हर साल आश्विन शुक्ल दशमी तिथि पर रावण का पुतला दहन किया जाता है. यह पर्व बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है. आपने अभिमानी और अहंकारी रावण के बारे में तो बहुत सुना होगा. लेकिन क्या आप रावण के पराक्रमी पुत्र इन्द्रजीत के बारे में जानते हैं. इंद्रजीत अपने समय का सबसे वीर योद्धा था. वो इतना शक्तिशाली था कि देवता भी उससे भयभीत रहते थे. वह केवल अस्त्र-शस्त्र के बल पर ही नहीं, बल्कि अद्वितीय तांत्रिक और देवी-उपासना के बल पर भी महाशक्तिशाली बन चुका था. आइए आज आपको बताते हैं कि इंद्रजीत इतना शक्तिशाली कैसे हो गया था और वो किस देवी की पूजा करता था.
जब भगवान शिव को लेना पड़ा शरभ अवतार
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने नरसिंहा अवतार लेकर अत्याचारी हिरण्यकशिप का वध तो किया था. लेकिन उसे नष्ट करने के बाद भी उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ. तब सृष्टि का संतुलन करने के लिए भगवान शिव ने भी एक और उग्र रूप धारण किया, जिसे शरभेष्वर रूप कहा जाता है. इस स्वरूप का उद्देश्य नरसिंह भगवान के विकराल और क्रोधित स्वरूप को शांत करना था. लेकिन उस समय स्थिति ऐसी बनी कि शिव और विष्णु, दोनों महाशक्तियां आपस में ही टकरा गईं. जब ब्रह्मांड अस्त-व्यस्त होने लगा और देवता भी भय से सहम उठे, तब आदि शक्ति ने अपने सबसे भयानक रूप में अवतार लिया. यही रूप था माता प्रत्यंगिरा का. ऐसी मान्यताएं हैं कि इन्द्रजीत देवी प्रत्यंगिरा की ही पूजा किया करता था.
कैसा था देवी प्रत्यंगिरा का स्वरूप?
देवी प्रत्यंगिरा का स्वरूप रहस्य और अद्भुत शक्ति का प्रतीक है. देवी का स्वरूप आधी सिंहनी और आधी नारी का है. इनका प्राकट्य शिव और विष्णु की लड़ाई को रोकने के लिए हुआ था. माता ने शिव और विष्णु की लड़ाई को रोकने के लिए तेज गर्जना की और दोनों देवता भयभीत होकर शांत हो गए. माता प्रत्यंगिरा का प्राकट्य केवल विनाशकारी नहीं, बल्कि संतुलन और शांति स्थापित करने वाली देवी मानी जाती हैं. इन्हीं की साधना करने से इन्द्रजीत इतना प्रबल हुआ कि लक्ष्मण जी तक उनके अस्त्र-शस्त्र से घायल होकर मृत्यु के मुंह तक पहुंच गए थे.
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