संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 80वें सत्र में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत-रूस संबंधों को मजबूती प्रदान करते हुए एक महत्वपूर्ण घोषणा की. उन्होंने कहा कि दिसंबर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नई दिल्ली यात्रा की योजना बनाई जा रही है. लावरोव ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच भारत की स्वतंत्र नीतियों की सराहना की और द्विपक्षीय एजेंडे को व्यापक बताया, जिसमें व्यापार, सैन्य सहयोग, AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) और ब्रिक्स जैसे मंचों पर समन्वय शामिल है.
रूसी विदेश मंत्री ने पुष्टि की कि राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा की योजना दिसंबर में बनाई जा रही है. ये यात्रा दोनों देशों के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन की अगली कड़ी हो सकती है. यह उच्च स्तरीय दौरा दोनों देशों के संबंधों को नई दिशा देगा और रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेगा. ये यात्रा यूक्रेन संकट के बाद पुतिन की पहली भारत यात्रा होगी जो दोनों देशों के रणनीतिक साझेदारी को नई गति देगी.
भारत अपने फैसले लेने में सक्षम
लावरोव ने अपने भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर की भी प्रशंसा की, जिनसे उन्होंने शनिवार ही बात की थी. उन्होंने कहा, ‘इस साल मेरे सहयोगी सुब्रह्मण्यम जयशंकर रूस जाएंगे और मैं भारत का दौरा करूंगा. हम नियमित आदान-प्रदान करते हैं. मैं हमारे व्यापार संबंधों, तेल के बारे में भी नहीं पूछता. मैं हमारे भारतीय सहयोगियों से यह नहीं पूछता. वे खुद इन फैसलों को लेने में पूरी तरह सक्षम हैं.’
स्वाभिमान वाला देश है भारत
लावरोव ने भारत को तुर्की की तरह स्वाभिमान वाला देश बताया जो अपनी विदेश नीति में स्वतंत्र है. लावरोव ने जयशंकर के उस बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर अमेरिका हमें अपना तेल बेचना चाहता है तो हम इस पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन हम अन्य देशों से, संयुक्त राज्य अमेरिका से नहीं, बल्कि रूस या अन्य देशों से क्या खरीदते हैं, ह हमारा अपना मामला है और इससे भारत-अमेरिका एजेंडे का कोई लेना-देना नहीं है.
लावरोव ने ये भी बताया कि इस साल उनके समकक्ष जयशंकर रूस का दौरा करेंगे और वह खुद भारत का दौरा करेंगे. उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच नियमित आदान-प्रदान होते रहते हैं.
UN के सुधारों का किया समर्थन
यूएनजीए संबोधन में लावरोव ने सुरक्षा परिषद के सुधारों की वकालत की और भारत तथा ब्राजील को स्थायी सदस्यता के लिए मजबूत दावेदार बताया. उन्होंने कहा कि वैश्विक दक्षिण के प्रतिनिधित्व को मजबूत करने की जरूरत है. ये बयान भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका को रेखांकित करता है, जहां वह स्वतंत्र विदेश नीति अपनाते हुए रूस जैसे पारंपरिक साझेदारों के साथ संबंध मजबूत कर रहा है.
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