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ट्रंप की $100K H-1B वीजा फीस… भारतीय IT कंपनियों के लिए बड़ा झटका! शेयर भी बिखरे – Indian IT companies Crisis after trump 1 lakh dollar H 1B visa fee tutd


राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने हर H-1बी वीजा आवेदन पर 100,000 डॉलर सालाना शुल्‍क लगा दिया है. जिसके बाद भारतीय आईटी कंपनियों को बड़ा झटका लगा है. Wall Street पर इनके शेयरों में बड़ी गिरावट देखने को मिली है. यह एक नीति‍गत बदलाव है, जिससे नियोक्‍ताओं के लिए लागत बढ़ेगी. अमेरिकी भर्ती मॉडल में बदलाव आएगा, लेकिन ग्‍लोबल स्‍तर पर तकनीकी प्रतिभाओं के लिए अमेरिका में एंट्री मुश्किल हो जाएगी. 

डोनाल्‍ड ट्रंप के इस फैसले के बाद न्यूयॉर्क ट्रेडिंग में Infosys के एडीआर में 4.5% तक की गिरावट आई, जबकि Wipro में 3.4% की गिरावट आई. कॉग्निजेंट में 4.3% और एक्सेंचर में 1.3% की गिरावट आई, जिससे निवेशकों की चिंता बढ़ा दी. 

इन लोगों के लिए सबसे बड़ा झटका
ट्रंप के इस ऐलान के तहत कंपनियों को हर नए या वापस लौटने वाले H-1B कर्मचारियों के लिए भुगतान करना होगा और उसका प्रमाण भी अपने पास रखना होगा. भारतीय IT कंपनियों के लिए, जो इसमें प्रमुख हैं और सभी एच-1बी वीजा में 70% से ज्‍यादा वीजाधारक हैं, यह नीति एक बड़ा आर्थिक झटका है. 

अमेरिका ने क्‍यों लागू किया ये नियम 
वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने इस शुल्क का बचाव करते हुए कहा कि यह ‘सस्ती विदेशी प्रतिभाओं’ के आगमन को रोकने और यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि केवल ‘वैल्‍यूवेबल कर्मचारी’ ही इसके लिए योग्य हों. व्हाइट हाउस ने इस कदम को एच-1बी प्रणाली के ‘दुरुपयोग’ को रोकने और कंपनियों को अमेरिकियों को नियुक्त करने के लिए प्रेरित करने के लिए एक व्यापक पुनर्गठन का हिस्सा बताया है. 

बड़ी छंटनी का अनुमान
विश्लेषकों का अनुमान है कि इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो, कॉग्निजेंट और एचसीएल जैसी कंपनियांअमेरिका में ऑन-साइट कर्मचारियों की संख्या में भारी कमी करेंगी, एच-1बी को केवल उच्च-स्तरीय पदों के लिए रिजर्व करेंगी और ऑफशोरिंग, रिमोट डिलीवरी मॉडल में तेजी लाएंगी. इससे मार्जिन में तो सुधार होगा, लेकिन मध्यम-स्तरीय भारतीय तकनीकी कारोबार के लिए अवसर सीमित होंगे और ग्रीन कार्ड पात्रता से जुड़े करियर के रास्ते भी बाधित होंगे.  

कैसे भारतीय कंपनियों में निवेश करते हैं अमेरिकी लोग 
अमेरिकन डिपॉजिटसरी रिसीट्स (एडीआर) महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अमेरिकी निवेशकों को विदेशी कंपनियों जैसे इंफोसिस, विप्रो और कॉग्निजेंट के शेयर में सीधे YSE या नैस्डैक जैसे अमेरिकी एक्‍सचेंजों के माध्‍यम से निवेश की सुविधा देते हैं. इससे उन व्यवसायों में निवेश करना कहीं अधिक आसान हो जाता है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में सूचीबद्ध नहीं हैं, बिना विदेशी बाजारों, मुद्रा जोखिमों या जटिल नियमों से जूझे. 

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