कोविड-19 के बाद जब से रिमोट वर्क शुरू हुआ, लोगों ने पैसा बचाने और अच्छी ज़िंदगी जीने का एक नया तरीका खोज लिया- “बड़े शहर में किराए पर रहो, पर घर छोटे शहर में खरीदो.’ पहले बड़ी सैलरी के लिए मुंबई या बेंगलुरु में रहना मजबूरी थी, जहां किराए में ही आधी सैलरी चली जाती थी और घर खरीदना तो सपने जैसा था.
अब जब काम घर से हो रहा है, तो नौकरी तो बड़े शहर वाली ही है, लेकिन वे अपने होमटाउन या किसी शांत छोटे शहर में जाकर रहने लगे हैं या बड़े शहरों में किराए पर घर लेकर छोटे शहरों में निवेश कर रहे हैं.
कम निवेश में ज्यादा रिटर्न
दिल्ली-एनसीआर, बेंगलुरु और मुंबई जैसे शहरों में लोगों के लिए अब घर खरीदना पहुंच से बाहर हो गया है. इसी वजह से, कुछ खरीदार अब एक नई रणनीति अपना रहे हैं. जो लोग लंबे समय के लिए या रिटायरमेंट के इरादे से निवेश करते हैं, उनके लिए टियर-2 शहर कम जोखिम में ज़्यादा रिटर्न (higher yields) भी दे सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन शहरों में कीमतें कम होने के कारण, मामूली बढ़ोतरी भी प्रतिशत के हिसाब से काफ़ी बड़ा लाभ देती है.
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छोटे शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतें कम होती हैं. इसलिए, जो लोग बड़े शहर में सिर्फ़ किराया दे रहे थे, वे अब उसी पैसे से छोटे शहर में अपना बड़ा घर खरीद पा रहे हैं, वो भी कम EMI में. सीधा मतलब यह है कि रिमोट वर्क ने लोगों को यह आज़ादी दी है कि वे बड़े शहर की सैलरी से छोटे शहर में घर खरीदकर अपनी ज़िंदगी की क्वालिटी सुधार सकें और खूब पैसा बचा सकें. यह अब सिर्फ़ एक फैशन नहीं, बल्कि समझदारी भरा वित्तीय फैसला बन गया है.
मेट्रो की ऊंची लागत, मजबूरी का घर
दशकों से, भारत में बेहतर सैलरी और करियर के अवसरों के लिए दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे टियर-1 शहरों में जाना मजबूरी था. इन शहरों में सैलरी तो अच्छी मिलती थी, लेकिन साथ ही एक बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ती थी. आसमान छूते किराए और संपत्ति की कीमतें, लोगों की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा ऊंचे किराए और ईएमआई (EMI) भरने में चला जाता था. कई लोग चाहकर भी इन शहरों में अपना घर नहीं खरीद पाते थे, क्योंकि एक छोटे से 1BHK या 2BHK अपार्टमेंट की कीमत भी उनकी पहुंच से बहुत दूर होती थी. वे किराए के एक छोटे से घर में रहने के लिए मजबूर थे, जबकि उनके होमटाउन में कम कीमत पर वे एक बड़ा और बेहतर घर खरीद सकते थे.
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ANAROCK सर्वे के मुताबिक, भारत में 81% से ज़्यादा लोग जो घर खरीदना चाहते हैं, लेकिन उनके लिए बढ़ती हुई कीमतें एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है, यह कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि एनारॉक रिसर्च के आंकड़ों से पता चलता है कि देश के टॉप सात शहरों में घरों की औसत कीमतें पिछले दो सालों में 50% से भी ज़्यादा बढ़ गई हैं. पहले Q2 2023 में औसत कीमत ₹6,001 प्रति वर्ग फुट थी, अब Q2 2025 तक यह बढ़कर ₹8,990 प्रति वर्ग फुट हो गया है.
यहां पर रिमोट वर्क ने ‘गेम चेंजर’ की भूमिका निभाई है. जब कंपनियों ने कर्मचारियों को घर से काम करने की अनुमति दी, तो ऑफिस के नज़दीक रहने की भौगोलिक मजबूरी खत्म हो गई. कर्मचारी अब अपनी मेट्रो सैलरी को बरकरार रखते हुए, उन शहरों से काम करने के लिए स्वतंत्र थे जहां वे कम खर्च पर रह सकते थे, यानी टियर-2 या टियर-3 शहर.
टियर-2 शहरों में निवेश का फायदा
जो पैसा मेट्रो शहर में एक कमरे के फ्लैट के ऊंचे किराए या बड़ी ईएमआई में खर्च होता था, वही पैसा टियर-2 शहर में काफी कम ईएमआई पर एक बड़े विला या 3BHK अपार्टमेंट को खरीदने में लग सकता है. संपत्ति की खरीद के बाद भी, रहने की लागत कम हो जाती है. यात्रा का खर्च, खाने-पीने का खर्च और अन्य दैनिक खर्चों में कमी आती है, यह बची हुई राशि लोगों को निवेश करने या अपने जीवन स्तर को सुधारने में मदद करती है.
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