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पिता हलवाई, चाचा लगाते हैं ठेला… तीन दिन तक कमरे में लटके IIT छात्र धीरज की बहुत दर्दनाक है कहानी – Father sells sweet uncle fruit kanpur IIT student Satish Saini story is very painful lclg


कानपुर आईआईटी में फाइनल ईयर के छात्र धीरज सैनी की मौत ने पूरे परिवार और परिसर को हिलाकर रख दिया है. धीरज का परिवार हरियाणा का एक साधारण और मेहनती परिवार है. पिता सतीश सैनी हलवाई का काम करते थे, और चाचा संदीप सैनी फल का ठेला लगाते थे. घर की आर्थिक तंगी इतनी बड़ी थी कि कभी धीरज का स्कूल का सर्टिफिकेट फीस न भर पाने के कारण रोक लिया गया था. परिवार ने इधर-उधर से कर्ज लेकर फीस जमा की और तब जाकर उसका सर्टिफिकेट मिला.

धीरज के IIT कानपुर में चयन ने परिवार में उम्मीदों का सूरज जगा दिया. पिता हलवाई की मेहनत, चाचा का ठेला, और पूरे परिवार की मेहनत अब रंग लाने वाली थी. सबने सोचा कि बेटे की पढ़ाई से घर की स्थिति सुधरेगी, परिवार की जिंदगी बदल जाएगी. लेकिन हुआ उल्टा धीरज चला गया. उसकी मौत ने पूरे घर में खामोशी और टूटन फैला दी. हर आंखें नम हैं, हर दिल में सवाल हैं, और किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा.

घर की स्थिति और संघर्ष

धीरज का परिवार बहुत साधारण था. पिता हलवाई का काम करके घर का खर्च चलाते थे, और चाचा फल का ठेला लगाते थे. छोटे-छोटे पैसों में परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी होती थीं. लेकिन शिक्षा के मामले में संघर्ष सबसे बड़ा था.

चाचा संदीप सैनी बताते हैं, धीरज का स्कूल का सर्टिफिकेट फीस न भर पाने के कारण रोक दिया गया था. हमने इधर-उधर से कर्ज लिया और फीस जमा की. तब जाकर उसका सर्टिफिकेट मिला. जब उसने IIT कानपुर में प्रवेश लिया, तो जैसे हमारे घर में उजाला आ गया. हमने सोचा कि अब बेटा पढ़-लिखकर पूरे परिवार का नाम रोशन करेगा. धीरज की मेहनत और संघर्ष ने पूरी परिवार की उम्मीदों को जोड़ दिया था. वह हमेशा कहता था कि जल्दी अच्छी नौकरी करूंगा और परिवार की स्थिति सुधारूंगा. उसने कभी फरमाइश नहीं की, क्योंकि जानता था कि घर की आर्थिक स्थिति कितनी कमजोर है.

IIT में चयन और परिवार की उम्मीदें

धीरज का IIT में चयन केवल उसकी मेहनत का परिणाम नहीं था, बल्कि पूरे परिवार की मेहनत और उम्मीदों का परिणाम भी था. पिता हलवाई की मेहनत, चाचा का ठेला, और परिवार की दिन-रात की संघर्ष की कहानी अब रंग लाने वाली थी.

चाचा संदीप कहते हैं, धीरज हमेशा कहता था कि मैं जल्दी अच्छी नौकरी करूंगा और सभी के लिए भविष्य की योजना बनाऊंगा. उसका सपना हमारा भी सपना था. हम सोचते थे कि अब घर की स्थिति सुधरेगी, बेटा पढ़-लिखकर हमारे संघर्ष का फल देगा. लेकिन यह सपना बहुत जल्दी टूट गया. धीरज ने मेहनत और संघर्ष से उम्मीदों का चिराग जलाया, लेकिन जीवन की सबसे कठिन लड़ाई में हार गया.

तीन दिन तक कमरे में पड़ा शव

बुधवार की सुबह, धीरज का शव उसके हॉस्टल कमरे में पाया गया. प्रशासन का कहना है कि छात्र पर निगरानी और काउंसलिंग की जाती है, लेकिन तीन दिन तक कोई नहीं जान पाया कि वह मृत पड़ा है. धीरज के कमरे में कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. एसीपी रंजीत कुमार का कहना है कि पोस्टमार्टम के बाद ही मौत के कारण स्पष्ट होंगे. यह रहस्यमय अंत परिवार और सहपाठियों को हिला कर रख गया.

परिवार का दर्द और टूटता घर

धीरज की मौत ने पूरे परिवार को हिला कर रख दिया. पिता सतीश सैनी अपने बेटे के शव को लेकर कुछ कह नहीं पाए. उनकी आंखें आंसुओं से भरी हुई थीं. चाचा संदीप सैनी ने कहा, हमारा बेटा तीन दिन तक कमरे में पड़ा रहा और हमें पता तक नहीं चला. हमारे सपनों का चिराग बुझ गया. अब घर में केवल खालीपन और तन्हाई रह गई है.

दो साल में सातवीं IIT आत्महत्या

धीरज की मौत पिछले दो साल में IIT कानपुर में सातवीं छात्र आत्महत्या है. इसके बावजूद संस्थान बार-बार दावा करता है कि छात्रों की काउंसलिंग और निगरानी की जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार हो रही आत्महत्याएं यह दर्शाती हैं कि केवल कागज़ों पर किए गए प्रयास वास्तविक मदद नहीं कर सकते. छात्र मानसिक दबाव, अकेलापन और भविष्य की चिंता में घिरे रहते हैं, लेकिन संस्थागत मदद पर्याप्त नहीं होती.

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