0

पंजाब की राज्यसभा सीट पर 24 अक्टूबर को चुनाव होंगे, केजरीवाल नहीं तो कौन जाएगा? – arvind kejriwal punjab rajya sabha by election sisodia jain opnm1


अरविंद केजरीवाल के लिए एक और अग्निपरीक्षा की घड़ी आ गई है. और ये हुआ है,  पंजाब में राज्यसभा की एक सीट पर उपचुनाव की तारीख घोषित कर दिए जाने से. संजीव अरोड़ा के लुधियाना वेस्ट उपचुनाव में विधायक बन जाने के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 24 अक्टूबर को वोटिंग होगी. नामांकन की अंतिम तारीख 13  अक्टूबर है, और 16 अक्टूबर तक नाम वापस लिये जा सकते हैं. 

ये अग्निपरीक्षा हार जीत को लेकर कतई नहीं है, क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी के पास पूरा नंबर है. और, जिस तरह से अरविंद केजरीवाल अपनी पूरी टीम के साथ दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद से ही पंजाब में डटे हुए हैं, क्रॉस वोटिंग या किसी मिलते जुलते खतरे की भी आशंका नहीं लगती. 

लुधियाना वेस्ट सीट के लिए संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाए जाने के साथ ही ये चर्चा शुरू हो गई थी कि अरविंद केजरीवाल के राज्यसभा भेजे जाने का रास्ता बनाया जा रहा है. पहले तो आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता बीजेपी और राजनीतिक विरोधियों के ऐसे दावों को खारिज करते रहे, बाद में जब यही सवाल अरविंद केजरीवाल के सामने उठा तो जवाब था, मैं राज्यसभा नहीं जा रहा हूं… पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति तय करेगी कि कौन राज्यसभा जाएगा.

लेकिन, अगर राजनीतिक मामलों की समिति ने अरविंद केजरीवाल का ही नाम तय कर दिया तो? 

हर नेता ये स्कोप बचाकर तो रखता ही है. वैसे भी अरविंद केजरीवाल अपने वादों के जितने पक्के हैं, लगता नहीं कि वो राज्यसभा नहीं जाएंगे. अब अगर अपने लिए कोई बड़ा या खास प्लान हो तो बात और है. फिर तो सवाल ये भी है कि अरविंद केजरीवाल नहीं तो कौन?

कैसे मान लिया जाए कि केजरीवाल राज्यसभा नहीं जाएंगे

अरविंद केजरीवाल के ट्रैक रिकॉर्ड के हिसाब से देखें तो सहज तौर पर माना जा सकता है कि पंजाब से राज्यसभा वही जाएंगे. उनको ऐसी बातों का कतई मलाल नहीं होगा कि अगर चले गए तो लोग क्या कहेंगे? ऐसी बातें तो बहुत पहले ही पीछे छूट चुकी हैं. अब तो ऐसा लगता है, जो बात वो कहेंगे वो करने में भले ही संकोच हो, लेकिन जिसके बारे इनकार करेंगे, वो तो पक्के तौर पर करके ही दम लेंगे. 

गाड़ी-बंगला, सिक्योरिटी और जाति धर्म की राजनीति जैसी तमाम चीजों पर पहले आदर्श वाक्य भरे बयान देने के बाद वो पलटी मार चुके हैं. बहुत सारे नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाकर भी वो कदम पीछे खींच चुके हैं, और पीछा छुड़ाने के लिए माफी भी मांग चुके हैं. सार्वजनिक तौर पर भी, और कोर्ट में भी. 

1. राजनीति में आने के साथ ही 2013 में अरविंद केजरीवाल ने कहा था, हम बड़ा बंगला, लाल बत्ती, सिक्योरिटी नहीं लेंगे – और तस्वीर का दूसरा पहलू तो यही नजर आया कि दिल्ली का मुख्यमंत्री आवास स्वाति मालीवाल के साथ मारपीट की घटना से ज्यादा भ्रष्टाचार के ‘शीशमहल’ के रूप में प्रचारित हो गया. आरोप और जांच-पड़ताल अपनी जगह है, नतीजे जल्दी तो आते नहीं. 

2. भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के जरिए राजनीति में आए, और लोकपाल की मांग तो जैसे भुला ही दी गई. कहां नई तरह की राजनीति की उम्मीद की जा रही थी, और कहां भ्रष्टाचार के आरोप में दिल्ली शराब नीति केस में तिहाड़ जेल तक जाना पड़ा. और सिर्फ अकेले नहीं, सबसे करीबी साथी मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और संजय सिंह को भी जेल जाना पड़ा. 

3. शुरू में तो कहते रहे कि जाति और धर्म की राजनीति नहीं करेंगे, लेकिन दिल्ली से लोकसभा चुनाव में एक उम्मीदवार ने बताया था कि उन पर अपने नाम के साथ टाइटल लिखने का दबाव बनाया गया था ताकि जाति को प्रचारित किया जा सके – और चुनावों में लोगों को अयोध्या भेजने से लेकर करेंसी नोटों की वैल्यू बढ़ाने के लिए लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें लगाने तक की पैरवी करने लगे. 

4. पहले कहा करते थे कि अपने मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर उनको बचाने की जगह फौरन एक्शन लेंगे, लेकिन जब ऐसी नौबत आई, और जांच एजेंसियों की छान बीन और छापेमारी होने लगी तो कहने लगे – हम लोग कट्टर ईमानदार हैं. 

5. अव्वल तो गठबंधन की राजनीति के ही कट्टर विरोधी थे, लेकिन पहली सरकार ही कांग्रेस के सपोर्ट से बनाई. बाद में कांग्रेस के मना कर देने के बावजूद गठबंधन के लिए जीतोड़ कोशिश करते दिखे – और 2024 के आम चुनाव में तो कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर चुनाव भी लड़े. 

ऐसी और भी बातें हैं, लेकिन जब इतनी ही बातें एक साथ याद आती हैं तो लगता है कि अरविंद केजरीवाल पक्का राज्यसभा जाएंगे – जाएंगे तभी तो राहुल गांधी के बराबर खड़े होकर संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे सीधे ललकारते हुए चैलेंज कर सकेंगे. 

केजरीवाल नहीं तो कौन जाएगा राज्यसभा?

ऐसी बातों के बावजूद अगर अरविंद केजरीवाल के पास कोई और प्लान है, तो सवाल ये उठेगा कि वो नहीं तो कौन? 

क्योंकि राज्यसभा की सीटें तो सीमित हैं. भेजा तो वही जाएगा, जो आम आदमी पार्टी के लिए फायदेमंद भी साबित हो. अगर ये चक्कर नहीं होता, तो क्या कभी कुमार विश्वास को बागी और विरोधी बनने की जरूरत पड़ती? आशुतोष और आशीष खेतान जैसे लोगों को राजनीति छोड़ने की जरूरत पड़ी होती?

तब तो कतार में लगे ऐसे बहुतेरे लोगों को संजय सिंह और दो चार्टर्ड अकाउंटेंट ने पछाड़ दिया था. कालांतर में स्वाति मालीवाल का केस भी अरविंद केजरीवाल के गले पड़ ही गया, जो आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सदस्य होते हुए भी अरविंद केजरीवाल को ही कठघरे में खड़ा किए रहती हैं. 
ऐसे अनुभवों के बाद तो अरविंद केजरीवाल के लिए भी उम्मीदवार के नाम पर फैसला कर पाना मुश्किल हो रहा होगा – क्या मालूम थक हार कर ऐसी नौबत आने से रोकने के लिए न चाहते हुए भी अपना ही नाम फाइनल कर लें.

फिर भी अगर लगा कि खुद नहीं जाना, तो अगला नंबर मनीष सिसोदिया का हो सकता है. और मनीष सिसोदिया पर भी मन नहीं बना, चाहे खुद केजरीवाल का या सिसोदिया का ही, तो सत्येंद्र जैन भी तो हैं ही – खास बात ये है कि दोनों ही पंजाब के मामले ही देख रहे हैं. जहां, 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं, और किसी भी सूरत में दिल्ली नहीं दोहराने देना है.

—- समाप्त —-