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ऑनलाइन गेम्स का खतरनाक जाल! बच्चों को शिकार बना रहा साइबर क्राइम का नया हथकंडा – tips to protect kids from cyber crime akshay kumar nitara parental tips tvisp


आजकल के डिजिटल युग में बच्चे मोबाइल और इंटरनेट के बहुत ज्यादा करीब हैं. छोटी उम्र में ही उनके हाथ में मोबाइल और इंटरनेट का एक्सेस आ जाता है. लेकिन बच्चे नासमझ और मासूम होते हैं जिसकी वजह से वो साइबर अपराध का आसान शिकार भी बन रहे हैं. बच्चों के साथ साइबर अपराधी कई प्रकार से छल करते हैं जिनमें उनकी पहचान की चोरी, मोबाइल का एक्ससेस लेकर पैसों का गबन और कई बार वो शारीरिक और मानसिक शोषण का भी शिकार हो जाते हैं.

हाल ही में एक्टर अक्षय कुमार ने खुलासा किया कि उनकी 13 साल की बेटी नितारा कुमार से ऑनलाइन वीडियो गेम खेलते समय एक अनजान शख्स ने अश्लील तस्वीरें मांगी थीं. नितारा ने तुरंत ये बात जाकर अपनी मां को बता दी. उनकी बेटी तो बच गई लेकिन आए दिन ऐसी तमाम घटनाएं होती हैं जिनमें मासूम बच्चे साइबर अपराधियों के हत्थे चढ़ जाते हैं.

देश में तेजी से बढ़ा रहा साइबर क्राइम

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की हालिया रिपोर्ट बताती है कि देश में साइबर क्राइम के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं और बच्चों के खिलाफ क्राइम भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. रिपोर्ट में बताया गया कि 2023 में बच्चों के खिलाफ अपराध के करीब 1,77,335 मामले दर्ज किए गए जो पिछले साल की तुलना में 9.2 प्रतिशत अधिक थे. NCRB के अनुसार, 2021 से 2022 तक बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध में करीब 32% की भारी वृद्धि हुई है.

small kid with tablet (Photo: Freepik)

बच्चे साइबर अपधारियों का Easy Target

साइबर अपराधी सोशल मीडिया, कई तरह के ऐप्स और ऑनलाइन गेम्स जैसे प्लेटफॉर्म के जरिए बच्चों को निशाना बनाते हैं. वो उन्हें कई तरह के लालच देकर, विश्वास जीतकर और उनकी कमजोरियां जानकर धीरे-धीरे बच्चों और उनके माता-पिता की निजी जानकारी इकट्ठा करते हैं. इसके बाद उन जानकारियों का इस्तेमाल पैसों की वसूली, ब्लैकमेल या बैंक अकाउंड्स में सेंध लगाने के लिए करते हैं. 

ऑनलाइन गेमिंग की लत हो सकती है जानलेवा

कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक छठी क्लास के छात्र ने ऑनलाइन फ्रॉड के बाद आत्महत्या कर ली थी. जांच में पता चला कि बच्चे ने ऑनलाइन गेम खेलते वक्त अपने पिता के बैंक अकाउंट से 14 लाख रुपये साइबर अपराधियों के खाते में ट्रांसफर कर दिए. जब परिवार को इसकी भनक लगी तो तनाव और सदमे में आकर छात्र ने इतना खौफनाक कदम उठा लिया.

कैसे फैल रहा ऑनलाइन गेमिंग का जाल
भारत में ऑनलाइन गेमिंग का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और बच्चों के बीच भी गेमिंग की लत बढ़ रही है. कई ऑनलाइन गेम्स को खेलने के लिए फीस लगती है जबकि कई गेम्स फ्री होते हैं जिनकी तरफ बच्चे जल्दी आकर्षित हो जाते हैं.  हालांकि सबसे ज्यादा रिस्क मल्टीप्लेयर गेमिंग में होता है. यहां एक से ज्यादा लोग मिलकर ऑनलाइन गेम्स खेलते हैं. इस दौरान वो आपस में बातचीत भी कर सकते हैं और कई जानकारियां भी शेयर कर सकते हैं.

