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पवन सिंह की बीजेपी में वापसी का रास्ता उपेंद्र कुशवाहा के घर से होकर क्यों गुजरा? – pawan singh bhojpuri actor bjp upendra kushwaha rlm koiri vote lav kush ntcpbt


भोजपुरी सिने जगत के पावर स्टार पवन सिंह की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में वापसी का ऐलान हो गया है. पवन सिंह की केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के साथ हुई मुलाकात के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार प्रभारी विनोद तावड़े ने कहा कि पवन सिंह बीजेपी में थे और बीजेपी में ही रहेंगे. अब उपेंद्र कुशवाहा का भी आशीर्वाद मिल गया है.

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले पवन सिंह की घर वापसी हो गई है. तावड़े ने कहा कि पवन सिंह बीजेपी कार्यकर्ता के रूप में एनडीए के लिए आगामी चुनाव में सक्रियता से काम करेंगे. 

उपेंद्र कुशवाहा के बाद पवन सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाकात की. पवन सिंह ने इन मुलाकातों की तस्वीरें अपने सोशल मीडिया हैंडल्स से शेयर करते हुए लिखा कि उन्होंने दिल से आशीर्वाद दिया. नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के सपनों का बिहार बनाने में आपका बेटा पवन पूरा पावर लगाएगा.

पवन की वापसी का रास्ता कुशवाहा से आंगन से गुजरा

उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के नेता नहीं हैं. वह आरएलएम के प्रमुख हैं. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पवन सिंह को बीजेपी में वापसी करने के लिए उपेंद्र कुशवाहा के आशीर्वाद की जरूरत क्यों पड़ गई? पवन की बीजेपी में वापसी का रास्ता उपेंद्र कुशवाहा से ही होकर क्यों गुजरा?

 2024 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा काराकाट सीट से हार गए थे. इस हार के लिए बतौर निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे पवन सिंह को ही वजह माना गया. पवन सिंह को उपेंद्र कुशवाहा से अधिक वोट मिले थे और वह दूसरे नंबर पर रहे थे. पवन सिंह के चलते कुशवाहा को सियासी मात खानी पड़ी थी. 

चुनाव मैदान में उतरने से पहले पवन बिहार बीजेपी की प्रदेश कार्य समिति के सदस्य थे और ऐसे में सवाल पार्टी की भूमिका पर भी उठे. बीजेपी ने पवन सिंह को छह साल के लिए पार्टी से निकालने के साथ ही उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की थी. अब पवन की कुशवाहा के आशीर्वाद के बाद बीजेपी में वापसी हुई है, तो उसके पीछे भी अपनी वजहें हैं.

जातीय के बिसात पर बिहार का चुनाव कैसे सिमटा

पवन सिंह की वापसी के लिए उपेंद्र कुशवाहा की मुहर इसलिए भी जरूरी हो गई, क्योंकि बिहार की सियासत जातियों के मकड़जाल में उलझी रही है. इस मकड़जाल को बुनने में गोंद का काम करने वाला फैक्टर हैं भावना, किसी नेता से किसी जाति का लगाव.

उपेंद्र कुशवाहा कोइरी जाति के बड़े नेता हैं, जिसकी आबादी बिहार में 4.27 फीसदी है. बिहार में एनडीए का बेस माने जाने वाले लव-कुश समीकरण का एक स्तंभ कुशवाहा यानी कोइरी भी है. लव-कुश (कुशवाहा, कुर्मी) मिलकर सूबे की 243 में से करीब 50 विधानसभा सीटों पर चुनाव नतीजे तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.  

कुशवाहा और कुर्मी समीकरण को बनाकर ही नीतीश कुमार ने 20 साल पहले लालू प्रसाद यादव के हाथों से सत्ता पहले छीनी थी. इसके बाद से कुर्मी और कोइरी दोनों ही नीतीश कुमार के सबसे मजबूत वोटबैंक हुआ करते थे, लेकिन 2020 के विधानसभा और उसके बाद 2024 के चुनाव में इसी समीकरण बिगड़ा है, कुर्मी जरूर नीतीश के साथ है, लेकिन कोइरी वोटर उनके दूर हुआ है. इसका नतीजा यह रहा कि 2020 में एनडीए से ज्यादा कोइरी विधायक महागठबंधन से जीतने में सफल रहे. 

कुशवाहा वोटर्स की नाराजगी से हुआ था नुकसान

पवन सिंह को मनपसंद सीट से टिकट नहीं मिलने, उनके निर्दलीय मैदान में उतरने से बीजेपी को लोकसभा चुनाव में कुशवाहा वर्ग की नाराजगी का सामना करना पड़ा था. सीएसडीएस-लोकनीति के एग्जिट पोल के मुताबिक 2024 के चुनाव में कोइरी और कुर्मी समुदाय से एनडीए को 67 फीसदी समर्थन मिला था. 2019 में इस वर्ग में एनडीए के समर्थन का आंकड़ा 79 फीसदी था. यानी पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को सीधे-सीधे 12 फीसदी नुकसान उठाना पड़ा. 

