एशिया कप के सुपर-4 मुकाबले में रविवार को भारत-पाकिस्तान के बीच मुकाबला खेला गया. इस मैच में भारत ने 6 विकेट से जीत हासिल की. लेकिन पाकिस्तानी ओपनर साहिबजादा फरहान के अर्धशतक जश्न और तेज गेंदबाज हारिस रऊफ के भारतीय प्रशंसकों को दिए गए जवाब ने टीम की ‘मुजाहिद’ मानसिकता को उजागर किया है. दरअसल, फरहान ने 50 रन पूरे करने के बाद AK-47 चलाने का नाटक किया, जबकि कुछ ही देर बाद हारिस रऊफ ने स्टैंड से “कोहली, कोहली” के नारे सुनकर हवाई जहाज गिराने का इशारा किया और 6 उंगलियां दिखाई.
यह इशारा पाकिस्तान के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान छह भारतीय विमानों को गिराने के प्रोपेगंडा की ओर था. यह दिखावा उस समय हुआ जब पाकिस्तान मैदान पर बुरी तरह पराजित हो रहा था. रविवार को भारत ने एशिया कप 2025 श्रृंखला में एक सप्ताह में दूसरी बार पाकिस्तान को हराया.
क्रिकेट के मैदान पर भारत से इतने सालों से लगातार हारने के बाद भी पाक क्रिकेटरों में कोई विनम्रता नहीं आई है. यह असभ्यता रविवार को भी देखने को मिली, जिसमें उकसावे वाले इशारे खेल भावना की कमी को दर्शाते हैं. भारत और पाकिस्तान के मैच हमेशा उच्च तनाव वाले रहे हैं, लेकिन इस बार पाकिस्तानी क्रिकेटरों ने पहली बार मैदान पर उग्र मानसिकता दिखाई.
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पाक खिलाड़ियों की मानसिकता पर सवाल उठना जायज
पाकिस्तान आतंकवाद का जाना-माना निर्यातक है, और मई में भारत-पाक युद्ध की शुरुआत आतंकवादी शिविरों पर ऑपरेशन सिंदूर के हमलों से हुई थी. इस्लामाबाद आतंक वित्तपोषण के लिए FATF ग्रे सूची में भी है. फरहान और रऊफ ने इस आतंकवादी प्रतीकवाद को “जेंटलमेन गेम” में ला दिया. भारत ने पेशेवरिता और संतुलित आक्रामकता के साथ जवाब दिया, जैसा कि खेल की मांग है.
अभिषेक शर्मा ने दिया जवाब
अभिषेक शर्मा ने अपनी पारी को पाकिस्तान के बिना कारण हमले का जवाब बताया. प्लेयर ऑफ द मैच पुरस्कार लेते हुए शर्मा ने कहा, “वे बिना किसी वजह हम पर आ रहे थे, मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं आया. मैंने सोचा कि यही मेरा जवाब हो सकता है और टीम की जीत में योगदान दे सकता हूं.”
बीसीसीआई और भारतीय सरकार को पाकिस्तान के साथ एशिया कप खेलने के फैसले पर आलोचना का सामना करना पड़ा, कई प्रशंसकों ने क्रिकेट कूटनीति जारी रखने पर सवाल उठाए. बीसीसीआई सचिव देवजीत सैकिया ने कहा कि टूर्नामेंट की संरचना के कारण भारत के पास कोई विकल्प नहीं था. इसके बावजूद, करोड़ों भारतीयों ने भरोसा रखा कि क्रिकेट केवल एक खेल रहेगा. यहां तक कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ एक खेल है.
लेकिन पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने खेल भावना की भावना को धुंधला कर दिया है.
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पाक ने कभी क्रिकेट को सिर्फ खेल समझा ही नहीं
पाकिस्तान के क्रिकेट में धार्मिकता की झलक लंबे समय से देखी जाती है. यह “मुजाहिद” मानसिकता या “जिहादी एथोस” खेल में समय-समय पर घुसपैठ करता रहा है. जब पाकिस्तानी खिलाड़ियों का प्रदर्शन कमजोर होता है, यह भावना उभरती है. 2007 विश्व कप में कई खिलाड़ी, जो तबीलीगी जमात के प्रभाव में थे, प्रशिक्षण छोड़कर स्थानीय लोगों को धर्म प्रचार करते थे. पाकिस्तानी पत्रकार सैयद मुजम्मिल ने बताया कि इससे टीम की एकजुटता और पेशेवरिता प्रभावित हुई, जिसके बाद पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने धार्मिक या राजनीतिक प्रचार पर प्रतिबंध लगाने वाले नियम बनाए.
