0

Party Leader Says Ex-nepal Pm Prachanda No Longer Chairman Of Cpn-mc – Amar Ujala Hindi News Live


नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ अब सीपीएन (माओवादी सेंटर) के अध्यक्ष नहीं रहे। पार्टी के एक नेता ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि माओवादी पार्टी ने अपनी केंद्रीय समिति को भंग कर दिया है। 

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब युवाओं के नेतृ्त्व वाले जेन-जी समूह द्वारा सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया प्रतिबंध को लेकर हिंसक प्रदर्शन किए और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार गिर गई।

पार्टी का शुद्धिकरण और पुनर्गठन किया जाएगा

केंद्रीय समिति की बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया, ‘जेन-जी आंदोलन की भावना का सम्मान करते हुए पार्टी का शुद्धिकरण और पुनर्गठन किया जाएगा।’ पार्टी की भंग केंद्रीय समिति के सदस्य सुनील मानंधर ने बताया, ‘बैठक के दौरान प्रचंड ने घोषणा की कि वह अब पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं।’ 

ये भी पढ़ें: Egypt Fire: मिस्र के नील डेल्टा में लगी भीषण आग, इमारत ढहने से 11 लोगों की मौत और 30 से अधिक घायल

केंद्रीय समिति में थे 700 सदस्य

प्रचंड की अध्यक्षता वाली केंद्रीय समिति में 700 सदस्य थे। अब पार्टी ने प्रचंड की अध्यक्षता में एक महासम्मेलन समिति बनाई है, जो दिसंबर के मध्य में विशेष आम सम्मेलन बुलाएगी। पार्टी ने यह भी तय किया है कि माओवादी गुटों और समान विचारधारा वाली अन्य पार्टियों के साथ एकता प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

पार्टी ने आम चुनाव कराने के फैसले का किया स्वागत

सीपीएन-माओवादी सेंटर ने अंतरिम सरकार के 5 मार्च को आम चुनाव कराने के फैसले का स्वागत किया और चुनाव सफल बनाने में रचनात्मक भूमिका निभाने का निर्णय लिया। इसके साथ ही, पार्टी नेताओं की संपत्ति की जांच करने के लिए एक सशक्त समिति गठित करने का फैसला भी लिया गया। भ्रष्टाचार पर रोक लगाना जेन-जी आंदोलन की मुख्य मांगों में से एक थी।

ये भी पढ़ें: 80th UNGA: पहलगाम आतंकी हमले पर यूएन के मंच से पाकिस्तान का अनर्गल प्रलाप; पीएम शहबाज बोले- शुक्रिया ट्रंप…

जेन-जी युवाओं को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की जाएगी

बयान के अनुसार, पार्टी ने यह भी कहा कि संगठन के सभी स्तरों पर जेन-जी युवाओं को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की जाएगी। गौरतलब है कि 8-9 सितंबर को हुए जेन-जी आंदोलन के बाद 73 वर्षीय सुशीला कार्की के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी, जिससे नेपाल में जारी राजनीतिक अनिश्चितता खत्म हुई।