हर भारतीय प्रधानमंत्री अपने उत्तराधिकारी को देश के राज सौंपते हैं- संवेदनशील प्रोजेक्ट्स की जानकारी देते हैं जो सीधे देश के सर्वोच्च कार्यालय (PMO) की निगरानी में होती हैं. उदाहरण के लिए, 1996 में प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने अपने उत्तराधिकारी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को परमाणु हथियारों के परीक्षण से जुड़ी फाइलें सौंपी थीं.
शायद पाकिस्तान के सर्वोच्च कार्यालय- आर्मी चीफ के कार्यालय, GHQ रावलपिंडी-में भी ऐसा ही एक सिस्टम है, जहां हर आर्मी चीफ अपने उत्तराधिकारी को परमाणु हथियार प्रोग्राम और लोगों की चुनी हुई सरकार को हटाने की इमर्जेंसी प्लानिंग की फाइलें सौंपता है. उनकी इस फाइल में विदेशी संबंधों पर शायद एक ही पन्ना होगा जिसमें लिखा होगा- ‘अमेरिका क्या चाहता है, पता लगाओ और उसे पूरा करो.’
यही हर पाकिस्तानी तानाशाह पिछले आधे सदी से कर रहा है. 1971 में, जनरल याह्या खान ने अमेरिका और चीन के बीच ऐतिहासिक सुलह में मदद की. जनरल जिया-उल-हक अफगानिस्तान में 1979 से 1988 तक सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिका के प्रॉक्सी युद्ध में अहम सहयोगी थे. और 2001 में, जनरल परवेज मुशर्रफ ने अमेरिका की सेनाओं के लिए पाकिस्तान के हवाई अड्डों और जमीनी रास्ते खोल दिए जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में दो दशक लंबा ‘वार ऑन टेरर’ अभियान शुरू किया.
अमेरिका के इशारों पर नाचते पाकिस्तानी जनरल
1946 में, ब्रिटिश साम्राज्य की चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी ने पाकिस्तान को ब्रिटिश हितों के लिए महत्वपूर्ण माना क्योंकि इसकी भौगोलिक स्थिति और धार्मिक संरचना खास थी. लेकिन न ब्रिटिश और न ही उसके उत्तराधिकारी अमेरिका ने सोचा होगा कि पाकिस्तानी जनरलों की भू-राजनीतिक सिंगल-विंडो क्लियरेंस क्षमता कितनी फायदेमंद होगी.
अमेरिका की आज्ञा मानने वाले पाकिस्तानी जनरल हत्या तक आसानी से कर सकते हैं. 1971 में, जनरल याह्या खान ने अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल कर पूर्वी पाकिस्तान में सैकड़ों हजारों बंगालियों का कत्ल किया. जनरल जिया ने लोकतांत्रिक रूप से चुने गए राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो को हटाया और फांसी दी, और सीक्रेट तरीके से परमाणु हथियार कार्यक्रम चलाया. जनरल मुशर्रफ ने 9/11 के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान आर्मी के ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी के पास ठिकाना दिया.
2025 में, पाकिस्तान के अघोषित तानाशाह, आर्मी चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की बारी है. फील्ड मार्शल ने पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय नेता इमरान खान को जेल में बंद किया, नकली चुनाव करवाए और अपने देश को भारत के साथ एक छोटे विनाशकारी युद्ध में धकेल दिया. ऑपरेशन सिंदूर ने उनके कर्ज में डूबे देश के हवाई अड्डों और रडार को नष्ट कर दिया.
ट्रंप को रेयर अर्थ मेटल्स से लुभाते मुनीर
26 सितंबर को, मुनीर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ व्हाइट हाउस गए. 5 फीट 10 इंच कद वाले चीफ ने यह सुनिश्चित करने के लिए चार इंच की एलीवेटर शूज पहनी कि 6 फीट 3 इंच के अमेरिकी राष्ट्रपति उन पर हावी न हों. मुनीर 18×18 इंच के चमकदार लकड़ी के बॉक्स में रेयर अर्थ मेटल्स और पत्थरों को भी साथ लेकर गए थे.
व्हाइट हाउस की फोटो रिलीज में ट्रंप रंगीन पत्थरों के बॉक्स में झांकते दिख रहे हैं. इस तस्वीर के सामने आने के बाद इसे कई लोग पाकिस्तान के खनिज भंडारों का प्रतीक बता रहे हैं. लेकिन पीछे की कहानी अमेरिका-चीन के बीच रेयर अर्थ मेटल्स की लड़ाई है.
चीन दुनिया का लगभग 90% रिफाइंड रेयर अर्थ मेटल्स उत्पादित करता है और अमेरिका को उसका 70% निर्यात करता है. लेकिन अब ट्रेड वॉर के बीच चीन ने अमेरिका को यह निर्यात बंद कर दिया है.
इससे अमेरिका को F-35 जेट, इलेक्ट्रिक कारों, खरबों डॉलर की कंपनियों, एप्पल और टेस्ला के लिए चिप्स और स्मार्टफोन जैसी चीजों के लिए खनिज के वैकल्पिक स्रोत ढूंढने पड़े हैं. अगस्त में, पेंटागन ने एक घरेलू एजेंसी में सीधे 40 करोड़ डॉलर निवेश कर रेयर अर्थ मेटल्स की सप्लाई सुरक्षित करने की कोशिश की.
