उत्तर प्रदेश के स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को पढ़ाने वाले सरकारी शिक्षकों को TET (Teacher Eligibility Test) परीक्षा पास करने की अनिवार्यता के आदेश पर पुनर्विचार की अर्जी सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है. पिछले महीने दिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर ऑल इंडिया प्राइमरी टीचर्स फेडरेशन ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. उत्तर प्रदेश सरकार और तमिलनाडु सरकार ने भी फैसले पर कोर्ट से पुनर्विचार का आग्रह किया है.
शिक्षक संघ और यूपी सरकार ने दलील दी है कि TET की अनिवार्यता उन्हीं शिक्षकों पर लागू होती है जिनकी नियुक्ति आरटीई कानून लागू होने के बाद हुई है. यह अनिवार्यता उन शिक्षकों पर लागू नहीं होती जिनकी नियुक्ति इस कानून के लागू होने के पहले नियम कानूनों के तहत हुई है.
अपडेट रहने के लिए परीक्षा आवश्यक- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक सितंबर 2025 को दिए अपने निर्णय में कहा था कि कक्षा एक से आठ तक के छात्रों को पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों, जिनकी नौकरी पांच वर्ष से ज्यादा बची है उनको दो वर्ष के भीतर TET पास करना अनिवार्य है. यहां तक कि जिनकी नौकरी पांच वर्ष से कम बची है अगर उन्हें भी प्रमोशन लेना है तो TET परीक्षा पास करनी होगी. कोर्ट का मानना है कि लगातार खुद को अपडेट रखने के लिए ये परीक्षा आवश्यक है.
TET परीक्षा क्या है?
टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) भारत में सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के शिक्षक बनने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए एक अनिवार्य योग्यता परीक्षा है. यह परीक्षा केंद्र सरकार (CTET) और विभिन्न राज्य सरकारें (जैसे UPTET, KARTET) द्वारा आयोजित की जाती है. TET शिक्षण की गुणवत्ता के लिए राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय मानक तय करता है, यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षक पदों पर केवल योग्य और सक्षम लोगों की भर्ती हो. TET प्रमाणपत्र नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता के रूप में मान्य होता है और यह आमतौर पर आजीवन वैध रहता है.
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