

कफवृद्धि का ही समय होता है बचपन
इस बारे में आयुर्वेद के जानकार डॉ. प्रदीप चौधरी (शतभिषा आयुर्वेद, लखनऊ) का कहना है कि कफ को आयुर्वेद में बहुत जरूरी माना गया है और यह जीवन का प्रथम गुण है और पहले नंबर पर आता है. इसलिए दिन का पहला भाग यानी सुबह, जीवन का पहला भाग यानी बचपन ये दोनों ही कफवृद्धि के काल होते हैं. इसलिए छोटे बच्चों को ठंडे पदार्थ खाने से मनाही होती है. इसी तरह सुबह-सुबह बहुत ठंडे खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए. 

ये उपाय अपना सकते हैं…
बच्चों को खांसी आदि हो तो सरसों के तेल में सेंधा नामक मिलाकर उनके सीने- हाथ पैर के तलवों में मालिश करनी चाहिए. इससे कफ की प्रवृत्ति कम होती है और खांसी में आराम मिलता है. शुद्ध शहद हो तो बच्चों के लिए सबसे अधिक लाभदायक है. इसकी थोड़ी मात्रा ही बच्चों को चटा दी जाए तो बढ़े हुए कफ में बहुत लाभ मिलता है और खांसी में भी आराम मिलता है.

मैदा, दही और अधिक मीठे से बनाएं दूरी
इन रोगों के होने के पीछे बच्चों की मंदाग्नि और बाहरी इंफेक्शन जिम्मेदार हैं, अगर हम मंदाग्नि को ठीक रखें तो ऐसी दिक्कतें कम होंगी. इसके लिए बच्चों को ज्यादा मीठा, मैदा, फ्रिज का सामान देने से बचना चाहिए. अगर शिशु मां के दूध पर निर्भर है तो मां को भी इसका ध्यान देना चाहिए कि वो क्या खा रही हैं. अगर मां को पाचन की समस्या होगी तो बच्चे को पाचन और सर्दी जुकाम की समस्या हो सकती है. इसलिए खानपान का ध्यान रखना जरूरी है.

बचाव के लिए बच्चों को सीधे ठंडी हवा से बचाना चाहिए, शरीर की तेल से मालिश करना चाहिए, सर्दी की आशंका होने पर, गुनगुने सरसों या तिल के तेल सेंधा नमक मिलाकर छाती और पीठ पर लगाना चाहिए. इसके अलावा आयुर्वेद के डॉ की सलाह से दवाओं का प्रयोग करना चाहिए, सितोपलादी चूर्ण, तालीसपत्रादि चूर्ण, चित्रक हरितिकी अवलेह जैसी तमाम दवाएं सदियों से प्रयोग होती आ रही हैं, वैद्य की सलाह से उपचार में इनका इस्तेमाल करना चाहिए.

 
नोएडा में आयुर्वेद के जानकार और वैद्य अच्युत कुमार त्रिपाठी (सदस्य एवं गुरु राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ आयुष् मंत्रालय भारत सरकार) कहते हैं कि बच्चों की जन्म के समय की प्रकृति ही कफज यानी कफ युक्त होती है, इसलिए मौसम बदलने पर, आहार बदलने पर, दिनचर्या आदि में बदलाव होने पर सर्दी-जुकाम होना और खांसी होना आम बात है. इसके लिए घबराना नहीं चाहिए और तुरंत ही कफ सिरप आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए. 

छोटे बच्चों के लिए मां के दूध में दी जा सकती है घुट्टी
जन्म के 15 दिन से तीन महीने की उम्र तक के जो बच्चे होते हैं, उनके लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम है जो उनमें प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. जायफल को मां के दूध में घिसकर उसकी घुट्टी दी जाए तो यह भी बहुत लाभदायक होता है. जैसी बच्चे की आयु हो,उसके अनुसार ही मां के दूध में ही केसर की न्यून मात्रा दी जाती है. ये उपाय बहुत लाभदायक हैं और आजमाए हुए हैं. 

बच्चे की उम्र बढ़ने के साथ उसके दोष की प्रकृति बदलती जाती है और इस आधार पर उसके रोग का उपचार तय किया जाता है. बड़े बच्चों को हर्ब (मसालों) का उबला पानी दिया जाता है.

आयुर्वेद में बच्चों के लिए और सर्दी खांसी के खात्मे के लिए कई तरह की औषधियां, चूर्ण, आयुर्वेदिक रस (सिरप) आदि हैं. इनमें सितोपलादि चूर्ण, जिसे शहद के साथ लिया जाता है, तालिशादि चूर्ण, जो खांसी और कफ रोगों में लाभदायक है ये भी दिए जाते हैं. आयुर्वेद के जानकार वैद्य से इनकी मात्रा लिखवाकर बच्चों को दिया जाना चाहिए.

क्या आयुर्वेद में भी हो सकते हैं नकली सिरप या दवाइयां?
एक सवाल और उठता है कि जिस तरह ऐलोपैथी में कफ सिरप के नकली होने का डर है तो क्या आयुर्वेद में ऐसी दवाइयां नकली नहीं हो सकती हैं? इस पर वैद्य अच्युत कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि आयुर्वेदिक औषधियों में केमिकल जैसा कुछ नहीं है, इसलिए वह प्रमाणित तौर पर नुकसान देह नहीं हैं. वहीं इनमें केमिकल सिर्फ प्रिजर्वेटिव के तौर पर ही इस्तेमाल होते हैं, जिनकी मात्रा बहुत कम और जरूरत भर ही होती है, ताकि इन दवाओं की रैक लाइफ कुछ अधिक दिन बनी रही.

इसलिए कफ सिरप वाले मामले में डरने की जरूरत नहीं है. बल्कि माता-पिता को चाहिए कि वह पहले लक्षणों पर गौर करें और देखें कि बच्चों को किस तरह की परेशानी हो रही है. फिर उसके अनुसार उपचार करें. सर्दी-खांसी बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता ही बढ़ाती है. इसलिए घबराना नहीं चाहिए और कफ सिरप को सबसे आखिरी विकल्प ही रखना चाहिए और बहुत छोटे बच्चों के लिए यह निषेध ही है.

क्या कहता है आयुर्वेद?
महर्षि वाग्भट द्वारा लिखित आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रंथ वात-पित्त और कफ को शरीर का निर्माणकर्ता बताता है और ऋतु परिवर्तन, आयु में बदलाव के आधार पर शरीर में इनके बदलाव और प्रभाव की बात करता है. रोग का उपचार भी इसी प्रकृति के आधार पर बताया गया है, जिसमें सर्दी-खांसी कफज रोगों की श्रेणी में रखा गया है. इसलिए सर्दी-खांसी को लेकर घबराना नहीं चाहिए और उपचार के मौजूद विकल्पों को अपनाना चाहिए.
 

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