नवरात्रि की शुरुआत के साथ देशभर में रामलीलाओं का दौर भी शुरू हो चुका है. दिल्ली की मशहूर लवकुश रामलीला कमेटी लालकिले की रामलीला के नाम से पहचानी जाती रही है. इस कमेटी की खासियत है कि इसके किरदार जानी-मानी हस्तियां होती हैं. फिल्मी दुनिया से जुड़े लोग और सामाजिक जीवन में अपनी पहचान बनाने वाले अलग-अलग क्षेत्रों की मशहूर शख्सियत इस रामलीला का हिस्सा रही हैं.
इस बार यह रामलीला कमेटी विवादों में भी घिरती दिख रही है. असल में इस बार लवकुश रामलीला कमेटी के मंचन में एक्ट्रेस पूनम पांडेय भी हिस्सा ले रही हैं. वह इसमें मंदोदरी का किरदार निभाने जा रही हैं. हालांकि इसका चौतरफा विरोध हो रहा है, लेकिन अभी तक कमेटी की तरफ से उनकी योजना में कोई बदलाव नहीं किया गया है. वहीं पूनम पांडेय ने भी मीडिया बातचीत में कहा है कि वह 9 दिन तक सात्विक रहते हुए और व्रत रखकर इस किरदार को निभाएंगी.
चर्चा में हैं पूनम पांडेय
पूनम पांडेय मंदोदरी का किरदार निभाने जा रही हैं, इस चर्चा के बाद मंदोदरी का किरदार भी चर्चा में आ गया है. असल में लोगों का विरोध एक्ट्रेस की पहले की फिल्में हैं, जिनमें निभाया गया उनका किरदार मंदोदरी के उस चरित्र से मेल नहीं खाता, जिसका वर्णन पौराणिक कथाओं में है. इसीलिए रावण जैसे विलेन की पत्नी होने के बावजूद मंदोदरी के लिए लोगों के मन मे एक अलग ही श्रद्धा है.
मंदोदरी का नाम लेते ही सबसे पहले याद आ जाता है लंकापति दशानन रावण, लेकिन रावण के महान ब्राह्मणत्व और महान शिवभक्ति के पीछे मंदोदरी का चरित्र अपनी अलग ही पहचान रखता है, ये दूसरी बात है कि रामकथा में उसके इस उजले चरित्र को बहुत तवज्जो नहीं मिली. सिवाय इसके कि लोग जानते हैं कि कैसे मंदोदरी ने रावण को तब हर बार समझाने की कोशिश की, जब वह शूर्पणखा के भड़काने पर श्रीराम की पत्नी देवी सीता का हरण कर लाया था. वह कहती है, ‘राम कोई साधारण राजा नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के अधिपति हैं. इस पर विचार कीजिए, और उनसे वैर मत रखिए, ताकि मुझे विधवा न होना पड़े.’ लेकिन रावण अपनी बुद्धिमती पत्नी की बात अनसुनी कर देता है और उसे मंदबुद्धि और मूर्ख तक कह देता है.
हालांकि डॉ. कामिल बुल्के अपने एक लेख, रामकथा : उत्पत्ति और विकास में दर्ज करते हैं कि, वाल्मीकि रामायण में मंदोदरी की ओर से की जाने वाली मध्यस्थता का उल्लेख नहीं मिलता, बाद की रामकथा साहित्य में ही उन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है.
सिर्फ रावण की पत्नी होना ही मंदोदरी की पहचान नहीं
मंदोदरी कौन हैं? पुराणों में इस प्रश्न का उत्तर रावण की पत्नी वाली पहचान से कतई अलग है. मंदोदरी को एक जगह हेमा अप्सरा का रूप बताया गया है, जिसे श्रापवश धरती पर मानव रूप में जन्म लेना पड़ा था. एक जगह दर्ज है कि वह दैत्यराज मय की पुत्री हैं, जो पहले मेंढक के रूप में जन्मी थीं और ऋषियों के आशीर्वाद से सुंदर कन्या बनीं. लोककथाओं में ऐसा भी जिक्र आता है कि भगवान विष्णु के शरीर पर लगे चंदन के झड़ने से मंदोदरी का जन्म हुआ था.
उत्तररामायण में वर्णन आता है कि मयासुर को बहुत प्रार्थना के बाद यह कन्या मिली थी, जिसे देखकर रावण ने विवाह किया और लंका ले गया. एक और कथा ऐसी भी आती है कि मय दानव ने खुद अपनी बेटी मंदोदरी का विवाह रावण से कराया और दहेज स्वरूप लंका भेंट दी. वाल्मीकि रामायण कहती है कि मंदोदरी इतनी सुंदर थीं कि जब हनुमान रावण की रानियों के बीच उन्हें देखते हैं तो एक पल के लिए उन्हें सीता समझ बैठते हैं. फिर वह जब उन्हें पलंग पर चैन से सोता हुआ देखते हैं तो अनुमान लगाते हैं कि यह देवी सीता नहीं हो सकतीं, क्योंकि सीता इतनी पवित्र हैं कि वह न तो किसी पलंग पर लेटेंगी और न ही आराम से सोएंगी ही.
मंदोदरी ही वह थी, जो रावण को बार-बार समझाने की कोशिश करती है कि वह सीता को वापस भेज दें. सीता को मारने से रोकने के लिए वे रावण को उसके श्रापों की याद दिलाती हैं और उसे बहलाने का प्रयास करती हैं. संक्षेप में, मंदोदरी हर संभव उपाय करती हैं ताकि उनका पति निरपराध स्त्री-वध जैसा महापाप न कर बैठे.