Harms of online gaming (Photo: Freepik)

डराने वाली बात है कि कई बार साइबर अपराधी खुद को बच्चा बताते हैं और दूसरे बच्चों के साथ गेम्स में शामिल हो जाते हैं. वो बातों-बातों में उन्हें कोई लिंक या फाइल भेजकर उनके फोन का एक्सेस ले लेते हैं. कई बार वो बच्चों से पर्सनल डिटेल्स, बैंक अकाउंट डिटेल्स, पासवर्ड्स और फोटो-वीडियो भी मांग लेते हैं. 

साइबर अपराध की दुनिया में बच्चों को कई अलग-अलग प्रकार के ऑनलाइन खतरे होते हैं जो उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे में माता-पिता का फर्ज है कि वो अपने बच्चे को साइबर अपराध से बचाने के लिए सावधानी बरतें. यहां हम आपको कुछ तरीके बता रहे हैं जिनसे माता-पिता अपने बच्चों को साइबर अपराध का शिकार होने से बचा सकते हैं.

बच्चों को इंटरनेट के फायदे और नुकसान दोनों बताएं
अपने बच्चे को साइबर अपराध से बचाने का पहला कदम उन्हें शिक्षित करना है. कई बार जब मां-बाप बिजी होते हैं और उन्हें बच्चों को खुद से दूर करना होता है तो वो उन्हें मोबाइल मोबाइल या फिर ऑनलाइन गेम में बिजी कर देते हैं. मोबाइल के साथ खेलते-खेलते बच्चे कई बार गलती से कोई भी नंबर डायल कर देते हैं. जबकि इंटरनेट के यूज और ऑनलाइन गेम्स के दौरान बरती गई लापरवाही बच्चों और उनके मां-बाप को भी मुसीबत में डाल सकती है. 

अभिभावकों को चाहिए कि वो अपने बच्चों को इंटरनेट और ऑनलाइन गेम्स की अच्छी-बुरी चीजें बताएं. अगर आप उन्हें ऑनलाइन गेम्स के नुकसान बताएंगे तो बच्चे खुद ही उनसे दूर हो जाएंगे.

माता-पिता का शिक्षित और जागरुक होना भी जरूरी

माता-पिता को अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए जागरुक और साइबर क्राइम के प्रति भली-भांति शिक्षित होना भी बेहद जरूरी है, तभी वो अपने बच्चों को सही तरीके से गाइड कर सकते हैं. अगर आप अभिभावक हैं तो आप नेशनल साइबर क्राइम पोर्टल पर जाकर भी इससे जुड़ी जानकारी इकट्ठा कर सकते हैं.

दिल्ली पुलिस साइबर क्राइम यूनिट की वेबसाइट में भी माता-पिता के लिए साइबर सुरक्षा से जुड़े कुछ सुझाव दिए गए हैं. वेबसाइट के अनुसार, सोशल मीडिया सिक्योरिटी के बारे में भी खुद को शिक्षित करें और अपने छोटे बच्चों और किशोरों को भी आगाह करें. उन्हें ऑनलाइन तस्वीरें या वीडियो पोस्ट करने के खतरों के बारे में बताएं. कंप्यूटर को बच्चों के कमरे की जगह खुली जगह पर रखें. 

माता-पिता को इस बात पर नजर रखनी चाहिए कि उनके बच्चे किन लोगों से बात कर रहे हैं और कौन-कौन सी साइट पर जा रहे हैं. यह उनकी निजता का उल्लंघन नहीं है बल्कि यह डिजिटल स्पेस में उनके पालन-पोषण का ही एक हिस्सा है.

13 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए Facebook, Instagram, SnapChat जैसे कई अन्य ऐप्स को लेकर सख्त नियम हैं. ऐसे में आप अपने बच्चे को ये नियम तोड़ने में मदद न करें.

बच्चों के व्यवहार पर नजर रखें

अगर आपको अपने बच्चे के व्यवहार में अचानक बदलाव नजर आता है तो फेसबुक और व्हाट्सएप पर उसकी ऑनलाइन एक्टिविटीज के अलावा उसकी फिजिकल एक्टिविटीज की भी जांच करें.

