हर साल दशहरा का पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस वर्ष, यह पर्व 2 अक्टूबर, गुरुवार को पड़ रहा है. इसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान राम ने दशानन रावण पर विजय प्राप्त की थी. यही कारण है कि दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. रावण को एक शक्तिशाली और कुशल योद्धाओं में गिना जाता है, लेकिन उसके अहंकार और बुरे कर्म उसे एक दुखद अंत की ओर ले गए. दशहरे पर हर साल रावण का वध किया जाता है. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि आखिर रावण का अंतिम संस्कार किसने किया था. आइए आज आपको इस बारे में बताते हैं.
कैसे हुई रावण की मृत्यु?
रावण, लंका का राजा और अत्यंत शक्तिशाली योद्धा था. उसने सीता माता का हरण किया, जो भगवान राम की पत्नी थीं. इसी वजह से राम और रावण के बीच महायुद्ध हुआ. राम ने वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण किया. दोनों पक्षों के बीच कई दिनों तक भयंकर युद्ध चला. राम ने अपनी ईश्वरीय शक्ति और धनुष-कमान कौशल का प्रयोग करते हुए रावण को पराजित किया. राम के बह्मास्त्र से रावण का अंत हुआ.
राम के समझाने पर विभीषण ने किया दाह संस्कार
वैसे तो रावण का दाह संस्कार उनके छोटे भाई विभीषण ने किया था, लेकिन शुरू में विभीषण ने इस काम से मना कर दिया. वे अपने हाथों से अपने बड़े भाई का अंतिम संस्कार नहीं करना चाहते थे. तब भगवान श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को आज्ञा दी कि जा कर विभिषण को धैर्य बंधाओ और उनसे अपने भाई रावण का अंतिम संस्कार करने को कहो. गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित्र मानस में चौपाइयों में इसका वर्ण किया है.
बंधु दसा बिलोकि, दुख कीन्हा। तब प्रभु अनुजाहि आयसु दीन्हा।।
लछिमन तेहि, बहु बिधि समझायो। बहुरि बिभीषन प्रभु पहिं आयो।।
यानी विभीषण ने भाई की दशा देखकर दुख किया. तब प्रभु श्रीराम ने छोटे भाई को आज्ञा दी कि जाकर विभिषण का धैर्य बंधाओं. लक्ष्मण जी ने विभिषण को कई प्रकार से समझाया तब विभिषण प्रभु के पास लौट आए.
कृपादृष्ठि प्रभु ताहि बिलोका। करहु क्रिया परिहरि सब सोका।।
कीन्ही क्रिया प्रभु आयसु मानी।। बिधिवत देस काल जियँ जानी।।
मतलब प्रभु ने उनको कृपा दृष्ठि से देखा, और कहा कि सब शोक त्याग कर रावण की अनत्येष्टि क्रिया करो. प्रभु की आज्ञा मानकर विभिषण ने विधिपूर्वक सब क्रिया की. रावण का दाह संस्कार करने के बाद विभिषण का राजतिलक करने का न्योता श्रीराम ने दिया था.
आइ बिभीषन पुनि सिरु नायो। कृपासिंधु तब अनुज बोलायो।।
तुम्ह कपीस अंगद नल नीला। जामवंत मारुति नयसीला।।
सब मिलि जाहु बिभिषन साथा। सारेहु तिलक कहेउ रघुनाथा।।
पिता वचन मैं नगर न आवउँ। आपु सरिस कपि अनुज पठावउँ।।
इसका मतलब है कि क्रिया-कर्म करने के बाद जब विभीषण लौटे, तो श्रीराम जी ने छोटे भाई लक्ष्मण को दोबारा बुलाया. और कहा कि तुम, वानरराज सुग्रीव, अंगद, नल, नील, जाम्बवंत और मारुति सब मिलकर विभीषण के साथ जाओ. और उनका राजतिलक कर दो. पिता जी के वचन के चलते मैं नगर में नहीं आ सकता. पर अपने ही समान वानर और छोटे भाई को भेजता हूं.
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