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ट्रंप की शांति योजना न मानने वाले हमास आतंकी कहां जाएंगे, कौन से देश उन्हें अपनाने को तैयार? – donald trump peace plan gaza war hamas exile ntcpmj


हमास और इजरायल के बीच दो सालों से चली आ रही लड़ाई को रोकने के लिए अमेरिका सक्रिय मध्यस्थ बन रहा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड टंप ने एक प्रस्ताव दिया, जिसमें 20 पॉइंट्स हैं. उनमें इजरायल और गाजा के बीच सीमाएं तय की जा रही हैं. साथ ही हमास को राजनीति से पूरी तरह दूर रहने की हिदायत है. जो आतंकवादी इस कंडीशन को न मानें, उन्हें न तो गाजा और न ही इजरायल में रहने की इजाजत मिलेगी. तब सवाल है कि वे जाएंगे कहां?

ट्रंप के 20 सूत्रीय प्रपोजल में कई बातें शामिल

सबसे पहले तो हमास को बंधकों को इजरायल को लौटाना होगा. इसके बदले में तेल अवीव भी काफी सारे फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा. इसके अलावा, प्रस्ताव में दोनों जगहों की सीमाएं तय हैं कि कहां तक किसने सैनिक आ सकेंगे, और कौन सा इलाका बफर जोन होगा. जैसे ही दोनों पक्ष इस योजना को मंजूरी देंगे, इजरायल अपनी सेना को हटाना शुरू कर देगा और गाजा को तय दूरी तक खाली कर देगा. 

पीस प्लान में क्यों हमास सबसे बड़ा रोड़ा

दो साल पहले सात अक्तूबर को इसी ने इजरायल के एक म्यूजिक फेस्टिवल में शामिल आम लोगों पर हमला करते हुए हजारों जानें ले लीं और सैकड़ों को बंधक बना लिया. अब भी उसकी कैद में 45 से ज्यादा लोग हैं. इजरायल हमास को लेकर किसी भी तरह नेगोशिएट करने के मूड में नहीं. वो साफ कहता है कि जब तक हमास रहेगा, कुछ न कुछ गड़बड़ी चलती रहेगी. 

इसे ही देखते हुए ट्रंप ने प्रस्ताव दिया कि हमास के लोग हथियार छोड़ दें. साथ ही इसके बाद उनकी राजनीति में कोई भूमिका नहीं होगी. लेकिन इतना तय है कि हमास के कुछ लोग भले ही शर्त मान लें लेकिन सारे आतंकी इस पर राजी नहीं होंगे. ऐसे लोगों के लिए भी योजना है. उन्हें शांति से किसी और देश में छोड़ दिया जाएगा. न तो वे इजरायल जा सकेंगे, न ही गाजा पट्टी या वेस्ट बैंक में रहेंगे. 

gaza strip israel hamas war (Photo- AP)
ट्रंप गाजा को आतंक-मुक्त क्षेत्र बनाने पर जोर दे रहे हैं, जिसके लिए हमास का जाना जरूरी है. (Photo- AP)

क्या हमास सत्ता सुख जाने देगा

यहीं पेंच है. लगभग दो दशक से हमास राजनीति का सुख भोगता रहा. गाजा पट्टी को पूरी तरह से वही देख रहा था. अब एकाएक इसे छोड़ देना आसान नहीं, वो भी तब, जबकि हमास को कई देशों का अप्रत्यक्ष सपोर्ट भी मिला. ट्रंप का सुझाव है, ऐसे लोगों को किसी ऐसे देश में भेज दिया जाए, जो उन्हें अपनाने को तैयार हों. 

प्लान में अब तक इसपर कोई बात नहीं. हालांकि इसे लेकर अनुमान लगाए जा रहे हैं कि वे अरब लीग के देश हो सकते हैं, या फिर कोई भी इस्लामिक देश, जो उनके लिए संवेदना रखता हो. यह भी कहा जा रहा है कि निर्वासन अस्थाई होगा. 

ये देश हैं संभावित ऑप्शन

सबसे बड़ा विकल्प कतर है. वो सालों से हमास की मीटिंग्स की मेजबानी कर चुका. हमास के कई नेता उसके यहां लंबे समय तक ठहरते रहे. यह देश मध्यस्थता में भी सक्रिय रहा है. इसलिए माना जा रहा है कि कंडीशन्स न मानने वाले हमास आतंकी यहां एडजस्ट किए जा सकते हैं. 

दूसरा नाम तुर्की का आता है. भौगोलिक तौर पर ये भले ही दूर है लेकिन फिलिस्तीनी आंदोलन से साथ उसका जुड़ाव रहा. वो भी कतर की तरह ही अपने यहां हमास लड़ाकों को होस्ट करता रहा. हालिया कूटनीतिक बातचीत में भी तुर्की काफी आगे रहा. ऐसे में वो भी एक विकल्प हो सकता है. 

जॉर्डन एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है. दरअसल, इस देश ने महीनों पहले भी सुझाया था कि हमास के तीन हजार लड़ाकों को अगर उनके या किसी और देश में निर्वासित कर दिया जाए तो लड़ाई काफी हद तक कमजोर पड़ जाएगी. 

protest on hostages (Photo- AP)
हमास की कैद में अब भी बहुत से बंधक हैं, जिनकी स्थिति पर कोई अपडेट नहीं. (Photo- AP)

कहां आ सकती है समस्या

हमास से जुड़े लोग सीधे तौर पर आतंकी गतिविधियों से जुड़े रहे. वे हथियारों की ट्रेनिंग पाए हुए हैं. एक विचारधारा पर काम करते हैं. धार्मिक तौर पर काफी कट्टर माने जाते हैं. और बेहद स्किल्ड भी नहीं कि अलग-अलग क्षेत्रों में आसानी से खप सकें. ऐसे में उनके लिए संवेदना रखने के बाद भी कई देश पांव पीछे कर सकते हैं. 

अगर कुछ देश खुलकर उन्हें अपनाएं भी तो उन्हें बाकी दुनिया से कटने का खतरा रहेगा. माना जाएगा कि अंदर ही अंदर ये देश अमेरिका और इजरायल से बैर रखते हैं, तभी उनके खिलाफ काम करने वालों को ठौर दी. ये बात आगे चलकर अलग रूप ले सकती है. कुल मिलाकर, हमास के लड़ाकों को अपनाने का खुला सार्वजनिक संकेत अब तक किसी देश ने नहीं दिया. 

कई प्रैक्टिकल दिक्कतें भी हैं

– बड़ी संख्या में हमास लड़ाकों को किसी देश में भेजना उसकी आंतरिक सुरक्षा के लिये मुश्किल हो सकता है. 
– जिनके ऊपर गंभीर अपराध के आरोप हों, उन्हें बसाना कानूनी और राजनीतिक जोखिम पैदा करेगा.
– अलग‑अलग देशों में भेजे जाने पर वे किस तरीके से रहेंगे, क्या वहां की मुख्यधारा में शामिल हो सकेंगे, यह भी सवाल है.

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