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सोवियत संघ से अलग हुए 15 देश, लेकिन रूस का निशाना सिर्फ यूक्रेन,क्या पश्चिम से लगाव की कीमत चुका रहा? – russia interest in Ukraine amid war ntcpmj


नब्बे के दशक में सोवियत संघ टूटकर 15 छोटे-बड़े देशों में बिखर गया. रूस भौगोलिक तरीके से दुनिया का सबसे बड़ा देश है लेकिन इसके बाद भी वो यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर कब्जा चाहता है. इसी बात को लेकर वो पिछले साढ़े तीन सालों से हमलावर है. लेकिन बाकी 13 देश क्यों नहीं, सिर्फ यूक्रेन ही क्यों? 

कई भाइयों में बंटवारा होने के बाद भी एक भाई की नजर किसी खास भाई की संपत्ति पर है, जबकि बाकियों से वो मेलजोल रखता है, उनके साथ खाता-बैठता है. इसका सामाजिक विश्लेषण किया जाए तो कई कारण हो सकते हैं. मसलन, दोनों भाइयों में शुरू से न बनती हो, या फिर बंटवारा असमान हुआ हो. लेकिन ये तो हुई सोसायटी की बात, देशों के मामले में अगर यही दिखने लगे तो क्या! बात हो रही है रूस और यूक्रेन की. रूस ने साढ़े तीन साल पहले यूक्रेन पर अटैक किया. ये जंग अब तक जारी है. 

कुछ समय पहले अमेरिकी राष्ट्रपति की लड़ाई में एंट्री हुई. वे आए तो बीच-बचाव करने थे, लेकिन कहने लगे कि यूक्रेन अपना फलां-फलां हिस्सा रूस के नाम कर दे तो सीजफायर हो जाएगा. इसके बाद से बात चल रही है कि रूस को आखिर यूक्रेन से ही क्या दुश्मनी है. 

फिलहाल रूस जिन पांच जगहों से यूक्रेनी सेना को पीछे धकेलने की कोशिश में है, वे हैं— खारकीव, डोनेट्स्क, लुहान्स्क, खेरसॉन और जापोरिझझिया. दरअसल साल 1991 में सोवियत संघ के बिखरने के साथ दोनों अलग तो हो गए लेकिन रूस ने कभी यूक्रेन को अलग नहीं माना. क्रीमिया और पूर्वी यूक्रेन को रूस अनौपचारिक तौर पर अपना ही मानता रहा. यहां रूसी बोलने वाले और रूस से सहानुभूति रखने वाली आबादी थी, जिससे मॉस्को को और बढ़ावा मिला. 

ukraine protest against russia (Photo- Pexels)
अमेरिकी दखल के बाद से व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमले और तेज करवा दिए. (Photo- Pexels)

दोनों की सीमाओं पर हल्का तनाव रहा लेकिन दो दशक पहले मॉस्को ने सबसे बड़ा वार किया. ये वो वक्त था जब यूक्रेन  यूरोपियन संघ के करीब जा रहा था. तत्कालीन राष्ट्रपति जिन्हें मॉस्को से लगाव था, वे सत्ता से हटाए गए. मॉस्को ने माना कि ये पश्चिम की साजिश है. उसने हमला करते हुए तुरंत क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. इंटरनेशनल स्तर पर उसे घेरा गया लेकिन वो रुका नहीं. यही वो पहला मौका था जब रूस ने आधिकारिक तौर पर यूक्रेन की जमीन हथिया ली. 

इसके बाद रूसी बोलने वाले और उससे मिलने की इच्छा रखने वाले कई इलाकों में उसने अपनी सक्रियता बढ़ा दी. डोनबास में सायलेंट वॉर चल पड़ा. वो अलगाववादियों की मदद करने लगा. यहां तक कि रूसी हथियार और सैनिक तक बिना वर्दी के वहां जाने लगे. इस दौरान काफी मौतें हुईं और विस्थापन भी हुआ. डोनबास धीरे-धीरे पूरी तरह से रूस समर्थक इलाका बन गया, भले ही वो यूक्रेन में था. 

फरवरी 2022 को रूस ने अचानक चारों तरफ से यूक्रेन पर हमला कर दिया. अनुमान था कि यूक्रेन शायद तुरंत ही सरेंडर कर दे लेकिन इतने वक्त बाद भी लड़ाई चल रही है. इस बीच रूस ने दावा किया कि उसकी सेना कई जगहों पर कब्जा कर चुकी है. 

ukraine city (Photo- Pixabay)
रूस मानता है कि यूक्रेन की राजधानी कीव से ही उसकी संस्कृति उपजी. (Photo- Pixabay)

अब यही बात फिर आती है. 13 और देश भी हैं, जो रूस से टूटे, फिर वो यूक्रेन पर ही कब्जा क्यों चाहता है. इसकी वजह घुली-मिली है. दोनों पड़ोसी भर नहीं, बल्कि यूक्रेन की राजधानी कीव से रूस का ऐतिहासिक जुड़ाव रहा. रूसियों की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान की शुरुआत कीव से ही मानी जाती है. इसलिए मास्को में सत्ता चाहे कोई भी हो, वे यूक्रेन को अपना टूटा हुआ अंग मानते रहे और गाहे-बगाहे उसे पाने की कोशिश करते रहे. 

आजादी पाते ही सोवियत से टूटे कई देश फटाफट यूरोपीय संघ से मिल गए. तीन बाल्टिक देश तो ईयू और नाटो दोनों के सदस्य बन गए. लेकिन ये देश छोटे हैं, रूस ने इन्हें जबरदस्ती रोकने की कोशिश नहीं. और चूंकि इनके पास नाटो नाम की छतरी थी, लिहाजा वो चुप ही रहा. बचे-खुचे कई देश खुद ही रूस के साथ रहे. तो उनसे खतरा नहीं लगा. 

तो फिर यूक्रेन ही क्यों सबसे बड़ा मुद्दा
ये देश आकार में बड़ा है. ढेर सारे रिसोर्स हैं और सबसे बड़ी बात कि ये रूस और यूरोप के बीच बफर जोन है. अगर यूक्रेन नाटो में चला जाए, तो रूस की पश्चिमी सीमा पर सीधे अमेरिकी और यूरोपीय सैनिक बैठ सकते हैं. ये डर काफी बड़ा है. इसी घेराबंदी से बचने के लिए वो हर कीमत पर यूक्रेन को वेस्ट कैंप में जाने से रोकता रहा. 

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