Matamah Shradh 2025: नवरात्रि स्थापना के साथ ही अधिकांश घरों में मातामह श्राद्ध संपन्न किया जाएगा. आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के मातामह यानी नाना और मातामही (नानी) का श्राद्ध करने की परंपरा है. इस वर्ष मातामह श्राद्ध 22 सितंबर को किया जाएगा. संतान न होने की स्थिति में मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है. आमतौर पर मातामह श्राद्ध, पितृ पक्ष की समाप्ति के अगले दिन संपन्न होता है. संतान न होने पर लोग दत्तक संतान को गोद लेते थे, ताकि उनके निधन के बाद वह पिंडदान कर सके. मान्यताओं के अनुसार, दत्तक पुत्र दो पीढ़ियों तक श्राद्ध करने का अधिकार रखता है.
मातामह श्राद्ध का महत्व
मातामह श्राद्ध अपने नाना या नानी के लिए किया जाने वाला एक विशिष्ट श्राद्ध है. यह पितृपक्ष का एक भाग है, जो मृत पूर्वजों की आत्मा को शांति और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है. हिंदू परंपरा में जहां पितृ पूर्वजों को आमतौर पर अनुष्ठानों में प्राथमिकता दी जाती है. वहीं मातृ पूर्वजों का भी महत्वपूर्ण स्थान देना जरूरी है. मातामह श्राद्ध करना मातृ वंश से प्राप्त प्रेम, विरासत और आशीर्वाद को स्वीकार करने का एक तरीका है.
कैसे किया जाता है मातामाह श्राद्ध?
पितृपक्ष के दौरान नाना की मृत्यु की विशिष्ट तिथि (चंद्र तिथि) पर ये अनुष्ठान किए जाते हैं. इसमें स्नानादि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा के लिए एक पवित्र स्थान स्थापित किया जाता है. मंत्रों का जाप करते हुए जल, तिल और जौ से तर्पण किया जाता है. आत्मा की शांति के लिए पिंडदान (चावल से बने पिंड) अर्पित किए जाते हैं. पिर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और गाय, कौवे और कुत्तों को भोजन दिया जाता है.
मातामह श्राद्ध में दूसरी पीढ़ी करती है तर्पण-पिंडदान
ऐसी मान्यताएं हैं कि यदि दिवंगत परिजन के घर पुत्र न हो, तो पुत्री की संतान यानी नाती भी पिंडदान कर सकता है. परंपरा के अनुसार, पुत्री के घर का भोजन स्वीकार नहीं किया जाता है. इसी कारण मातामह श्राद्ध के दिन नाती द्वारा तर्पण करने की प्रथा है.
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