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तब आरएसएस में होता था ‘सेनापति’, खाकी कमीज पहनते थे स्वयंसेवक! – rss 100 years chapter 3 senapati martandrao jog history ntcpsm


कई लोगों के लिए ये हैरानी भरा हो सकता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कभी कोई सेनापति भी होता था. लेकिन ये सच है और ये पद करीब 14 साल तक संघ में बनाए भी रखा गया. जब तक ये पद संघ में रहा, एक ही व्यक्ति इसपर रहा. हालांकि छत्रपति शिवाजी की परंपरा के अनुसार इस पद का नाम था, ‘सरसेनापति’.

दरअसल, संघ की स्थापना के 4 साल बाद यानी नवम्बर 1929 में जब संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवकों ने नागपुर में संघ की प्रशासनिक व्यवस्था बनाई और उसमें पहले ‘सरसंघचालक’ के पद का दायित्व डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को दिया गया, तो साथ में दो और पदनाम भी रखे गए— सरकार्यवाह (महासचिव) और सरसेनापति. पहले सरसेनापति चुने गए मार्तंड राव जोग. और वही संघ के पहले व अंतिम सरसेनापति थे.

संघ में क्यों था सरसेनापति?
हालांकि, संघ कोई सैनिक या क्रांतिकारी प्रकृति का संगठन नहीं था. तो ऐसे में सवाल आपके मन में उठ सकता है कि फिर सरसेनापति का पद, जो कभी छत्रपति शिवाजी ने अपनी मराठा सेना के सर्वोच्च अधिकारी के लिए सृजित किया था, उसे संघ ने क्यों अपनाया? दरअसल ये प्रशिक्षण अधिकारी का पद था, जिसका दायित्व स्वयंसेवकों को शारीरिक व्यायाम से लेकर दंड (लाठी) आदि चलाने का प्रशिक्षण देने के शिविर लगाना था. संघ के जो विशाल लेकिन अनुशासित पथसंचलन आपने देखे होंगे, उनकी शुरूआत मार्तंड राव जोग ने ही की थी.

संघ के पहले और आखिरी सरसेनापति थे मार्तंडराव जोग (Photo: AI-Generated)

जोग 1920 में आर्मी से रिटायर हुए थे और 1926 में जब डॉ हेडगेवार ने उन्हें स्वयंसेवकों की साप्ताहिक परेड करवाने के लिए कहा, उस समय वह कांग्रेस सेवा दल से भी जुड़े थे, कभी डॉ. हेडगेवार की ही तरह. लेकिन बाद में उन्होंने गुरु गोलवलकर को पत्र में लिखा था, “मैं अब पूरी तरह संघ के साथ हूं, संघ ने मेरा व्यक्तित्व विकसित कर दिया. ये डॉ. हेडगेवार का अगाध स्नेह था कि संघ में मुझे जगह दी”.

क्यों हटाया गया सरसेनापति का पद?
लगभग 14 साल ये व्यवस्था चलती रही और पद भी बना रहा, लेकिन दूसरा विश्वयुद्ध शुरू होते ही हालात बदल गए. 5 अगस्त 1940 को अंग्रेजी सरकार ने एक अध्यादेश निकाला कि भारत सुरक्षा कानून के तहत किसी भी संगठन को ना तो सैनिक की यूनीफॉर्म पहनने की अनुमति होगी और ना किसी भी तरह की सैनिक ट्रेनिंग की. फिर भी अगले 3 साल तक विचार मंथन चलता रहा. 

इसी बीच दिल्ली, पंजाब और मद्रास में कुछ संघ अधिकारियों पर इसी वजह से अंग्रेज सरकार ने एक्शन भी लिया. आखिरकार 28 अप्रैल 1943 को दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने सभी शाखाओं के नाम पत्र भेजकर सैन्य प्रशिक्षण समाप्त कर दिया. दरअसल गुरु गोलवलकर जुलाई 1940 में सरसंघचालक बने थे और अगस्त में ही ये आदेश आ गया था. सो इतना बड़ा फैसला तुरंत लेना उचित भी नहीं था, और बिना सारे पहलू देखे आसान भी नहीं रहा होगा.

सरसेनापति का पद हटने के साथ ही बदली थी संघ की यूनिफॉर्म (Photo: AI-Generated)

गुरु गोलवलकर ने लिखा भी था कि ‘इस प्रशिक्षण के पीछे हमारा ध्येय नागरिक अनुशासन का संस्कार देना मात्र था, हम कानून के दायरे में रहकर काम करेंगे’. ऐसे में संघ के सैनिक विभाग, सेनापति और सरसेनापति जैसे पद खत्म कर दिए गए, मार्तंड राव जोग ने भी 14 साल बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

लेकिन ये घटना एक और बड़ा बदलाव लेकर आई, इससे पहले संघ का गणवेश (यूनीफॉर्म) खाकी निकर और खाकी कमीज हुआ करती था, जो एक तरह से सैन्य गणवेश था. संघ ने कमीज का रंग सफेद कर दिया, निकर खाकी ही रही और साथ में काली टोपी थी ही. सो संघ के इतिहास में ये बड़ा बदलाव था, ना दोबारा सरसेनापति का ही पद वापस आया और ना ही दोबारा खाकी कमीज ही वापस आई. खाकी निकर का एक विकल्प खाकी पैंट जरूर हो गया है.

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