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‘ढेर’ या ‘शहीद’? एक वारदात, फिर एनकाउंटर और आखिर में पाप का पुण्‍य में बदल जाना! – disha patani shooters encounter gangsters call martyrs religion misuse ntc


एक अरसे से दुनिया देखती रही है कि कैसे आतंकी संगठन फिदायीन हमलों के बाद मरने वाले का शहीद का दर्जा देते हैं. वैसा ही कुछ दिशा पटानी के घर फायरिंग करने वाले दो शूटरों का एनकाउंटर होने के बाद हुआ. मारे गए शूटरों को उनकी गैंग ‘शहीद’ बता रही है. 

हाल की घटनाओं ने हमें एक नया दार्शनिक प्रश्न दे दिया है- अगर बदमाश धर्म की वर्दी पहन लें, तो क्या उनका अपराध गरिमामय बन जाता है? फेसबुक पर एक पोस्ट के बारे में कहा जा रहा है कि वह अमेरिका में बैठे गैंगस्‍टर रोहित गोदारा ने लिखी है. जिसमें कहा गया है कि ‘भाइयों आज ये जो एनकाउंटर हुआ है! ये हमारे लिये जीवन की बहुत बड़ी क्षति है! मैं आपको बता दूं! ये जो न्यूज चैनल वाले जो न्यूज चला रहे हैं! है ना की ढेर हुए हैं! ये ढेर नहीं शहीद हुए हैं! इन भाइयो ने धर्म के लिये अपना बलिदान दिया है!’

इस पोस्‍ट का बैकग्राउंड ये है कि दिशा पटानी के बरेली निवास पर कुछ शूटरों ने फायरिंग की थी. जिसके लिए हमलावरों ने सोशल मीडिया पर कहा था कि वे दिशा पटानी की बहन के स्‍वामी प्रेमानंद पर दिए गए बयान से खफा हैं. नतीजा ये हुआ कि इस वारदात में शामिल दो शूटरों को पिछले दिनों एक एनकाउंटर में मार दिया गया. अब हमले से जुड़े गैंग के लोग फिर सोशल मीडिया पर आए हैं, और इस मामले को धर्म की लड़ाई घोषित कर दिया है.

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इतिहास में अब तक यह किसने सोचा था कि ‘ढेर’ और ‘शहीद’ के बीच बस एक इतना अदना सा फिल्टर होगा? क्या अगला कदम यह होगा कि अपराध करने वालों के लिए सरकारी सब्सिडी और ‘शहीद’ अलाउंस आ जाएं? ‘आपके बेटे की शहादत प्रमाणित हुई, 0% ब्याज पर मकान ऋण स्वीकृत.’
 
अब जबकि इस मामले में गैंगस्‍टरों का पूरा नजरिया सामने आ ही गया है तो समाज के लिए इतना प्रस्‍ताव तो रखा ही जा सकता है कि मरने वाले किसी भी शख्‍स के नाम से धर्म को जोड़ा जाए तो उस शख्‍स को स्‍वत: ही ‘शहीद’ का तमगा मिल जाए. न सिर्फ सोशल मीडिया पर, बल्कि अखबारों की सुर्खियों में भी. गैंग के आफिसों के पास शहादत के सर्टिफिकेट की दुकान खुलें, इसी बहाने कुछ और लोग रोजगार से लगेंगे.

इसके लिए उन उन भाइयों को भी धन्यवाद रहे, जिन्होंने बड़े परिश्रम से अपराध को आध्यात्मिक लेवल पर ले जाकर ‘धर्मयुद्ध’ की टैगलाइन दी है. यह एक ज़बरदस्त कला है- पहले गोलीबारी कराओ, फिर सोशल मीडिया पर उसकी जिम्‍मेदारी लेते हुए पोस्‍ट डालो. जब किसी साथी का एनकाउंटर हो जाए तो फिर फेसबुक पर पोस्‍ट लिख डालो. ‘राम राम सभी भाइयों’. क्‍योंकि, ‘राम’ ही तो अंतिम सत्‍य हैं. भगवान तो सबके हैं. गैंगस्‍टरों के भी. 