कुछ खिलाड़ियों ने खुले तौर पर “मुजाहिद” पहचान को अपनाया है. पूर्व कप्तान इंज़माम-उल-हक को “मुल्तान के सुल्तान” के साथ “मुजाहिद-ए-मुल्तान” भी कहा जाता था. उन्होंने विकेटकीपर बल्लेबाज मोहम्मद रिजवान की प्रशंसा करते हुए कहा था कि रिजवान गैर-मुस्लिमों को नमाज के करीब नहीं आने देते, इसलिए वह सबसे अच्छे कप्तान हैं.
इंजमाम ने यह भी कहा था कि पाकिस्तानी टीम भारतीय मुस्लिम खिलाड़ियों इरफान पठान, मोहम्मद कैफ और जहीर खान को मौलाना तारिक जमील के भाषण सुनने के लिए अपनी ड्रेसिंग रूम में बुलाती थी. हरभजन सिंह ने भी उन भाषणों को सुनकर इस्लाम अपनाने का विचार किया था, हालांकि यह दावा सत्यापित नहीं है.
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मिशनरी कोशिशों के लिए भी बदनाम रहा है पाक
2014 में बल्लेबाज अहमद शहजाद को मैदान पर श्रीलंका के तिल्लकरत्ने दिलशान से कहते सुना गया कि अगर आप गैर-मुस्लिम हैं और मुस्लिम बन जाते हैं, तो आपकी जिंदगी में जो कुछ भी होगा सीधे जन्नत जाएगा. यह अनचाहा धार्मिक प्रचार क्रिकेट में मिशनरी उत्साह को दर्शाता है.
मोहम्मद यूसुफ, जो पहले यूसुफ यूहाना थे, ने अपने करियर के बीच में ईसाई धर्म छोड़कर इस्लाम अपनाया और बाद में इसे धार्मिक प्रचार और माहौल का प्रभाव बताया. वहीं, हिंदू स्पिनर डैनिश कनेरिया ने बार-बार दावा किया कि उनके धर्म ने उन्हें अवसर और सम्मान से वंचित किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक समानता से अधिक काबिलियत को महत्व नहीं दिया गया.
ये घटनाएं टीम की न केवल गहरी धार्मिक आस्था बल्कि आक्रामकता को भी दर्शाती हैं.
साहिबजादा फरहान और हारिस रऊफ ने मैदान पर उग्र मुजाहिद मानसिकता ला दी है. क्रिकेट हमेशा गरिमा, विनम्रता और निष्पक्ष खेल की परंपराओं पर गर्व करता है. इसे “जेंटलमेन गेम” कहा जाता है. फरहान का AK-47 चलाने का नाटक और रऊफ का विमान गिराने का इशारा खेल भावना को तोड़ता है. हाथ मिलाने से इनकार करना अलग बात है, लेकिन मैदान पर आतंक-युद्ध का नाटक असामान्य है.
पराजय और असभ्य व्यवहार के बाद न केवल भारतीय बल्कि विश्व के क्रिकेट प्रेमियों ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों का मजाक उड़ाया. इंग्लिश अंपायर रिचर्ड केटलबोरो ने ट्विटर पर लिखा, “हारिस रऊफ को अब पाकिस्तान का नया ‘फील्ड मार्शल’ घोषित किया गया है, 25 साल के अभिषेक शर्मा के हमले के बाद. यह ऐसा है जैसे ब्रह्मोस नूर खान बेस पर रात में हमला कर रहा हो.”
यह प्रदर्शन उस आतंकवादी मानसिकता को उजागर करता है जो दशकों से पाकिस्तानी समाज के हर क्षेत्र में फैली हुई है, जो सैन्य-मौलवी शासन के कारण है.
श्रीनगर के सजिद यूसुफ शाह ने भारतीय टीम को बधाई देते हुए बहिष्कार की मांग पर कहा, “व्यक्तिगत रूप से मैं चाहता हूं कि हमें उन कट्टरपंथियों के साथ क्रिकेट न खेलना पड़े जिन्होंने पहलगाम आतंकवादी हमले में कश्मीर घाटी में जीवन और पहचान को तहस-नहस किया.”
भारत के लिए ऐसे क्षण पाकिस्तान के साथ क्रिकेट संबंध जारी रखने के खिलाफ तर्क को मजबूत करते हैं. हाथ मिलाने से इनकार या तीखी बातें खेल का हिस्सा हैं, लेकिन हिंसक कार्यों, गोलीबारी और विमान गिराने के इशारों की सीमा पार कर जाते हैं. टीम इंडिया ने दिखाया है कि तीव्रता और प्रतिद्वंद्विता को धार्मिक या उग्र स्वर के बिना भी निभाया जा सकता है.
पाकिस्तान को सैकड़ों सबक सीखने हैं, जिनमें सबसे बड़ा यह है कि क्रिकेट एक खेल है, कोई युद्ध नहीं.
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