0

बिहार में आज वोटिंग हो तो कौन सा गठबंधन सरकार बनाने के नजदीक- NDA या महागठबंधन? – Bihar election which alliance close form government NDA Mahagathbandhan opns2


बिहार में चुनाव आयोग ने आज वोटिंग की तारीख तय कर दी गई है. छह नवंबर और 11 नवंबर को दो चरणों में वोटिंग होगी. जबकि 14 नवंबर को परिणाम आ जाएंगे. जाहिर है चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के लिए अब जीवन-मरण की लड़ाई शुरू हो चुकी है. हालांकि तमाम आंकड़ों में एनडीए के समीकरण बिहार में मजबूत दिख रहे हैं पर इंडिया ब्लॉक को भी कम आंकना राजनीतिक भूल ही साबित होगा. विभिन्न ओपिनियन पोल्स और सर्वे के अनुसार, एनडीए और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-वाम दलों) का कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं है. मतलब चुनाव कांटे का है. एनडीए को महिलाओं, सवर्ण जातियों, अनुसूचित जातियों और कुछ ओबीसी वर्ग का मजबूत समर्थन मिल रहा है, जो वेलफेयर स्कीम्स जैसे महिला रोजगार योजना और बेरोजगारों के लिए भत्ते से मजबूत हुआ है. तो दूसरी तरफ महागठबंधन का मुस्लिम-यादव समीकरण इतना मजबूत है कि करीब 32 प्रतिशत वोट से तो इनकी शुरूआत ही होती है.युवाओं में तेजस्वी यादव की लोकप्रियता अगर वोट में बदलती है तो एनडीए का वोट शेयर गड़बड़ा सकता है.

 प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने एनडीए और महागठबंधन में शामिल पार्टियों की नींदें उड़ा रखी है. जनसुराज अगर थर्ड पोल के रूप में अपनी जगह में बनाने में कामयाब होती है, तो मुख्यतः एनडीए को नुकसान होना निश्चित है. आइये देखते हैं कि दोनों ही पार्टियों में किसके लिए उम्मीद ज्यादे दिख रही है?

चिराग पासवान के चलते पिछली बार जेडीयू को बड़ा नुकसान हुआ था, इस बार क्या होगा?

2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने एनडीए से अलग होकर जनता दल (यूनाइटेड) को भारी नुकसान पहुंचाया था. चिराग ने नारा दिया था ‘मोदी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं’, जिसके तहत उनकी पार्टी ने 137 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन सिर्फ एक सीट (मथनी) जीती. फिर भी, उन्होंने जेडीयू के खिलाफ रणनीतिक रूप से उम्मीदवार उतारे, खासकर जहां जेडीयू मजबूत थी. नतीजा यह हुआ कि 29-38 सीटों पर एलजेएपी के वोटों ने जेडीयू की हार सुनिश्चित की, क्योंकि वहां एलजेएपी को जेडीयू से ज्यादा वोट मिले या हार के अंतर से ज्यादा वोट पाने में सफल रही लोजपा. 

2015 में जेडीयू के 71 सीटों से गिरकर 43 पर सिमट जाना इसी का परिणाम था. चिराग ने बीजेपी के बागियों को टिकट देकर वोट काटे, लेकिन बीजेपी को कम नुकसान हुआ. जिसके चलते एनडीए में जेडीयू को बीजेपी से कम सीटें हासिल हुईं.अब 2025 के चुनावों में चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा हैं. जाहिर है कि इस बार जेडीयू के लिए खतरा नहीं है. चिराग ने हाल ही में कहा कि वह सभी 243 सीटों पर लड़ेंगे, लेकिन इसका मतलब एनडीए के साथ वोट ट्रांसफर करना है. फिर भी, सीट-शेयरिंग वार्ताओं में वह 40-70 सीटें मांग रहे हैं. जहां 2020 में उनकी पार्टी ने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था. एनडीए में प्रस्तावित फॉर्मूला के मुताबिक, बीजेपी और जेडीयू को 100-100 सीटें मिल सकती हैं. जबकि एलजेएपी को 20-28 तक. 

चिराग की पासवान का अपने समुदाय (5% आबादी) पर मजबूत पकड़ है, जो दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा है. 2024 लोकसभा में एलजेएपी ने 5 में से 5 सीटें जीतीं, जो उनकी ताकत को दिखाता है. लेकिन अगर सीट-शेयरिंग में विवाद हुआ, तो चिराग फिर वोट काट सकते हैं, खासकर 38 एससी आरक्षित सीटों पर. इससे जेडीयू का वोट शेयर (15-16%) और गिर सकता है, जबकि बीजेपी का ऊपरी जाति-एससी आधार मजबूत रहेगा. लेकिन चिराग ने स्पष्ट कहा कि नीतीश सीएम फेस हैं. 

जातिगत समीकरण किसके पक्ष में दिख रहे हैं?

बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा निर्णायक रहे हैं, और 2025 के विधानसभा चुनावों में भी यही स्थिति दिख रही है. एनडीए (बीजेपी-जेडीयू-एलजेएपी) और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-वाम) दोनों गठबंधन अपने-अपने वोट बैंकों को मजबूत करने में जुटे हैं. हाल के सर्वे और विश्लेषण के आधार पर, एनडीए के पक्ष में जातिगत समीकरण कुछ हद तक मजबूत दिख रहे हैं, लेकिन महागठबंधन भी अपने कोर वोटरों को एकजुट रखने में सक्षम है.

