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जब देवी ने चुरा लिए कमल के फूल… श्रीराम ने आज ही की थी शक्ति पूजा, तब मिली थी रावण पर जीत – navratri ram shakti puja nirala poetry spiritual importance ntcpvp


शक्ति की अधिष्ठात्री देवी का पर्व अब समाप्ति की ओऱ है. नवां दिन जब देवी की आराधना के नौवें स्वरूप की पूजा होती है, जिन्हें सिद्धिदात्री कहते हैं. सनातन परंपरा का यह उत्सव न केवल पीढ़ियों से, बल्कि सदियों और युगों से चला आ रहा है. यह पर्व देवी के रूपक से परे जाकर हमारी आंतरिक आकांक्षा का प्रतीक है. यह शक्ति पाने की तीव्र इच्छा का महोत्सव है. आखिर, कौन है जो शक्तिमान न बनना चाहे? सृष्टि की उत्पत्ति से ही यह भावना चारों ओर व्याप्त रही है.

दुनिया का सृजन या विनाश स्वयं शक्ति-अर्जन की पराकाष्ठा है. भौतिक विज्ञान की दृष्टि से देखें तो बल (फोर्स) और ऊर्जा ही शक्ति के मूल तत्व हैं. बिग बैंग की व्याख्या हो या प्रलय का सिद्धांत, कयामत का इंतजार हो—सब कुछ ऊर्जा से आरंभ होता है और उसी पर समाप्त. वेदों से लेकर आधुनिक भौतिकी तक, शक्ति की यह यात्रा अनंत है.

आज भी प्रासंगिक है ‘राम की शक्ति पूजा काव्य’
साहित्य ने इस शक्ति-भाव को गहनता से उकेरा है. लेखकों ने पन्ने-पन्ने रंगे, विशाल ग्रंथ रचे. इनमें सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की ‘राम की शक्ति पूजा’ एक अमर रचना है. 1936 में रचित यह काव्य आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह शक्ति की साधना को मानवीय संवेदनाओं से जोड़ता है. छायावाद के प्रमुख कवि निराला की यह रचना उनकी सूर्य-सी चमक को दर्शाती है. नवरात्रि के इस पावन समय में इस काव्य का स्मरण करना बेहद मौजूं है. निराला ने रामायण की पुराण कथा को आधुनिक संवेदना से सजाया, जहां राम मात्र अवतार नहीं, बल्कि एक संशयी मानव हैं जो हंसते हैं, घबराते हैं, चिंतित होते हैं. यह मानवीकरण ही रचना की आत्मा है.

रचना का केंद्रीय कथानक राम-रावण युद्ध पर आधारित है. वानर-दल के साथ लंका पर आक्रमण हो चुका है. आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की तिथियों में युद्ध जारी है. युद्ध-पूर्व राम प्रतिदिन देवी दुर्गा की आराधना करते हैं. देवी का स्वरूप दोहरा है, प्रकृति के रूप में धरती माता और पार्वती के रूप में शिवप्रिया. नौ दिनों का यह अनुष्ठान दशमी को फलित होता है, जब रावण का वध संभव हो पाता है. 

निराला ने इस कथा को धरातल पर उतारा. राम को ईश्वरीय आकाश से नीचे लाकर उन्होंने उन्हें एक जीवंत चरित्र बनाया, जो पराजय के भय से शंकित और आक्रांत हैं. उनकी सेना के महान वीर भी घबराए, चिंतित दिखते हैं. सायंकाल युद्ध समाप्ति पर राक्षस-सेना में उत्साह का महोल्लास, किंतु भालू-वानर वाहिनी में गहन खिन्नता. वे मंद, थके-हारे चलते हैं, मानो जैसे साधुओं के दल अपने  ध्यान-स्थल की ओर लौट रहा हो.

निराला यहां लिखते हैं…

लौटे युग-दल ! राक्षस-पद-तल पृथ्वी टलमल’

विंध महोल्लास से बार –बार आकाश विकल

वानर वाहिनी खिन्न,लख-निज-पति-चरण-चिह्न

चल रही शिविर की ओर स्थविर-दल ज्यों विभिन्न

है अमा निशा: उगलता गगन घन अंधकार

खो रहा दिशा का ज्ञान स्तब्ध है पवन चार

अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल

भूधर ज्यों ध्यान मग् केवल जलती मशाल.

रावण को महाशक्ति का वरदान प्राप्त है, यही कारण है कि राम के शस्त्र बार-बार विफल हो रहे. यह दृश्य राम को निराशा के गहन भंवर में डुबो देता है. तब जामवंत सलाह देते हैं. कहते हैं कि तपस्या में अद्भुत शक्ति है, प्रयास करें कि महाशक्ति आपके वश में हो. मंत्रोच्चार के क्षणों में निराला का चित्रण बहुत सजीव है. राम तप-सिद्धि के अंतिम कगार पर पहुंचकर भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं. आसन पर विराजमान होकर पूजा के क्षण में असमंजस बैठे हैं. 

वह 107 कमल पुष्प चढ़ा चुके हैं, लेकिन अंतिम कमल उठाने के लिए हाथ बढाते हैं तो पाते हैं कि पात्र खाली है. अंतिम कमल पुष्प का न मिलना उन्हें व्यथित करता है. इधर रावण वरदान से गर्वोन्मत, उधर राम अवसाद में डूबे. उनके मानस पटल पर सीता की छवि बार-बार उभरती है. राजा जनक का उपवन, सीता की प्रथम दृष्टि की झलक, शिव-धनु भंगन की स्मृतियां—ये यादें राम को रोमांचित कर देती हैं. तन-मन पुलकित हो जाता है. ये स्मृतियां निराशा को आशा की मुस्कान में बदल देती हैं. फिर भी विजय की शंका बनी रहती है. राम दल में मंत्रणा करते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट करते हैं.

