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Sunny Sanskari Ki Tulsi Kumari Review: घिसी-पिटी कहानी, ओवरएक्टिंग से भरी है वरुण-जाह्नवी की फिल्म – Sunny Sanskari Ki Tulsi Kumari Review varun dhawan janhvi kapoor tmovp


एक वक्त था जब वरुण धवन और डायरेक्टर ने मिलकर हमें ‘हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया’ और ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ जैसी फिल्में दी थीं. ये दोनों ही परफेक्ट पिक्चरें नहीं थीं, लेकिन मजेदार जरूर थीं. इनमें वरुण संग आलिया भट्ट का रोमांस, इमोशनल कनेक्शन और कॉमेडी थी, जिसने दर्शकों का दिल जीता है. जब फिल्म ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ का इंतजार किया जा रहा था, तब उससे भी इन्हीं सब चीजों की उम्मीद लगाई जा रही थी. हालांकि ये फिल्म कुछ और ही निकली.

क्या है फिल्म की कहानी?

पिक्चर की शुरुआत होती है, बाहुबली बने सनी संस्कारी (वरुण धवन) से, जो संस्कारी होने के साथ-साथ ‘शायरी किंग’ भी है. सनी को प्यार है अनन्या (सान्या मल्होत्रा) से. दोनों ने दो साल डेट किया, लेकिन अपने रिश्ते को सिचुएशनशिप बताकर अनन्या चली जाती है और परिवार के प्रेशर में आकर अमीर विक्रम सिंह (रोहित सराफ) से शादी के लिए हां कह देती है. अनन्या से शादी करने का सनी का सपना ही रह जाता है, लेकिन फिर उसे पता चलता है तुलसी के बारे में.

तुलसी कुमारी (जाह्नवी कपूर), विक्रम की गर्लफ्रेंड थी जिसे छोड़कर वो अपनी मां की मर्जी की लड़की अनन्या से ब्याह रचा रहा है. तुलसी, विक्रम की याद में आंसू बहा रही है और मूव ऑन करने की पुरजोर कोशिश कर रही है. मगर ऐसा कुछ हो नहीं पा रहा है. सनी और तुलसी की मुलाकात होती है, और दोनों मिलकर अपने-अपने एक्स की शादी को तोड़ने और अपने प्यार को दोबारा जीतने का प्लान बनाते हैं. अब सवाल ये है कि दोनों इसमें कामयाब होंगे या नहीं.

फिल्म में नहीं खास दम

पिक्चर की शुरुआत काफी ढीली होती है. आप इससे जुड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन आपको सनी की थकी हुई शायरी सुनने को मिलती है. कोई खास पल ऐसा नहीं आता जिसमें आपको मजा आए. धीरे-धीरे पिक्चर उस पड़ाव पर पहुंचती है, जब वरुण धवन और जाह्नवी कपूर के किरदार अपने एक्स के सामने होते हैं और वहां आप दोनों की ओवरएक्टिंग देखते हैं. किसी ने मुझे कहा था कि सालों से एक जैसी ही एक्टिंग कर रहे हैं और ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ देखकर ये बात सच तो लगती है.

वरुण धवन का मजाकिया अंदाज और उनकी खराब शायरी कुछ हद तक आपको फिल्म से जोड़ती है, लेकिन उनका ये अंदाज आप पहले भी कई फिल्मों में देख चुके हैं. जाह्नवी कपूर की परफॉरमेंस पर कमेंट कर पाना थोड़ा मुश्किल है. रोना, हंसना, मस्ती, रोमांस सब वो इस फिल्म में कर रही हैं, लेकिन असर कुछ नहीं डाल रहा.

सान्या मल्होत्रा और रोहित सराफ के साथ वही हुआ है, जो दो फेमस स्टार्स के साथ सेकेंड लीड में होने पर एक्टर्स के साथ होता है. उनका काम पसंद करने लायक स्क्रीनटाइम ही उन्हें नहीं मिला. लेकिन जितनी भी देर के लिए वो पर्दे पर थे अच्छे लगे. फिल्म का क्लाइमेक्स आते-आते आपको फर्क पड़ना बंद हो जाता है कि कौन किसे मिला और किसके प्यार में है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आप फर्स्ट हाफ में ही समझ चुके हैं कि क्या होने वाला है. बल्कि ट्रेलर से ही पता चल गया था कि क्या होने वाला है. ये कहानी बॉलीवुड में पुरानी भी तो है.

फिल्म की कहानी पेरेंट्स के प्रेशर, बिखरते रिश्तों और महिलाओं की आजादी पर बात करती है, लेकिन इसे स्क्रीनप्ले में ढंग से ढाला ही नहीं गया. पेरेंट्स का स्क्रीनटाइम ही इतना कम है कि कुछ भी आपके दिल तक नहीं पहुंचता. आप बस फिल्म देख रहे हो. उसमें किरदारों ने बढ़िया कपड़े पहने हैं, आलीशान सेट है, ‘चटपटे’ गाने हैं. ‘पनवाड़ी’ और ‘बिजुरिया’ सॉन्ग को पहले ही सुनकर पसंद किया जा चुका है. इसके अलावा फिल्म में कुछ ऐसा खास नहीं है, जिसके लिए आप बैठकर इसे अपना वक्त दें. हां, मनीष पॉल का काम मजेदार है. उन्हें स्क्रीन पर कुक्कू के किरदार में देखकर आपको सही में हंसी आती है. लेकिन मनीष का ये अवतार भी तो पुराना ही है.

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