एनडीए को सवर्ण जातियों (ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ—लगभग 15%) का मजबूत समर्थन मिल रहा है, जो बीजेपी का परंपरागत आधार है. इसके अलावा, अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी, 30% से अधिक) और अनुसूचित जाति (एससी, 16%) का एक बड़ा हिस्सा, खासकर पासवान (5%) चिराग पासवान के प्रभाव से, एनडीए की ओर झुका हुआ है. जेडीयू का कुर्मी-कोइरी (8%) वोट बैंक नीतीश कुमार के साथ बना हुआ है. 
2024 लोकसभा चुनावों में एनडीए को 45% वोट शेयर मिला, जो ऊपरी जातियों, ईबीसी, और कुछ दलित समुदायों के समर्थन को दर्शाता है. नीतीश की वेलफेयर स्कीम्स, जैसे महिला रोजगार योजना और बेरोजगारी भत्ता ने ईबीसी और महिला वोटरों को आकर्षित किया है. चिराग पासवान की वापसी ने दलित वोटों, खासकर पासवान समुदाय, को एनडीए के पक्ष में और मजबूत किया है. 

महागठबंधन का कोर वोट बैंक मुस्लिम-यादव (एम-वाई, 17%+14%) है, जो आरजेडी का मजबूत आधार है. तेजस्वी यादव की युवा अपील और रोजगार जैसे मुद्दों ने यादव और मुस्लिम वोटों को एकजुट रखा है. इसके अलावा, कुछ गैर-यादव ओबीसी और दलित समुदाय, जैसे रविदास और मुसहर, महागठबंधन की ओर झुके हैं. 

हालांकि, ईबीसी और गैर-पासवान दलितों में उनकी पकड़ कमजोर है. 2020 में महागठबंधन को 32% वोट शेयर मिला, और 2024 में यह 36% तक बढ़ा, जो उनके कोर वोट की एकजुटता दिखाता है. 

एंटी इंकंबेंसी का कितना है असर

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ 20 साल की सत्ता के बाद एंटी-इंकंबेंसी का असर काफी गहरा दिख रहा है, लेकिन हाल की कल्याणकारी योजनाओं ने इसे कुछ हद तक कम करने की कोशिश की है.कई सर्वे में ये सामने आया कि आधे से अधिक लोग नीतीश सरकार के कामकाज से नाखुश हैं, मुख्यतः बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूमि विवाद और कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति के कारण. इतना ही नहीं तेजस्वी के मुकाबले सीएम के रूप में भी उन्हें लोग कम पसंद कर रहे हैं.

नीतीश की उम्र (74 वर्ष), स्वास्थ्य समस्याएं और बार-बार गठबंधन बदलना (2022 में महागठबंधन से एनडीए में वापसी) के चलते उनकी लोकप्रियता कम हुई है. हालांकि, नीतीश ने प्रो-इंकंबेंसी फैक्टर जोड़ने के लिए वृद्धावस्था पेंशन 400 से 1100 रुपये बढ़ाई, 75 लाख महिलाओं को स्वरोजगार के लिए 10,000 रुपये, 125 यूनिट बिजली मुफ्त और महिला सशक्तिकरण योजनाएं शुरू की गईं हैं.

ये कदम कोर वोटरों (ईबीसी, महिलाएं) को जोड़ रहे हैं, जिससे एंटी-इंकंबेंसी कम हो रही है. कुछ सर्वे में एनडीए को बढ़त दिख रही है. इसका सीधा असर बिहार में सरकार के खिलाफ किसी भी तरह के असंतोष का न दिखना है. महागठबंधन के वोट चोरी अभियान और राहुल गांधी की यात्रा ने युवाओं को प्रभावित किया पर इस तरह का माहौल नहीं दिख रहा जिसे देखकर कहा जाए कि जनता सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार है.

फ्रीबीज की घोषणाएं करके एनडीए को कितनी बढ़त मिल सकती है

बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए सरकार की फ्रीबीज घोषणाएं भी चुनाव नरेटिव सेट करने में एनडीए की मदद कर सकती हैं. महिलाओं को 10,000 रुपये स्वरोजगार के लिए, 125 यूनिट मुफ्त बिजली, बेरोजगार युवाओं को 1,000 रुपये भत्ता, पेंशन वृद्धि और 1 करोड़ नौकरियां—वोटरों को लुभाने का मजबूत हथियार साबित हो रही हैं.

ये योजनाएं मुख्यतः महिलाओं (40% से अधिक वोटर), युवाओं और गरीब परिवारों को टारगेट करती हैं, जो एंटी-इंकंबेंसी के बावजूद प्रो-इंकंबेंसी फैक्टर पैदा कर सकती हैं. हाल के ओपिनियन पोल्स में एनडीए को 131-158 सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि महागठबंधन को 66-103। फ्रीबीज से महिलाओं का वोट शेयर बढ़ सकता है, जहां 3% अधिक महिला टर्नआउट पर एनडीए को 175 सीटें मिल सकती हैं.  

नीतीश कुमार ने 20 से अधिक वादे किए, जिनमें 75 लाख महिलाओं को 10,000 रुपये का डीबीटी, आशा-ममता कार्यकर्ताओं का मानदेय दोगुना और छोटे उद्योगों के लिए सब्सिडी शामिल हैं. ये कदम 1.67 करोड़ परिवारों को प्रभावित करेंगे, खासकर ईबीसी, दलित और महिलाओं को, जो एनडीए का कोर वोट बैंक है. 2020 में महिलाओं के उच्च टर्नआउट ने नीतीश को फायदा पहुंचाया था. अब 80 लाख महिलाओं को 10,000 रुपये ट्रांसफर से यह ट्रेंड मजबूत हो रहा है. सर्वे बताते हैं कि नीतीश का महिलाओं से व्यक्तिगत कनेक्शन इन योजनाओं से और गहरा हो गया है.

—- समाप्त —-