एशिया कप के दौरान भारत-पाकिस्तान मैच में भारतीय क्रिकेट टीम ने कैप्टन सूर्य कुमार यादव के नेतृत्व में जो एटीट्यूड दिखाया है, उससे निष्चय ही देश को एक राष्ट्रीय संदेश मिला है. देश की टीम अब तक मैदान के भीतर तो पाकिस्तान को पीटती ही रही है, पर यह पहला मौका है जब सूर्या और उसकी टीम ने मैदान के बाहर भी पाकिस्तान की धूल चटाई है. यह आसान काम नहीं है. एक कैप्टन के रूप सूर्या ने इस तरह का तेवर दिखाने के लिए बहुत बड़ा रिस्क लिया होगा. उन्होंने अपना पूरा करीयर दांव पर लगा दिया. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कहीं न कहीं बीसीसीआई और भारत सरकार भी उनके साथ रही होगी.
पर इतना ही काफी नहीं होता है. अगर सूर्या असफल होते और भारतीय टीम को हार का मुंह देखना पड़ता तो कोई भी उनके साथ आज खड़ा होने को तैयार नहीं होता. सूर्या ने जिस तरह के तेवर दिखाए हैं वह बढ़ते और तरक्की करते भारत के लिए प्रेरणादायी है. अब भारत को अपनी ताकत का अहसास होना चाहिए. यह अहसास चाहे विदेश नीति हो या सुरक्षा नीति हर जगह दिखनी चाहिए. यहां तक कि व्यापार के क्षेत्र में भी. बहुत हो चुका डर डर करके फैसले लेने की रणनीति .अब भारत को सूर्या की तरह से फैसले लेने होंगे.
क्रिकेट भारत और पाकिस्तान के बीच न केवल एक खेल है, बल्कि दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों का आईना भी है. 2025 के एशिया कप में भारत-पाकिस्तान मैचों के दौरान भारतीय टी20 कप्तान सूर्यकुमार यादव ने जो एटीट्यूड दिखाया, वह सराहनीय और प्रेरणादायक रहा है सूर्या का यह रवैया दृढ़ता, देशभक्ति, फोकस और स्मार्ट डिप्लोमेसी का मिश्रण है. एक तरफ भारत अपने दुश्मन देश से क्रिकेट खेलने का फैसले लेता है दूसरी तरफ मैदान में हाथ भी नहीं मिलाता है. बाद में दुश्मन देश के नेता के हाथ से ट्रॉफी भी लेने से इनकार कर देता है. इतना ही मैदान के बाहर भी सूर्या ने जिस तरह की टिप्पणियां अपने दुश्मन देश के बारे में की हैं वो मर्यादित हुए भी मारक भी हैं. मतलब साफ था कि पाकिस्तान को चोट भी पहुंचे और वह आह भी निकाल सके.
एशिया कप 2025 के दौरान सूर्या का एटीट्यूड कई स्तरों पर उभरा. सबसे पहले, उनकी देशभक्ति. 14 सितंबर को ग्रुप स्टेज मैच में भारत की जीत के बाद सूर्या ने कहा, यह जीत हमारे सशस्त्र बलों को समर्पित है, जिन्होंने बहुत बहादुरी दिखाई. यह बयान अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमलों के बाद हुए भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदर्भ था. पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने इस पर शिकायत की, और आईसीसी ने सूर्या को राजनीतिक बयानों से बचने की चेतावनी दी. लेकिन सूर्या ने इसे एक भावनात्मक समर्पण बताया, न कि राजनीतिक हमला. यह दृढ़ता दिखाती है कि जब देश की सुरक्षा का सवाल हो, तो पीछे नहीं हटना है.
फोकस और संयम
फाइनल से पहले सूर्या ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा, हम खिलाड़ियों की रिकवरी पर ध्यान दे रहे हैं, बाकी चीजों के बारे में सोचने का समय नहीं है. यह एक स्मार्ट तरीका था प्रतिद्वंद्वी को रोस्ट करने का न तो उकसाना, न ही ज्यादा भावुक होना. टॉस के दौरान उन्होंने पाकिस्तानी कप्तान सलमान अली आगा के साथ हैंडशेक न करने की नीति का पालन किया, जो भारत की ‘नो हैंडशेक पॉलिसी’ का प्रतीक था. पूर्व पाकिस्तानी कप्तान वकार यूनिस को इग्नोर करना भी इसी का हिस्सा था. लगे हाथ सूर्या ने पूर्व कोच रवि शास्त्री से गर्मजोशी से हाथ मिलाया, जो दिखाता है कि सम्मान चुनिंदा है . दोस्तों के लिए खुला, दुश्मनों के लिए सतर्क.
आक्रामकता के साथ परिपक्वता
सूर्या ने कहा, इंडिया vs पाकिस्तान अब राइवलरी नहीं रही, हम बेहतर क्रिकेट खेल रहे हैं. यह बयान आत्मविश्वास से भरा था, जो पाकिस्तान को नीचा दिखाए बिना भारत की श्रेष्ठता स्थापित करता था.यह एक तरीके की सच्चाई भी है. क्रिकेट में भारत पिछले एक दशक से ज्यादा समय से पाकिस्तान को लगातार पीट रहा है. भारत ने अन्य क्षेत्रों में भी पाकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है. भारत अब दुनिया की तीसरी आर्थिक शक्ति बन रही है जबकि पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार है. इसलिए वास्तव में अब पाकिस्तान को अपना राइवल नहीं मानना चाहिए. पाकिस्तान अब हमारी बराबरी करने योग्य नहीं है. चीन और अमेरिका के साथ भी भारत को अब तन कर खड़ा होने की जरूरत है.
इसी तरह प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तानी बोर्ड चीफ मोहसिन नकवी से हैंडशेक पर विवाद हुआ, लेकिन सूर्या ने इसे साइडलाइन रखा. आईसीसी ने उन्हें 30% मैच फीस का जुर्माना लगाया, लेकिन यह उनके एटीट्यूड को कम नहीं कर सका.सूर्या का रवैया था कि मैदान पर आग, बाहर शांति. देश के हितों की रक्षा, लेकिन बिना अतिरेक के. यह एक ऐसा मॉडल है जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया जा सकता है.
विदेश नीति में सूर्या एटीट्यूड
भारत की विदेश नीति, विशेषकर पाकिस्तान के संदर्भ में, अक्सर आलोचना का शिकार रही है . कभी बहुत नरम, कभी बहुत कठोरय सूर्या का एटीट्यूड यहां एक सबक देता है. दृढ़ता के साथ संयम. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे संदर्भों का इस्तेमाल सूर्या ने भावनात्मक रूप से किया, लेकिन आईसीसी की चेतावनी के बाद उन्होंने राजनीतिक टिप्पणियों से परहेज किया. इसी तरह, भारत को पाकिस्तान के साथ डीलिंग में ‘नो हैंडशेक’ पॉलिसी अपनानी चाहिए. आतंकी हमलों पर सख्ती, लेकिन बातचीत के दरवाजे हमेशा बंद न रखना.चीन और अन्य पड़ोसियों के साथ भी यही लागू होता है. सूर्या की तरह, भारत को लद्दाख या अरुणाचल में आक्रामक रहना चाहिए, लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘राइवलरी खत्म’ कहकर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेनी चाहिए. क्वाड और आईओआर जैसे गठबंधनों में सूर्या का फोकस – खिलाड़ियों की रिकवरी पर ध्यान, वैसा ही है जैसा भारत को आर्थिक साझेदारियों पर केंद्रित रहना चाहिए.
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