अलग-अलग रामायण में अलग तरह की कथाएं
कश्मीरी रामायण में कथा है कि जब रावण सीता को लंका लाता है तो उसे मंदोदरी के सुपुर्द कर देता है. तब सीता को देखकर मंदोदरी में ममता उमड़ आती है. असल में कुछ कथाओं में यह भी जिक्र मिलता है कि मंदोदरी ने तीन पुत्रों से पहले संतान के रूप में एक पुत्री को भी जन्म दिया था, लेकिन उस पुत्री के जन्म पर आकाशवाणी होती है कि यही रावण का काल होगी, तब रावण उसे लंका से बहुत दूर मिथिला की भूमि में छिपा आया था. सीता के नैन-नक्श देखकर मंदोदरी को अपनी वही नवजात बेटी याद आ गई थी.
पंचकन्याओं में एक है मंदोदरी
मंदोदरी पंचकन्याओं में से एक हैं, इसमें उन्हें अहिल्या, द्रौपदी, कुंती और तारा के साथ गिना जाता है. इन्हें स्मरण करने से महापाप नष्ट होते हैं. फिर भी, उनकी पवित्रता की परीक्षा भी अग्नि द्वारा होती है, ठीक वैसे ही जैसे सीता की. असमिया लोककथा ‘गणकाचरिता’ में आता है कि मंदोदरी को अपनी पवित्रता सिद्ध करनी पड़ती है. हनुमान उन्हें छलपूर्वक कलंकित करता है, किंतु वे सत्यनिष्ठा से अपनी निर्दोषिता सिद्ध करती हैं और अंततः रावण को डांटकर कहती हैं—‘सीता को तुरंत राम को लौटा दो.’
थाइलैंड की रामकथा रामकिआन में भी ऐसी कथा है कि मंदोदरी के सतीत्व के कारण रावण का प्रभाव कम नहीं हो रहा था. तब हनुमान रावण का रूप बनाते हैं और मंदोदरी उन्हें स्पर्श कर लेती हैं. इससे रावण के चारों ओर बना सतीत्व का रक्षाकवच टूट जाता है.
इस तरह रामकथा के एक वर्जन में है कि अंगद मंदोदरी को बाल पकड़कर घसीटते हैं. असल में रावण अग्निबलि नाम का एक अनुष्ठान कर रहा था. वह पूरा हो जाता तो रावण अजेय हो जाता. तब अंगद मंदोदरी का सहारा लेता है और उसे घसीटता है. मंदोदरी रावण से बचाव की गुहार लगाती है. आखिरकार रावण को यज्ञ से उठना ही पड़ता है. ऐसा होते ही यज्ञ भंग हो जाता है औ अपना उद्देश्य पूरा होते ही अंगद मंदोदरी को छोड़ देता है और इस कृत्य के लिए झुककर क्षमा भी मांगता है. क्योंकि उसने मां समान मंदोदरी के बाल पकड़े थे.
मंदोदरी के जन्म की विचित्र कथाएं
मंदोदरी के जन्म की कथाएं और भी विचित्र हैं और अलग-अलग वर्जन में बेहद दिलचस्प हैं. तेलुगु रंगनाथ रामायण में जिक्र आता है कि पार्वती एक गुड़िया बनाती हैं, जिसे शिव एक कन्या में बदल देते हैं. बाद में, कन्या की सुंदरता से चिंतित होकर पार्वती, शिव उसे मेंढक में बदल देते हैं और वह एक कुएं में गिर जाती है. वहां से ऋषि उसकी आवाज सुनकर निकालते हैं और एक सुंदर कन्या में बदल देते हैं. यह कन्या लालन-पालन के लिए मय दानव को सौंपी जाती है और इस तरह एक मेढकी से लड़की बनी युवती मंदोदरी कहलाती है.
एक अन्य तेलुगु कथा और कुचिपुड़ी नृत्य परंपरा में आता है कि रावण शिव से पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में मांगते हैं. इससे पार्वती नाराज हो जाती हैं. तब पार्वती एक मेढकी को अपने समान दिखने वाली एक कन्या में बदल देती हैं और उसे रावण को सौंप देती हैं. चूंकि स्त्री मेंढक से बनी थी, इसलिए उसे मंदोदरी कहा गया. आनंद रामायण में है कि पार्वती का ऐसा अपमान देखकर भगवान विष्णु अपने शरीर पर लगे चंदन के लेप से मंदोदरी को बनाते हैं और रावण से पार्वती को बचाने के लिए उसे असली पार्वती के रूप में सौंप देते हैं. इसीलिए मंदोदरी भीतर ही भीतर वैष्णव धर्म को मानने वाली भी थी.
छोटा लेकिन प्रभावशाली है मंदोदरी का किरदार
इस तरह, रामायण में मंदोदरी की भूमिका भले ही थोड़ी ही रही हो, लेकिन रही है बेहद प्रभावशाली है. हालांकि मंदोदरी को कष्ट बहुत सहने पड़े. वह पति, पुत्र और पूरा परिवार युद्ध में खो देती हैं. उनके भीतर एक मौन आक्रोश और पीड़ा छिपी रहती है. जिसे किसी कथा में कोई शब्द कोई अभिव्यक्ति नहीं मिली है.
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