जहां एक ओर देश की इकोनॉमी को लेकर विदेशों से अच्छी खबरें आ रही हैं और जीडीपी ग्रोथ तेज रहने के अनुमान जाहिर किए जा रहे हैं, वहीं कुछ खराब खबरों की भी चर्चा खूब हो रही है. खासतौर पर अमेरिका से भारत पर ट्रिपल अटैक देखने को मिला है. पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% का हाई टैरिफ बम फोड़ा, तो उसके बाद अचानक बड़ा फैसला लेते हुए H1B Visa के शुल्क में तगड़ा इजाफा कर दिया. वहीं अब ट्रंप के इस फैसले से इंडियन करेंसी रुपया पर बुरा असर दिख रहा है और हर रोज रुपया गिरता जा रहा है.
टैरिफ… वीजा फीस और रुपया
अमेरिकी टैरिफ के बाद ट्रंप के वीजा फी हाइक के ऐलान का असर भारतीय शेयर बाजार पर भी लगातार जारी है और सेंसेक्स-निफ्टी बीते कुछ दिनों से संभल नहीं पा रहे हैं. बता दें कि पहले डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% का रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था, जिसे रूसी तेल-हथियार खरीदने के मुद्दे को लेकर बढ़ाकर दोगुना यानी 50% कर दिया.
लेकिन दोनों देशों की बीच बातचीत पॉजिटिव रूट पर आगे बढ़ने की खबरों से इसका असर कुछ कम होता दिखा ही था, कि ट्रंप ने ‘वीजा बम’ फोड़ दिया और H1B Visa शुल्क को 1 लाख डॉलर करने का ऐलान कर दिया, जिससे टैरिफ के असर से उबरने की कोशिश कर रहे शेयर मार्केट में फिर गिरावट आ गई. वहीं इससे बढ़े दबाव के चलते भारतीय करेंसी के टूटने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो लगातार जारी है और बुधवार को ओपनिंग के साथ ही भारतीय नए लाइफ टाइम लो-लेवल पर आ गया.
रिपोर्ट के मुताबिक, जहां भारतीय वस्तुओं पर 50% का भारी अमेरिकी टैरिफ लगने से करेंसी पर लगातार दबाव बना हुआ है, वहीं वाशिंगटन द्वारा एच-1बी वीजा शुल्क बढ़ाए जाने के बाद यह और भी बढ़ गया. दरअसल, वीजा के नए नियम से भारतीय आईटी पेशेवरों की अमेरिका पहुंचने की राह में मुश्किल पैदा हो सकती है, जिससे आईटी सेवाओं के निर्यात में ग्रोथ धीमी पड़ सकती है. एमके ग्लोबल के एनालिस्ट्स ने तो चेतावनी भी दी है कि इससे FY26 में आईटी सर्विसेज की एक्सपोर्ट ग्रोथ वृद्धि 4% से नीचे आ सकती है, जो पहले के 5% के अनुमान से कम है.
रोज गिरने का नया रिकॉर्ड
गिरावट पर गिरावट लेते हुए हर रोज रिकॉर्ड बना रही भारतीय करेंसी रुपया ने मंगलवार को एक महीने में सबसे बड़ी एक दिनी गिरावट झेली थी और बुधवार को जब ये खुला तो फिसलकर Dollar के मुकाबले 88.80 के रिकॉर्ड लो पर आ गया. रॉयटरर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक महीने के नॉन-डिलिवरेबल फॉरवर्ड ने भी संकेत दिया था कि रुपया, डॉलर के मुकाबले 88.85-88.90 के दायरे में खुलेगा, जो बीते कारोबारी दिन 88.7975 के रिकॉर्ड लो-लेवल के स्तर को पार कर जाएगा.
इकोनॉमी के लिए अच्छी नहीं गिरावट
लगातार फिसलते रुपये को संभालने के लिए तत्काल कदम उठाना जरूरी है, नहीं तो ये बड़ी परेशानी का कारण बन सकता है, क्योंकि इसका इकोनॉमी से लेकर महंगाई दर तक पर असर देखने को मिल सकता है. दरअसल, किसी भी देश की करेंसी का टूटना उसकी इकोनॉमी के लिए ठीक नहीं माना जाता है. सामान्य भाषा में समझें, तो कमजोर करेंसी आयात को महंगा बनाने में अहम रोल निभाती है, इसके अलावा इसमें कमजोरी या मजबूती का सीधा असर देश के व्यापार घाटे पर भी देखने को मिलता है.
हालांकि, बीते दिनों पूर्व वित्त सचिव और वर्तमान में मार्केट रेग्युलेटर सेबी के चेयरपर्सन ने रुपये में गिरावट को लेकर कहा था कि रिजर्व बैंक लगातार इसमें अस्थिरता संभालने पर काम कर रहा है. इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि इंडियन करेंसी ‘फ्री फ्लोट’ है और इसके लिए कोई निश्चित दर तय नहीं की जाती.
महंगाई में इजाफे का जोखिम
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार कमजोरी से देश में महंगाई दर में इजाफा होने का खतरा भी बढ़ जाता है. इसका असर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स से लेकर विदेशों में पढ़ाई के लिए जाने वाले छात्रों पर होने वाले खर्च तक में बढ़ोतरी के रूप में देखने को मिलता है. इसे उदाहरण के तौर पर समझें तो, भारत कच्चे तेल का सबसे बड़े आयातकों में शामिल है और जरूरत का ज्यादातर क्रूड ऑयल इंपोर्ट करता है.
रुपया गिरने की स्थिति में भारत को इसके आयात के लिए ज्यादा डॉलर खर्चने पड़ते हैं और इसकी भरपाई के तौर पर पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है. अगर ऐसा होता है तो ट्रांसपोर्टेशन, लॉजिस्टिक्स पर खर्च बढ़ता है और चीजों के दाम में इजाफा देखने को मिलता है. खासतौर पर रुपये टूटने से आयातित सामानों पर महंगाई बढ़ जाती है.
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