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लखनऊ में ‘फर्जी अपहरण’ की साजिश का पर्दाफाश, बाप-बेटे निकले साजिशकर्ता, चार आरोपी गिरफ्तार – fake abduction plot defame police unravels lucknow uttar pradesh opnm2


उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक फर्जी अपहरण की साजिश का पुलिस ने पर्दाफाश कर दिया. इस मामले में पुलिस ने एक ही परिवार के तीन सदस्यों और एक स्थानीय नेता को गिरफ्तार किया है, जिन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस की छवि खराब करने के लिए अपहरण का नाटक रचा था.

एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, सुभाष (22) नामक शख्स ने अपने पिता रामकुमार (52) और छोटे भाई शुभम (19) के साथ 27 सितंबर की रात साजिश रची थी. सुभाष ने शराब के नशे में पुलिस हेल्पलाइन 112 पर कॉल करके अभद्र भाषा में बात किया. पुलिस मौके पर पहुंचकर उसे थाने ले आई.

थाने में थोड़ी देर की पूछताछ के बाद रात करीब 2 बजे पुलिस ने सुभाष को छोड़ दिया. लेकिन 20 मिनट बाद उसके पिता ने थाने में फोन कर दावा किया कि उनका बेटा गायब है. अगली सुबह तक मामला तूल पकड़ चुका था. परिजन और कुछ स्थानीय नेता अपहरण का शोर मचाने लगे. 

उन लोगों ने सोशल मीडिय पर भी पुलिस के खिलाफ मुहिम छेड़ दिया. आरोप लगाया गया कि पुलिस ने ही युवक को उठा लिया है. थाना गोसाईगंज में यह मामला राजनीतिक रंग लेने लगा. परिवार का पुलिस के साथ पहले से विवाद था और स्थानीय स्तर पर कुछ लोगों ने उन्हें उकसाया भी था. 

सहायक पुलिस आयुक्त ऋषभ रुनवाल ने बताया कि आरोपियों ने पुलिस पर दबाव बनाने और ध्यान आकर्षित करने के लिए झूठी कहानी रची. पहले बेटे को गायब दिखाया, फिर पुलिस पर आरोप लगाए. इसके बाद इस मामले की जांच शुरू की गई. पुलिस ने 200 से ज़्यादा सीसीटीवी फुटेज खंगाले.

इस दौरान सुभाष की मोबाइल लोकेशन ट्रैक की गई. मूवमेंट रीक्रिएट किया गया. इससे साबित हुआ कि वो पूरे वक्त खुद जगह बदलता रहा. परिवार से अलग-अलग नंबरों से संपर्क करता रहा. पुलिस को भ्रमित करने की कोशिश की गई. लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, कहानी की परतें खुलती गईं. 

पुलिस ने शुक्रवार को सुभाष, उसके पिता रामकुमार, छोटे भाई शुभम और स्थानीय नेता अखिलेश (45) को गिरफ्तार कर लिया. चारों के खिलाफ नई भारतीय न्याय संहिता की धारा 308(6) और 248ए के तहत मामला दर्ज किया गया है. पुलिस रिकॉर्ड से सामने आया कि उनके खिलाफ पहले भी केस दर्ज है.

एसीपी ने कहा, ”ऐसे झूठे मामले पुलिस का समय और संसाधन दोनों बर्बाद करते हैं. झूठ का पीछा करने में बिताया गया हर मिनट, उस व्यक्ति की मदद से छिन जाता है, जिसे सच में हमारी जरूरत है.” उन्होंने यह भी बताया कि जांच के लिए दशहरे से पहले 15 पुलिसकर्मियों की पांच टीम बनाई गई थीं. 

यह वह समय था जब पुलिस को त्योहारों की सुरक्षा में तैनात रहना चाहिए था, लेकिन हमें झूठ के इस जाल को सुलझाने में लगाना पड़ा. यह मामला एक बार फिर यह सवाल छोड़ गया कि व्यक्तिगत नाराजगी में जब कानून का इस्तेमाल साजिश के लिए होने लगे, तो असली अपराधों की जांच कठिन हो जाती है.

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