कुल मिलाकर, मामला सेट है. अपराध की दुनिया में बहादुरी की परिभाषा बदल गई है. अब बहादुरी = गोली चलाना + धर्म का नाम लेना.

क्राइम के सिलेबस में इसके लिए नई टेक्‍स्‍ट बुक आई है. ‘क्राइम 101: गुनाह से शहादत तक’. जिसका पहला चेप्‍टर है, अपराध का चयन, क्योंकि अपराध की मांग हमेशा रहती है. दूसरा अध्याय है, धर्म का प्रपंच. यह सबसे मजेदार है. बस ‘सनातन’ का जादुई शब्द लगाइए और सारे गुनाह पवित्र हो जाते हैं. अध्याय तीन है, लाइव-स्ट्रीम. मतलब, अगर केस फंसने लगे तो तुरंत ‘धर्म रक्षा’ का बहाना निकालो. न्याय की बात उठे तो कह दो, ‘हम तो शहीद हुए हैं’, और सोशल मीडिया पर सहानुभूति की बारिश शुरू.

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एक और गूढ़ मिथक ये है कि ‘धर्म के लिए लड़ना = गोली मार देना”. अब आप कहेंगे क‍ि धर्म, जो हजारों वर्षों में प्रेम, करुणा और आत्म-शुद्धि का संदेश देता रहा, अचानक कुछ लोगों के हाथों में हथियार बन गया. और वो हथियार धर्म का नाम लेकर अपने पापों को पोंछ लेते हैं? देखिये, अभयारण्य का राजा शेर होता है, पर अपराधियों का नया अभयारण्य ‘धार्मिक रंग’ है.

यहां एक और मज़ेदार परत है, ‘इंसाफ दिलाने’ की धमकी. पोस्ट में लिखा है, ‘अगर तुम इतने सच्चे हो तो उठाओ मुद्दा!’ एक कॉल-टू-एक्शन. मतलब, पहले गोली चला दी, फिर जश्न मनाया, अब न्याय की मांग? यह वही सर्कल है जहां अपराधी शोक सभा करते हैं और न्याय को ड्यूटी पर बुलाते हैं. अपनी गन से एक फैसला करवाया, अब वही मुक़दमे की मांग कर रहे हैं. अब आप कहेंगे क‍ि यह पलटवार तो बस एक भयावह नाटक है.

व्यंग्य का मतलब यह नहीं कि हम भावनाओं की कद्र नहीं करें. हर मृतक मानवीय है, और किसी की भी जान कीमती है. पर समस्या तब है जब कुछ लोग दूसरों की जान लेने को धर्म कहें और फिर मर जाएं तो उसे ‘शहादत’. क्या धर्म का काम हत्या को ओढ़ना है? क्या धर्म की पवित्र चादर अपराधियों के पापों को छिपाने के लिए है?

एक और बात: पोस्ट की अंतिम लाइन है कि ‘हम वो काम कर सकते हैं जिसकी ये कल्पना भी नहीं कर सकते हैं!’ – यह धमकी भरा टोन है. व्यंग्य में कल्पना का इस्तेमाल अच्‍छा है. कला, विज्ञान और साहित्य में भी ठीक है. अपराध में नहीं. 

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अंत में एक विनम्र सिफारिश – धर्म का अर्थ है जोड़ना, न कि जोड़-घटाना. प्रेम, न कि प्रहार. अगर कोई अपने पाप को पुण्य में बदलना चाहता है, तो सबसे आसान रास्ता है- दिल की साफ़गोई और कानून के सामने खड़ा होना, माफी माँगना और सच्ची तौबा करना. 
धर्म के नाम पर अपराध का गुलदस्ता सुंदर दिख सकता है, पर उसकी खुशबू इंसाफ की हवा में घुलने से पहले ही हवा हो जाएगी.

और हां, अगर कोई सच में धर्म बचाना चाहता है तो पहले अपने घर, अपने शब्द और अपने कर्म साफ कर ले. बाकी तो सबकी भली करेंगे राम.

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