देखा है महाशक्ति रावण को लिए अंक

लांछन को लेकर जैसे शशांक नभ में अशंक;

हत मंत्र –पूत शर सम्वृत करती बार-बार

निष्फल होते लक्ष्य पर छिप्र वार पर वार

विचलित लख कपिदल क्रुद्ध, युद्ध को मै ज्यो-ज्यो ,

झक-झक झलकती वह्नि वामा के दृग त्यों –त्यों

पश्चात् ,देखने लगी मुझका बंध गए हस्त

फिर खिंचा न धनु , मुक्त ज्यों बंधा मैं, हुआ त्रस्त !

जाम्बवान पुनः कहते हैं—जो शक्ति रावण ने अर्जित की, वही राम अर्जित करें. यह विचार सभी को भाता है. राम देवी का ध्यान करते हैं, महिषासुर-मर्दिनी की आराधना का संकल्प लेते. वे कहते हैं—

‘माता, दशभुजा, विश्व-ज्योति; मै हूँ आश्रित;

हो विद्ध शक्ति से है महिषासुर खल मर्दित;

जन-रंजन–चरण–कमल-तल, धन्य सिंह गर्जित;

यह मेरा प्रतीक मातः समझा इंगित;

मैं सिंह, इसी भाव से करूंगा अभिनंदित.

राम शक्ति-पूजा प्रारंभ करते हैं. नवमी तिथि पर संकल्प लेते हैं कि देवी को 108 कमल पुष्प अर्पित करेंगे. इसी विचार से वह देवी की पूजा कर रहे थे. देवी उनकी परीक्षा लेने लगती हैं. मंत्रों के साथ राम एक-एक कमल चढ़ाते जाते हैं. माला का एक बीज बाकी, किंतु पुष्प समाप्त हो गए? यह कैसे संभव है. सिर्फ 107 ही पुष्प थे क्या? 

राम ने दोबारा पुष्प मंगाकर चढ़ाए, फिर से माला पर बीज मंत्र जपा, लेकिन नतीजा वही. हर बार पुष्प 107 ही निकलते थे. बार-बार प्रयास, नतीजा फिर वही. श्रीराम इस तरह नौ बार यह प्रक्रिया दोहराते हैं. अंत में राम बाण उठाते हैं. कहते हैं, माता मुझे ‘राजीव-नयन’ कहती हैं, सीता भी मुझे कभी-कभी इस नाम से पुकारती हैं. कमल नयन भी मेरा ही एक नाम है, तो 108वें कमल की जगह मैं अपना एक कमल नेत्र ही क्यों न अर्पित कर दूं? राम की अंतरआत्मा से जैसे ही यह आवाज आती है, वह घनुष उठाते हैं और बाण का संधान अपनी आंख पर कर लेती हैं. कमान को कान तक तानते हैं और ज्यों ही तीर छोड़ने वाले होते हैं कि मां शेरा वाली प्रकट होकर श्रीराम का हाथ पकड़ लेती हैं. 

उनका यह संकल्प देख देवी स्वयं प्रकट हो जाती हैं, राम का हाथ पकड़ लेती हैं. पूजा फलित हो जाती है. निराला ने इस प्रसंग को अनोखे अंदाज में काव्य रूप दिया-

‘यह है उपाय’ कह उठे राम ज्यों मन्द्रित घन-

“कहती थी माता मुझे सदा राजीव नयन.

दो नील कमल हैं शेष अभी यह पुरश्चरण

पूरा करता हूँ देकर मातः एक नयन.

कहकर देखा तूणीर ब्रह्म –शर रहा झलक

ले लिया हस्त वह लक-लक करता महाफलक;

ले अस्त्र थामकर दक्षिण कर दक्षिण लोचन

ले अर्पित करने को उद्दत हो गए सुमन.

यह काव्य का शिखर बिंदु है. इसमें निराला के व्यक्तिगत जीवन का क्षोभ झलकता है, उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा, सामाजिक विद्रोह. छायावादी शैली में भाषा की लय, अलंकारों का प्रयोग, प्रकृति-चित्रण, सब कुछ जीवंत. नवरात्रि के इस दिव्य पर्व पर राम की शक्ति-पूजा को निराला की दृष्टि से देखना विशेष आकर्षण रखता है. यह रचना न केवल साहित्यिक धरोहर है, बल्कि जीवन का दर्शन भी सिखाती है. शक्ति की साधना में संशय, समर्पण और विजय का संदेश कालातीत है.

आज के संदर्भ में, जब मानव शक्ति के भौतिक रूपों में उलझा है, यह काव्य आध्यात्मिक शक्ति की याद दिलाता है. राम का नेत्र-त्याग प्रतीक है पूर्ण समर्पण से ही महाशक्ति की प्राप्ति हो सकती है. निराला ने रामायण को पुनर्व्याख्या कर सनातन मूल्यों को आधुनिक बनाया है. यह मानव इतिहास की अमूल्य निधि है, जीवन का सबसे सुंदर उपहार. नवरात्रि की यह पूजा हमें सिखाती है—शक्ति बाहरी नहीं, आंतरिक जागरण से आती है. आइए, इस पर्व पर निराला की प्रेरणा से खुद को शक्तिमान बनाएं.

—- समाप्त —-