नेपाल में जेन-जी आंदोलन ने जिस नेपाल की सत्ता उखाड़ फेंकी, उसका केंद्र है सोशल मीडिया की ताकत। एक तरफ #नेपोकिड्स और #नेपोबेबीज जैसे हैशटैग ने नेताओं की बेटे-बेटियों की आलीशान जिंदगी को बेनकाब कर दिया, वहीं सुदन गुरुंग की डिजिटल रणनीति ने आंदोलन को सड़कों से स्क्रीन तक फैला दिया। उन्होंने विद्रोह को ऐसा आयाम दिया, जिसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया नई राजनीति की भाषा बता रहा है। डिजिटल आंदोलन की बुनियाद रखने वाले गुरुंग को अब डिजिटल नायक कहा जाने लगा है। उनकी रणनीति साफ है-ऑफलाइन जितने लोग सड़क पर, ऑनलाइन उससे दोगुना स्क्रीन पर। वे सोशल मीडिया पर लगातार कंटेंट अपलोड करते हैं। हर रैली, धरना और पुलिस कार्रवाई तुरंत लाइव होती है, ताकि युवाओं को लगे कि वे घटनास्थल पर मौजूद हैं। गुरुंग की टीम ने दर्जनों छोटे डिजिटल वॉलंटियर ग्रुप बनाए, जो अलग-अलग शहरों व कॉलेजों से कंटेंट साझा करते हैं। यह मॉडल लीडरलेस मूवमेंट जैसा दिखता है। इससे यह साबित नहीं होता कि कोई खास नेता हिंसा भड़का रहा है।


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नेपाल में सरकार विरोधी प्रदर्शन
– फोटो : एएनआई
युवाओं ने सवाल उठाया
#नेपोकिड्स के लिए यूरोप की यूनिवर्सिटी, हमारे लिए गल्फ की मजदूरी-क्या यही न्याय है? नेताओं की संतानें बीएमडब्ल्यू चलाती हैं और हम बस का किराया न चुका पाएं-अब यह और नहीं चलेगा।नेपोकिड्स न्यूयॉर्क का आनंद लेते हैं, जबकि नेपाली युवा कतर की गर्मी में पसीना बहाते हैं। अब बहुत हो चुका। हमारे दिए हुए टैक्स पर अब ऐश बर्दाश्त नहीं। बीबीसी नेपाली सेवा और काठमांडू पोस्ट के मुताबिक ट्विटर पर #नेपोकिड्स नेपाल का टॉप ट्रेंड बन गया और छात्र संगठनों ने इसे आंदोलन का प्रतीक बना लिया।

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नेपाल
– फोटो : PTI
नेताओं की संतानों के ऐशोआराम से जनता की नाराजगी बढ़ी
सोशल मीडिया रिपोर्टों में खुलासा हुआ कि पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के बेटे अमेरिका में पढ़ाई कर रहे हैं।के.पी. शर्मा ओली के परिजन यूरोप की यूनिवर्सिटियों में हैं।पुष्प कमल प्रचंड की बेटी गंगा दाहाल ने भी विदेश में शिक्षा ली है।ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका में कई नेताओं के बच्चों की मौजूदगी युवाओं को जमकर खटकने लगी। काठमांडू पोस्ट के अनुसार हर साल नेपाल से 80,000 छात्र विदेश पढ़ाई के लिए जाते हैं। लेकिन आम युवाओं और जनता को यह खर्च अपनी जेब से चुकाना पड़ता है, जबकि नेताओं की संतानें करप्शन से अर्जित धन से आराम से पढ़ती हैं।

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बालेंद्र शाह
– फोटो : इंस्टाग्राम/बालेंद्र शाह
बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग: “पीएम जोड़ी”
आंदोलन की खास पहचान बन चुकी है बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग की जोड़ी। सोशल मीडिया पर #बालेनफारपीएम और #सुदनफारचेंज साथ-साथ ट्रेंड कर रहे हैं। छात्र संगठन कहते हैं, बालेंद्र शाह प्रशासनिक चेहरा हैं, और सुदन गुरुंग आंदोलन की आत्मा।
डिजिटल रणनीति: आंदोलन की नई भाषा
- मीम्स और कार्टून: नेताओं और उनके बच्चों पर बने व्यंग्यात्मक मीम्स लाखों बार शेयर हुए।
- लाइव स्ट्रीमिंग: रैलियों को टिकटॉक और यूट्यूब पर हजारों दर्शकों ने देखा।
- डिजिटल वॉल ऑफ शेम: ट्विटर पर नेताओं के बच्चों के विदेशी संस्थानों की लिस्ट वायरल हुई।
- टैगलाइन: “राजनीति बदलो, नेता नहीं” जैसे नारे युवाओं की बोली में ढल गए।

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नेपाल के हालात
– फोटो : PTI
नेपाल की गूंज दुनिया तक
पश्चिमी मीडिया बीबीसी, गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट इसे नई राजनीति की मांग कह रहे हैं। वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा, नेपाल के जेन-जी युवाओं ने सोशल मीडिया को संसद बना लिया है। नेपाल का यह आंदोलन दिखाता है कि सोशल मीडिया अब महज मनोरंजन का मंच नहीं, बल्कि सत्ता को चुनौती देने वाला असली राजनीतिक हथियार है। सुदन गुरुंग की डिजिटल कैंपेनिंग और #नेपोकिड्स की चिंगारी ने मिलकर युवाओं को एकजुट किया। अब यह विद्रोह सिर्फ भ्रष्टाचार विरोध तक सीमित नहीं है, बल्कि नेतृत्व परिवर्तन करने में सक्षम है। नेपाल की सड़कों से उठी यह आवाज स्क्रीन पर गूंजते हुए अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति की चर्चा का हिस्सा बन गई है।
नेपाल अकेला नहीं
- पाकिस्तान: इमरान ख़ान और शरीफ परिवार की संतानें विदेशों में पढ़ाई और महंगी संपत्तियों के कारण निशाने पर रहीं।
- श्रीलंका: राजपक्षे परिवार की आलीशान संपत्तियां आंदोलन का बड़ा मुद्दा बनीं।
- बांग्लादेश: छात्रों ने मंत्रियों और नेताओं के बच्चों की विदेश पढ़ाई पर सवाल उठाए।