नवरात्रि के नौ दिन के अनुष्ठान की आज समाप्ति हो रही है. नवम दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा होती है. इसी दिन नौ दिनों के अनुष्ठान को पूरा कर श्रीदुर्गा हवन और कलश विस्थापन, देवी विदाई और झोली भरने की प्रक्रिया की जाती है. कलश पर स्थापित नारियल को फोड़ कर देवी को समर्पित किया जाता है और कलश के पवित्र जल को घर में छिड़ककर शुद्धि की जाती है. यह जल वास्तु दोष और नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है. वहीं देवी पूजा के लिए बोए गए जवारे जो अब तक बड़े-बड़े हो जाते हैं वह सुख-समृद्धि का परिचय देते हैं. इन्हें भी मुख्य द्वार के दोनों ओर थोड़ा-थोड़ा खोंस दिया जाता है, ताकि घर में शुभ-लाभ का प्रवेश हो.
नवरात्र के पूजन में कलश, नारियल और जवारे इन तीनों का बहुत महत्व है. यह तीनों सिर्फ पूजा के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि इन तीनों के जरिए भविष्य के भी कुछ संकेत मिलते हैं. इनकी स्थिति बताती है कि आने वाले दिन कैसे होने वाले हैं. आर्थिक स्थिति, मानसिक तनाव या रोग-शोक जैसी कोई आपदा-विपत्ति तो नहीं आने वाली है, इसका भी संकेत जवारों और नारियल के जरिए मिलता है.
जवारों के संकेत
नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ देवी की खेतरी (खेती) में जवारे बोए जाते हैं. ये जवारे धन-धान्य, संपन्नता और समृद्धि के प्रतीक होते हैं. नवमी के दिन तक आकर ये जवारे काफी बड़े-बड़े हो जाते हैं. इन जवारों का रंग भविष्य के अलग-अलग संकेत देता है. अगर अंकुरित जौ का रंग नीचे से आधा पीला और ऊपर से आधा हरा है, तो माना जाता है कि साल का आधा समय अच्छा बीतेगा और आधा समय खराब हो सकता है.
किस रंग की जवारों का कैसा संकेत?
वहीं अगर जौ का रंग नीचे से हरा और ऊपर से पीला है, तो साल का शुरुआती समय ठीक जबकि आखिरी महीनों का समय परेशानियों से भरा बीतने के संकेत हो सकते हैं. अगर जौ सफेद या हरे रंग की उगती है, तो यह शुभ संकेत है. यह समृद्धि का प्रतीक है. जौ अंकुरित होने के बाद अगर झड़ने लगे तो यह अशुभ संकेत है. जौ बोने के तीन दिनों बाद ही वो उगने लगे और हरी-भरी हो जाए तो इसे बेहद शुभ माना जाता है. जवारे की वृद्धि तेजी से हो तो माना जाता है कि मां दुर्गा की कृपा से घर में सुख समृद्धि आएगी. वहीं पीले रंग में उगने वाले जौ भी बताती है कि घर में स्थिति अच्छी बनी रहेगी. बहुत उतार-चढ़ाव नहीं हैं.
पूजा में कलश और कलश के जल का संकेत
नवमी की पूजा के दौरान स्थापित कलश को हिला कर विस्थापित किया जाता है. इस तरह देवी को विदाई भी दी जाती है. इस दौरान कलश को खोला जाता है. अगर कलश को खोलने के दौरान उसका जल बिल्कुल ही सूखा हुआ मिले तो यह अच्छा संकेत नहीं माना जाता है. यह किसी होने वाले आर्थिक नुकसान की ओर इशारा करता है. पूजा के दौरान कलश का जल जल्दी सूखना या कलश का गिरना शुभ नहीं होता, यह पितरों के नाराज होने या जीवन में आने वाली किसी बाधा का संकेत हो सकता है.
नारियल का चटकना क्या कहता है?
पूजा का नारियल अगर ठीक न निकले, यानी वह पहले ही फूट जाए या चटका हुआ निकले तो इसे भी शुभ नहीं माना जाता है. यह किसी आने वाली समस्या या बाधा का सूचक हो सकता है, साथ ही यह भी बताता है कि आपके पितृ आपके संतुष्ट नहीं हैं. नारियल का चटकना इस बात का भी संकेत है कि घर में किसी नकारात्मकता का वास था, जिसे नारियल ने अपने ऊपर ले लिया है. इसलिए कुछ लोग इसे शुभ मानते हैं कि आपदा टल गई है. हालांकि इस मामले में पंडितों का यह मानना होता है कि नारियल की वजह से फिलहाल आपदा टल गई है, लेकिन यह भविष्य में अनिष्ट का संकेत है.
इसी तरह नारियल फोड़ने पर अंदर से उसका जल बिल्कुल ही सूखा निकले तो इसे मानते हैं कि भगवान ने पूजा स्वीकार कर ली है. क्योंकि अगर उसकी गरी खाने लायक हो तो वह प्रसाद स्वरूप ही होता है, लेकिन नारियल अंदर से सूखा और गरी में फफूंद लगी मिले, या सड़ा हुआ निकले तो यह अनिष्ट की आशंका होती है. ऐसे सभी नारियल को नदी-नहर के जल में प्रवाहित कर देना चाहिए.
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