अमेरिका में सरकार का शटडाउन पहले कभी-कभार और कुछ दिनों के लिए होता था, लेकिन अब ये ज्यादा लंबे, ज्यादा नुकसानदायक और कहीं ज्यादा महंगे साबित हो रहे हैं. अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि हर नया शटडाउन कर्मचारियों, कारोबार और पूरी इकोनॉमी पर भारी बोझ डालता है. राजनीतिक टकराव की वजह से होने वाले ये शटडाउन अब अरबों डॉलर का नुकसान पहुंचा रहे हैं.
बढ़ते बिल से हर हफ्ते अरबों का नुकसान
कांग्रेशनल बजट ऑफिस (CBO), जो एक नॉन-पार्टिजन वित्तीय संस्था है, संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 2018–2019 का शटडाउन जो अमेरिकी इतिहास में सबसे लंबा रहा और 34 दिन चला, उसने देश की GDP को 11 अरब डॉलर से घटा दिया. इसमें से 3 अरब डॉलर 2018 की चौथी तिमाही में और 8 अरब डॉलर 2019 की पहली तिमाही में गिरे. खास बात ये कि इसमें से 3 अरब डॉलर का नुकसान हमेशा के लिए हो गया. एजेंसी के मुताबिक ये 2019 की अनुमानित सालाना GDP का 0.02% था.
इससे पहले 2013 में हुए शटडाउन ने भी भारी नुकसान पहुंचाया था. उस वक्त ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक एनालिसिस ने आंकड़ा जारी किया कि उस क्वार्टर में GDP ग्रोथ पर 0.3 पर्सेंट पॉइंट का असर पड़ा. वहीं ऑफिस ऑफ मैनेजमेंट एंड बजट ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इस दौरान नेशनल पार्क बंद होने से टूरिज्म राजस्व का नुकसान हुआ, फेडरल लोन और ग्रांट में देरी हुई और अरबों डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट अटक गए.
कुल मिलाकर सीधी बात ये है कि सरकार का हर हफ्ते बंद होना, अरबों डॉलर सीधे-सीधे उड़ा देता है. मौजूदा शटडाउन में, EY-Parthenon के विश्लेषकों ने अनुमान लगाया कि इकोनॉमी को हर हफ्ते करीब 7 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है, यानी ग्रोथ में 0.1 पर्सेंट पॉइंट की गिरावट. वहीं व्हाइट हाउस के अर्थशास्त्रियों ने पॉलिटिको की रिपोर्ट में दावा किया कि यह नुकसान असल में 15 अरब डॉलर प्रति हफ्ता तक हो सकता है.
शटडाउन जितने ज्यादा लंबे, उतने ही कठिन और महंगे
अब शटडाउन न सिर्फ महंगे हो गए हैं बल्कि लंबे भी. हाउस हिस्टोरियन के आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक 1980 के दशक में शुरुआती शटडाउन अक्सर सिर्फ एक-दो दिन चलते थे. लेकिन 1990 के दशक तक आते-आते ये हफ्तों तक खिंचने लगे. 1995-96 में चला शटडाउन 21 दिन तक चला. 2013 का शटडाउन 16 दिन चला और 2018-19 वाला तो दोगुना लंबा होकर 34 दिन तक खिंच गया. साफ है कि जो कभी छोटी-सी रुकावट थी, वो अब बड़े राजनीतिक टकराव और महंगे आर्थिक संकट का रूप ले चुकी है.
नुकसान सिर्फ पैसों का नहीं, भरोसे का भी
हालांकि 2019 के एक कानून के बाद फेडरल कर्मचारियों को बैक पे मिल जाती है, लेकिन उनकी सैलरी रुकने से शॉर्ट-टर्म खपत पर असर पड़ता है . वहीं, असली नुकसान वो है जो कभी रिकवर नहीं हो सकता जैसे कैंसल की गई यात्राएं, मिस हुए कॉन्ट्रैक्ट, अटके हुए परमिट और डिले इन्वेस्टमेंट्स. 2013 में फेडरल एजेंसियों ने में बताया कि उन्हें फीस से होने वाली कमाई में नुकसान हुआ, अरबों डॉलर के ग्रांट और लोन टल गए और कई कॉन्ट्रैक्ट्स अटक गए, जिनका असर अलग-अलग इंडस्ट्रीज पर पड़ा.
क्या है असली वजह?
आंकड़े बताते हैं कि शटडाउन का सीधा ताल्लुक वित्तीय अनुशासन से नहीं बल्कि राजनीतिक गतिरोध से है. इस सबका नुकसान उठाते हैं आम टैक्सपेयर और कारोबारी, जबकि लड़ाई सत्ता की होती है. 1970 के दशक के आखिर में शुरू हुए छोटे-छोटे शटडाउन अब कई हफ्तों तक चलने वाले आर्थिक झटके बन चुके हैं, और हर बार पहले से ज्यादा महंगे साबित हो रहे हैं. राजनीतिक लड़ाई भले ही प्रतीकात्मक हो, लेकिन सरकार के रुकने की कीमत बेहद असली और भारी है.
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