8 सितंबर को, पाकिस्तान आर्मी की फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (FWO) जो कि भारत के बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन के समकक्ष है, ने यूनाइटेड स्टेट्स स्ट्रैटेजिक मेटल्स (USSM) के साथ $50 करोड़ डॉलर का समझौता किया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ऑफिस ने कहा कि अमेरिका के साथ यह साझेदारी तुरंत शुरू होगी जिसमें उसे एंटिमनी, तांबा, सोना, टंगस्टन और रेयर अर्थ मेटल्स निर्यात किए जाएंगे.
अमेरिका-चीन दोनों को लुभाने की कोशिश में पाकिस्तान
भू-राजनीति अतीत में अमेरिका-पाकिस्तान सहयोग की नींव थी. मुनीर अब भू-विज्ञान को सहयोग की नींव बनाने की उम्मीद कर रहे हैं, ताकि अमेरिका और चीन दोनों को आकर्षित कर पाकिस्तान की भू-राजनीतिक ताकत बढ़ाई जा सके, भारत की बदले की कार्रवाई से बचा जा सके और सबसे महत्वपूर्ण, अपनी अर्थव्यवस्था चलाने के लिए अरबों डॉलर के कर्ज जुटाए जा सकें.
मुनीर का अनुमान है कि पाकिस्तान में खनिज संपदा बहुत अधिक मात्रा में है और इसी अनुमान के आधार पर उन्होंने अपनी प्लानिंग बनाई है.
अप्रैल में इस्लामाबाद में आयोजित खनिज सम्मेलन ने देश के खनिज भंडार का अनुमान $5 खरब डॉलर लगाया गया. इसमें यह नहीं कहा गया कि इन भंडारों से तुरंत फायदा नहीं होने वाला है. उसके लिए पहले प्रोसेसिंग प्लांट्स लगाने होंगे, खनिज निकाले और रिफाइंड किए जाएंगे. इसमें एक दशक और कई अमेरिकी राष्ट्रपतियों का समय लगेगा.
लेकिन ‘अनुमानों के आधार पर आर्थिक प्रोजेक्ट्स’ का यह पैटर्न पाकिस्तान की सैन्य शासित सरकारों का हिस्सा है. 2015 में, एक और सैन्य प्रोजेक्ट- चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) ने पाकिस्तान को एशियाई टाइगर बनाने का दावा किया था. 62 अरब डॉलर का चीन का यह प्रोजेक्ट 3000 किमी लंबा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है.
धीमा पड़ा चीन का CPEC
2025 में, CPEC धीमी गति से चल रहा है. यह भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं, पर्यावरण को होने वाले नुकसान और सामाजिक अशांति का कारण बन रहा है. इस प्रोजेक्ट से पाकिस्तान पर बहुत अधिक कर्ज बढ़ गया है. इसके जो फायदे बताए गए थे, पूरे नहीं हुए हैं. चीनी निवेश और श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर भी लगातार चुनौतियां आती रही हैं.
पाकिस्तानी अधिकारी अब CPEC के दूसरे चरण में निवेश के लिए चीन को लुभा रहे हैं. वो अपने देश की विशाल खनिज संपदा- 186 अरब टन कोयला, 50 लाख टन से अधिक तांबा, 400 टन सोना और 50 करोड़ टन लौह अयस्क का लालच दे रहे हैं. अमेरिका और चीन दोनों ही उन प्रांतों में निवेश कर रहे हैं जहां मुनीर का आर्मी ने अपने ही लोगों के खिलाफ गृहयुद्ध छेड़ रहा है- खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में… यह हैरान करने वाला है.
दूसरे पाकिस्तानी जनरलों का हश्र न भूलें मुनीर
पाकिस्तानी अखबार ‘The Dawn’ में एक संपादकीय लेख में व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस की बैठक का इतिहास याद दिलाया गया है.
लेख में कहा गया, ‘ऐतिहासिक रूप से यह संबंध लेन-देन वाला रहा है, जिसमें अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन किया और महत्वपूर्ण समय पर हथियार और सहायता दी- शीत युद्ध, अफगान जिहाद और वार ऑन टेरर- लेकिन जैसे ही अपना मतलब पूरा हुआ, अमेरिका उदासीन हो गया या फिर उसने हमसे दुश्मनी पाल ली.’
पाकिस्तानी सैन्य तानाशाहों का भी इस्तेमाल किया गया और छोड़ दिया गया. फील्ड मार्शल अयूब और उनके चेले जनरल याह्या खान का अंत अपमानजनक था, जनरल जिया विमान दुर्घटना में मरे और जनरल मुशर्रफ दुबई में अकेले निर्वासन में रहे. शायद इसी कारण मुनीर ने हाइब्रिड सिविल-मिलिट्री शासन चुना है, जहां नागरिकी की चुनी सरकार को फटकार मिलती है और सेना को तारीफ. पाकिस्तान के खनिज संसाधनों के निकाले जाने तक जिंदा रहना, शायद मुनीर का सबसे बड़ी कामयाबी साबित होगी.
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