वहीं, 2020 के चुनाव में 16 कुशवाहा विधायक जीते थे, जिसमें भाजपा के 3 विधायक, जेडीयू के 4 विधायक थे, जबकि आरजेडी के 4 विधायक और वामपंथी दलों से पांच विधायक जीतकर आए. इस तरह से पहली बार था कि एनडीए से ज्यादा कुशवाहा विधायक महागठबंधन से जीते थे.

कुशवाहा का भरोसा बनाए रखने का दांव

बिहार में कुशवाहा वोटों के सियासी ताकत को देखते हुए बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ बनाए रखना चाहती है. यही वजह है कि  लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी बीजेपी ने अपने कोटे से उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजा और अब जब पवन सिंह की घर वापसी का तानाबाना बुना गया तो कुशवाहा की रजामंदी लेना जरूरी समझा.

बीजेपी ने पवन सिंह को पार्टी में वापस लेने के ऐलान से पहले उपेंद्र कुशवाहा के पास  भेजकर कुशवाहा वर्ग को यह संदेश दिया है कि कमल निशान वाली उनका पूरा सम्मान करती है. पार्टी ने यह संदेश भी दे दिया है कि वह अपने सहयोगी दलों के नेताओं को भी पूरी तवज्जो देती है. यह एक तरह से अपने नेताओं के लिए भी स्पष्ट संदेश है कि सहयोगी दलों के नेताओं का अनादर नहीं होना चाहिए.

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नीतीश के बाद का विकल्प बना रही बीजेपी

कुर्मी और कुशवाहा, इन दोनों ही वर्गों को लेकर यह आम धारणा रही है कि नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा जिधर रहेंगे, उधर इन वर्गों का समर्थन अधिक रहेगा. नीतीश के बाद की राजनीति के लिए बीजेपी अभी से ही इन वर्गों पर फोकस करके चल रही है. सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष से लेकर बिहार सरकार में डिप्टी सीएम बनाना हो या यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सह चुनाव प्रभारी बनाना, इन सभी को बीजेपी की बिहार में कुशवाहा फोकस्ड पॉलिटिक्स से जोड़कर ही देखा जा रहा है.

बिहार चुनाव से पहले भाजपा ने जिस तरह से धर्मेंद्र प्रधान, केशव मौर्य और सीआर पाटिल को ज़िम्मेदारी सौंपी है, यह सिर्फ़ संगठनात्मक बदलाव भर नहीं, बल्कि बिहार की सियासत के लिए बड़ा सियासी संदेश भी है. भाजपा के इस निर्णय के पीछे साफ़तौर पर जातीय संतुलन साधने की रणनीति है. धर्मेंद्र प्रधान ओबीसी समाज की कुर्मी जाति से आते हैं तो केशव प्रसाद मौर्य भी ओबीसी की कोइरी जाति से हैं.

सीआर पाटिल मराठा समाज से ताल्लुक़ रखते हैं, जो मूल रूप से खेती करने वाली कुनबी जाति के तहत आती है. एक तरह से इनका नाता कुर्मी जाति से माना जाता है. भाजपा ने धर्मेंद्र प्रधान, केशव प्रसाद मौर्य और सीआर पाटिल के ज़रिए बिहार में कुर्मी-कोइरी यानी लव-कुश समीकरण साधने पर अपना फ़ोकस किया है. 

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2020 में बीजेपी के कुशवाहा कैंडिडे का सौ फीसदी स्ट्राइक रेट

साल 2020 के बिहार चुनाव में कुशवाहा जाति के उम्मीदवारों का स्ट्राइक रेट सौ फीसदी रहा था. तब बिहारशरीफ सीट से डॉक्टर सुनील कुमार, रक्सौल से प्रमोद सिन्हा के साथ ही निशा सिंह चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे. ये तीनों ही कुशवाहा जाति से आते हैं और बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे. बीजेपी इस बार कुशवाहा जाति से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतारने की तैयारी में है.

नीतीश कुमार के अगुवाई में जब 2024 में सरकार बनी तो बीजेपी ने दो डिप्टी सीएम बनाए, जिसमें कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाकर सियासी संदेश  दिया. हालांकि, सम्राट चौधरी आरजेडी छोड़कर बीजेपी में आए थे, उसके बाद भी उनके सम्मान में बीजेपी ने कोई कमी नहीं रखा. मौजूदा चुनाव में भी सम्राट चौधरी को बीजेपी आगे कर रखी है और चुनाव के लिए जिन तीन नेताओं को जिम्मेदारी मिली हैं, उसमें यूपी की डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सह-प्रभारी हैं. इससे समझा जा सकता है कि बीजेपी किस तरह से कुशवाहा वोटों के लिए गंभीर है. 

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