अभी तक लंदन की बिशप रहीं सारा मुलली को शुक्रवार को चर्च ऑफ इंग्लैंड का आर्चबिशप ऑफ कैंटरबरी नियुक्त किया गया. ये पहली बार है जब किसी महिला को इस पद के लिए चुना गया है और वो इंग्लैंड चर्च की आध्यात्मिक नेतृत्व की सबसे बड़ी महिला बन गई हैं.
63 साल की मुलली पहले इंग्लैंड की चीफ नर्सिंग ऑफिसर रह चुकी हैं. उनके सामने कई गंभीर चुनौतियां हैं जिसमें चर्च में महिलाओं और LGBTQ समुदाय के साथ व्यवहार को लेकर मतभेद शामिल हैं. इसके अलावा उन्हें उन मामलों से भी निपटना होगा जहां चर्च के नेताओं ने पिछले दशक से चल रहे यौन उत्पीड़न घोटालों को रोकने में पर्याप्त कदम नहीं उठाए.
105 पुरुषों के बाद मिला ये पद
चर्च में महिलाओं की भूमिका को लेकर ये एक बड़ा मील का पत्थर है. इंग्लैंड चर्च ने 1994 में पहली महिला प्रीस्ट और 2015 में पहली महिला बिशप को आदेशित किया था. सारा मुलली अब उन 105 पुरुषों के बाद इस पद पर बैठी हैं जिन्होंने इससे पहले इंग्लैंड और वैश्विक अंग्लिकन कम्यूनियन का नेतृत्व किया.
प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने मुलली की नियुक्ति का स्वागत किया और उन्हें सफलता की शुभकामनाएं दीं. उन्होंने कहा कि चर्च ऑफ इंग्लैंड इस देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इसके चर्च कैथेड्रल, स्कूल और चैरिटीज हमारे समुदाय का अहम हिस्सा हैं. आर्चबिशप ऑफ कैंटरबरी राष्ट्रीय जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.
सामने हैं ये चुनौतियां
मुलली इस पद पर पूर्व आर्चबिशप जस्टिन वेल्बी की जगह लेंगी. वेल्बी ने नवंबर में तब इस्तीफा दिया था जब एक स्वतंत्र जांच में ये पाया गया कि उन्होंने क्रिश्चियन समर कैंप्स में एक स्वयंसेवक द्वारा लगातार होने वाले शारीरिक और यौन उत्पीड़न की जानकारी पुलिस को तुरंत नहीं दी.
चर्च के अधिवक्ता एंड्रयू ग्रेसोन ने कहा कि नए आर्चबिशप के सामने गिरती चर्च की प्रेजेंस, जटिल प्रबंधन ढांचे और क्लर्जी के बीच झगड़े जैसी चुनौतियां होंगी. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है पिछले दशक के उत्पीड़न घोटालों के बाद विश्वास बहाल करना.
मुलली की नियुक्ति का असर दुनिया भर में देखने को मिलेगा. अंग्लिकन कम्यूनियन में 165 देशों में 85 मिलियन से अधिक सदस्य हैं जिनमें अमेरिका की एपिस्कोपल चर्च भी शामिल है. प्रत्येक राष्ट्रीय चर्च का अपना नेता होता है लेकिन आर्चबिशप ऑफ कैंटरबरी को पहले बराबर में ‘सबसे पहले’ माना जाता है.
11 महीने लंबी रही चयन प्रक्रिया
मुलली के चयन की प्रक्रिया लगभग 11 महीने लंबी रही और इसे MI5 के पूर्व डायरेक्टर जनरल की अध्यक्षता वाली 20 सदस्यों की समिति ने नियंत्रित किया. विशेषज्ञ जॉर्ज ग्रॉस ने कहा कि नए पोप का चयन तेजी से होता है लेकिन आर्चबिशप ऑफ कैंटरबरी का चयन महीनों तक चलता है. ये प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी नहीं है. न तो किसी उम्मीदवार की सूची प्रकाशित की गई और न ही खुला वोट हुआ.
इस लंबी प्रक्रिया के बाद सारा मुलली अब चर्च ऑफ इंग्लैंड की इतिहास में पहली महिला आर्चबिशप बन गई हैं और उनका काम चर्च को नई दिशा देने और विश्वास बहाल करने में अहम साबित होगा.
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Report by: Associated Press