पिछले एक साल से विदेशी निवेशकों की बिकवाली, जियो-पॉलिटिक टेंशन और टैरिफ के कारण भारतीय शेयर बाजार में दबाव बढ़ा है. जिस कारण निवेशकों को तगड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. हालांकि पिछले एक हफ्ते में शेयर बाजार में थोड़ी तेजी आई है और यह उम्मीद की जा रही है कि यहां से निवेशकों की स्थिति में बदलाव हो सकता है. इस बीच, जेफरीज की नई रिपोर्ट ने नया डर पैदा कर दिया है.
जेफरीज की नई ग्रीड एंड फियर रिपोर्ट के अनुसार, भारत का शेयर बाजार नए इक्विटी फ्लो की एक लहर की ओर देख रहा है और अनुमान है कि अगले 12 महीनों में 50-70 अरब डॉलर वैल्यू के शेयर बाजारों में आएंगे. अनुमान है कि यह 2019 में भारत को मिले सालाना इक्विटी फ्लो का करीब दोगुना है और घरेलू मार्केट की ओर से कंजम्प्शन शेयरों के फ्लो से काफी ज्यादा है.
कहां से आ रहे इतने शेयर?
IPO पाइपलाइन, प्राइवेट इक्विटी से एग्जिट और प्रमोटर हिस्सेदारी बिक्री के कारण 50 से 70 अरब डॉलर के आईपीओ मार्केट में एंट्री लेंगे. जेफरीज की रिपोर्ट के अनुसार, सभी लोग अच्छा प्रदर्शन करते हुए पैसा कमाने की कोशिश कर रहे हैं. MSCI इंडिया इंडेक्स 22 गुना आगे की कमाई पर और वित्तीय आंकड़ों को छोड़कर 25 गुना पर कारोबार कर रहा है, इसलिए कंपनियां वैल्यूवेशन की लहर पर सवार होने के अवसर का लाभ उठा रही हैं.
क्या इस वजह से सहमे हैं निवेशक?
सबसे बड़ी चिंता यह है कि स्मॉल और मिड-कैप शेयरों का वैल्यूवेशन पहले से कहीं ज्यादा अस्थिर है और आने वाले कई शेयर इन्हीं क्षेत्रों में फोकस हैं. यह पहले से ही ग्लोबल और घरेलू अनिश्चितताओं से भरे इस साल में मार्केट की गहराई और खुदरा निवेशकों की रुचि पर गंभीर सवाल खड़े करता है. ऐसे में रिटेल निवेशकों के इन शेयरों में फंसने का डर है, जिससे उनकी वेल्थ को नुकसान हो सकता है.
जेफरीज ने कहा कि आपूर्ति की कमी के बाद भी भारत के मजबूत घरेलू निवेशक आधार के समर्थन से बाजार उल्लेखनीय रूप से लचीले बने हुए हैं. मंथली SIP Flow 3 अरब डॉलर को पार कर गया है और अकेले वित्त वर्ष 26 के पहले पांच महीनों में इक्विटी म्यूचुअल फंड फ्लो 21 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. लेकिन जेफरीज का कहना है कि इनसब के बावजूद अभी परीक्षा बाकी है.
क्या ये डर झेल पाएंगे निवेशक?
विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भी बिकवाली कर रहे हैं, जिससे इस बाढ़ को झेलने की जिम्मेदारी पूरी तरह से भारतीय परिवारों पर आ गई है. अब तक उनका प्रदर्शन अच्छा रहा है, लेकिन सवाल है कि क्या खुदरा निवेशक 70 अरब डॉलर के इक्विटी पेपर के साथ तालमेल बिठा पाएंगे? अगर निवेश प्रवाह धीमा पड़ता है या धारणा बिगड़ती है, तो अस्थिरता आ सकती है.
जेफरीज बताते हैं कि महामारी के बाद से भारत में इक्विटी की गहराई बढ़ी है. नए डीमैट खाते, म्यूचुअल फंड की गहरी पैठ और रिटेलर्स की बढ़ती भागीदारी का मतलब है कि बाजार पहले की तुलना में बेहतर ढंग से सुसज्जित है. लेकिन इसके बावजूद, इतने बड़े पैमाने पर आपूर्ति का झटका दुर्लभ है.
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