Unicef ने बताया, साइबर बुलिंग बच्चों के लिए बड़ा खतरा

दुनिया भर में बच्चों के अधिकारों और देखभाल के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था Unicef (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष) ने भी अपनी गाइडलाइंस में बताया कि साइबरबुलिंग में कोई व्यक्ति सोशल मीडिया, मैसेजिंग और गेम्स जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किसी और बार-बार अपमानित करने, गुस्सा दिलाने या शर्मिंदा करने के लिए करता है. 

ऑनलाइन बुलिंग आपके बच्चे के आत्मविश्वास, मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है. भले ही छोटे बच्चों के अपने सोशल मीडिया अकाउंट न हों, फिर भी वे गेमिंग एप्स या चैट रूम पर दूसरे लोगों से चैट कर सकते हैं और इस दौरान वो साइबर बुलिंग का शिकार हो सकते हैं.

इंटरनेट के एक्सेस पर कंट्रोल जरूरी
बच्चों के लिए इंटरनेट यूज करने पर लिमिट लगाना बेहद जरूरी है. आप चाहें तो यह तय कर सकते हैं कि आपका बच्चा कब और कहां इंटरनेट का उपयोग कर सकता है और वो किन वेबसाइटों या ऐप्स तक पहुंच सकता है. इंटरनेट के इस्तेमाल के दौरान अपने बच्चे पर नजर रखें. 

ओपन कम्युनिकेशन है जरूरी
अपने बच्चे के साथ अपने और उनके ऑनलाइन एक्सपीरिएंस के बारे में बात करें, चाहें वो अच्छे अनुभव हों या बुरे. अपने बच्चों के साथ यह शेयर करें कि आपको उनकी कितनी फिक्र है. इससे उनके कोमल मन में आपके प्रति विश्वास बढ़ता है और वो आपके साथ ज्यादा कम्फर्टेबल महसूस करते हैं. उन्हें इंटरनेट पर हुए किसी भी नकारात्मक अनुभव से निपटने के तरीके बताएं.

पैरेंटल कंट्रोल सेटिंग्स का इस्तेमाल करें

पैरेंटल कंट्रोल ऐसी सेटिंग्स या सॉफ्टवेयर होते हैं जिनका इस्तेमाल अभिभावक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बच्चे की एक्टिविटीज को कंट्रोल करने और मॉनिटर करने के लिए करते हैं. ये सेटिंग्स माता-पिता को गलत कॉन्टेंट तक बच्चों की पहुंच को रोकने, डिवाइस के उपयोग की समय-सीमा तय करने, ऐप डाउनलोड और ऑनलाइन शॉपिंग को कंट्रोल करने की सुविधा देते हैं.

बच्चों को निजी जानकारी गोपनीय रखना सिखाएं
अपने बच्चे को अपनी निजी जानकारी की सुरक्षा करना सिखाएं. उन्हें बताएं कि उन्हें किसी भी अनजान शख्स को अपना नाम, पता और फोन नंबर नहीं देना है. उन्हें मजबूत पासवर्ड बनाने में मदद करें और एक से ज्यादा अकाउंट के लिए एक ही पासवर्ड इस्तेमाल करने से बचें.

बच्चा साइबर अपराध का शिकार हो जाए तो क्या करें

अगर आपका बच्चा साइबर अपराध का शिकार हो जाए तो आपको इसे छिपाना नहीं है बल्कि बच्चे को भरोसे में लेकर इस घटना की तुरंत शिकायत करनी चाहिए. आपको घटना से जुड़ी जानकारी जैसे स्क्रीनशॉट, मैसेज या लिंक को पुलिस या राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल को देना चाहिए. 

ऐसा करने से न केवल पुलिस को अपराधी को पकड़ने में मदद मिलेगी बल्कि इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि भविष्य में आपका बच्चा किसी भी तरह के ऑनलाइन खतरे से सुरक्षित रह सके. अगर बच्चा बहुत घबराया हुआ है तो आप किसी काउंसलर की मदद भी ले सकते हैं. याद रखें कि ओपन कम्युनिकेशन और तुरंत एक्शन ही आपके बच्चे की सुरक्षा की गारंटी है.

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